(भरत झुनझुनवाला)

सदी के शुरू में अमेरिकी अर्थव्यवस्था गतिमान थी। माइक्रोसॉफ्ट विंडोज सॉफ्टवेयर बनाकर पूरी दुनिया में डिजिटल क्रांति लाया था। इसके बाद नई तकनीकों का आविष्कार ढीला पड़ गया और 2008 में अमेरिका में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। अमेरिकी केंद्रीय बैंक ‘फेड’ ने ब्याज दरों को शून्य बना दिया ताकि कंपनियां ऋण लेकर निवेश करें। पर नई तकनीकों के अभाव में अमेरिका में निवेश नहीं हुआ और विश्व पूंजी का बहाव विकासशील देशों की ओर हो गया। इस बहाव से भारत को लाभ हुआ। हमारा शेयर बाजार चढ़ता गया। हाल में एक बार फिर अमेरिका में नई तकनीकों का आविष्कार हुआ है। इनमें रोबॉट और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस प्रमुख हैं।

इन तकनीकों के बल पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था फिर से गतिमान हो चली है। रोबॉट से मैन्यूफैक्चरिंग अमेरिका में लौट रही है। पहले अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश कर रही थीं क्योंकि यहां श्रमिकों के वेतन कम थे। रोबॉट ने भारत की यह ताकत फुस्स कर दी है क्योंकि अब श्रम की जरूरत ही कम हो गई है। इसी प्रकार आर्टिफिशल इंटेलिजेंस ने बौद्धिक कार्यों, जैसे कानूनी रिसर्च के लिए भारतीय कर्मियों की जरूरत कम कर दी है। इन तकनीकी आविष्कारों के बल पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है। तदनुसार फेड ने पुनः ब्याज दरों में वृद्धि करनी शुरू कर दी है।

दबाव के संकेत
वर्ष 2008 में अमेरिकी संकट के बाद विश्व पूंजी का बहाव कुछ उसी तरह विकासशील देशों की तरफ हुआ था, जैसे गांव में नौकरी न मिलने पर श्रमिक दिल्ली या पंजाब की ओर चल पड़ता है। अब गाड़ी रिवर्स गियर में चलने लगी है तो निवेशकों का रुख पुनः अमेरिका की ओर मुड़ रहा है, जैसे मनरेगा लागू होने के बाद पंजाब से श्रमिक वापस बिहार जाने लगे थे। फलस्वरूप भारत से पूंजी पलायन की संभावना बनती है। पूंजी के पलायन से भारत का शेयर बाजार चित हो जाना चाहिए था, लेकिन वह तो लगातार उछल रहा है। कारण यह है कि नोटबंदी तथा जीएसटी से भारत में छोटे उद्योग दबाव में आ गए हैं और बड़ी कंपनियों को देश भर में अपना माल बेचने की सहूलियत हो गई है। बड़े उद्योगों की इस बल्ले-बल्ले से शेयर बाजार उछल रहा है। लेकिन छोटे उद्योगों के दबाव में आने से जमीनी अर्थव्यवस्था मंद है। इसीलिए देश से विदेशी पूंजी का पलायन, शेयर बाजार में उछाल और ग्रोथ रेट का दबाव में रहना, साथ-साथ दिखाई दे रहा है।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गति का भारत पर कुछ सकारात्मक प्रभाव भी होता था। हमारे गलीचे ज्यादा मात्रा में निर्यात होते थे और हमारे इंजीनियर अधिक संख्या में अमेरिका जाते थे। यह पॉजिटिव प्रभाव अब नहीं दिखेगा क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अमेरिकी माल की खरीद और अमेरिकी इंजीनियरों को जॉब देने पर जोर दिया जा रहा है। अतः अमेरिका में तकनीकी आविष्कारों का हम पर एकमात्र प्रभाव यह होगा कि विदेशी पूंजी वापस जाएगी। यह परिवर्तन 2018 की चुनौती है। बीजेपी सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों, स्मार्ट सिटी, एयरपोर्ट, बुलेट ट्रेन आदि में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। लेकिन कुछ नकारात्मक चिह्न भी दिखने लगे हैं। जैसे, सरकार ने घाटे में चल रहे सरकारी बैंकों को दो लाख करोड़ रुपये की सहायता देने का मन बनाया है, जो मनरेगा के सालाना खर्च 40,000 करोड़ रुपये का पांच गुना है।

इसके चलते सरकार की नए तकनीकी आविष्कारों में निवेश करने की क्षमता नहीं रह जाएगी। जिस प्रकार अमेरिका ने रोबॉट तथा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के जरिये अर्थव्यवस्था को बढ़ाया है, उसी तरह भारत सरकार निवेश करे तो तो हम अंतरिक्ष, इंटरनेट, जेनेटिक्स, डाटा प्रॉसेसिंग आदि क्षेत्रों में आविष्कार कर सकते हैं। यह अगले दशक में हमारे विकास का मंत्र हो सकता है।

सरकार को चाहिए कि बीमार सार्वजनिक बैंकों का एक झटके में निजीकरण कर दे। इनमें दो लाख करोड़ निवेश करने के स्थान पर इन्हें बेचकर 20 लाख करोड़ की रकम अर्जित करे और इस रकम को तकनीकी आविष्कारों में झोंक दे। तब बैंकों के नकारात्मक प्रभाव को पलटकर हम सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं। दूसरा नकारात्मक संकेत सरकार के बढ़ते वित्तीय घाटे का है। सरकार द्वारा आय से अधिक खर्च को वित्तीय घाटा कहा जाता है। यह खर्च ऋण लेकर किया जाता है। वर्ष 2017-18 के बजट में सरकार ने पूरे वर्ष में ऋण लेने का जो अनुमान दिया था, उसका 96 प्रतिशत सरकार द्वारा अक्टूबर तक लिया जा चुका था। नवंबर से मार्च के पांच महीनों में सरकार द्वारा बजट में प्रस्तावित मात्रा से अधिक ऋण लिया जाएगा। सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी होगी। 2019 में चुनाव होने हैं अतः लोक लुभावन जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च भी बढ़ाना पड़ेगा।

खतरे की घंटी
सरकार ऋण अधिक लेगी तो ब्याज दरें बढ़ेंगी और पुनः सरकार दबाव में आएगी। सरकार हर तरफ से घिरी हुई है। आय कम हो रही है। कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ाना है। ऋण ले नहीं सकते। ऐसे में सरकार को चाहिए कि एक झटके में तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं को बंद कर दे और इन पर खर्च हो रही 6 लाख करोड़ रुपये की रकम देश के 20 करोड़ परिवारों में 2,500 रु. प्रतिमाह की दर से बांट दे। इस वितरण से जबर्दस्त राजनीतिक लाभ मिलेगा। आम आदमी इससे कपड़े, बाइक या टीवी खरीदेगा और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। अमेरिका में तकनीकी आविष्कार और ब्याज दरों की वृद्धि हमारे लिए खतरे की घंटी है। सरकारी बैंकों के निजीकरण और जन कल्याणकारी योजनाओं के खात्मे से मिली रकम को तकनीकी आविष्कारों में लगाकर और जनता में सीधे बांटकर इसका हल निकाला जा सकता है।(NBT)

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