आम बजट 2018-19 में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises-MSMEs) को काफी बढ़ावा दिया गया है, ताकि रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास को नई गति प्रदान की जा सके।
MSMEs क्षेत्र के लिये बजटीय आवंटन को वर्ष 2017-18 के 6481.96 करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2018-19 में 6552.61 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
क्या है सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम?
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के संवर्धन एवं विकास को सरल एवं सुविधाजनक बनाने हेतु 2 अक्तूबर, 2006 को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम (MSMED Act), 2006 विनियमित किया गया था। इस अधिनियम के तहत MSMEs को निम्नलिखित दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:
विनिर्माण क्षेत्र में उद्यम- इसमें उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी (Plant & Machinery) में किये गए निवेश के संदर्भ में परिभाषित किया गया है।
उद्यम का प्रकार संयंत्र एवं मशीनरी में किया गया निवेश (रुपयों में)
सूक्ष्म (Micro) 25 लाख तक
लघु (Small) 25 लाख से अधिक किंतु 5 करोड़ से कम
मध्यम (Medium) 5 करोड़ से अधिक किंतु 10 करोड़ से कम
सेवा क्षेत्र में उद्यम- सेवाएँ प्रदान करने में लगे उद्यमों को उपकरणों (Equipment) में निवेश के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है।
उद्यम का प्रकार उपकरणों में किया गया निवेश (रुपयों में)
सूक्ष्म (Micro) 10 लाख तक
लघु (Small) 10 लाख से अधिक किंतु 2 करोड़ से कम
मध्यम (Medium) 2 करोड़ से अधिक किंतु 5 करोड़ से कम
भारत के लिये MSMEs का महत्त्व
MSMEs बड़े उद्योगों की तुलना में अपेक्षाकृत कम पूंजी लागत में न केवल रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि राष्ट्रीय आय और धन का अधिक समान वितरण सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने और ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में सहायता करते हैं।
MSMEs सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक हैं और यह क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये काफी योगदान देता है।
वर्तमान में लगभग 3.6 करोड़ MSMEs 8 करोड़ रोजगारों का सृजन करते हैं।
देश के सकल घरेलू उत्पादन में 8%, कुल विनिर्माण उत्पादन में 45% और देश के कुल निर्यात में 40% भाग का योगदान करने वाली इन इकाइयों द्वारा लगभग 8000 मूल्यवर्द्धित उत्पादों का निर्माण किया जाता है।
राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता कार्यक्रम (National Manufacturing Competitiveness Program)
राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा कार्यक्रम भारतीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों में वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के विकास के लिये सरकार का नोडल कार्यक्रम है। इसे वर्ष 2007-08 में आरंभ किया गया था।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के तकनीकी उन्नयन द्वारा क्षेत्र की सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला में वृद्धि करना है।
इसके लिये आवंटन वर्ष 2017-18 के 506 करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2018-19 में 1006 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम दो योजनाओं- प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY) और ग्रामीण रोज़गार सृजन कार्यक्रम को मिलाकर बनाया गया है।
इस योजना का उद्घाटन 15 अगस्त, 2008 को किया गया था।
भारत सरकार द्वारा उक्त योजना के क्रियान्वयन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर खादी और ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Commission-KVIC ) को नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
राज्य स्तर पर यह योजना राज्य KVIC निदेशालय, राज्य खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड (KVIBs), ज़िला उद्योग केंद्रों और बैंकों के माध्यम से लागू की जाती है।
इस कार्यक्रम के तहत आवंटन को वर्ष 2017-18 के बजट अनुमान के लगभग 1024 करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में 1800 करोड़ रुपए कर दिया गया है, ताकि गैर-कृषि क्षेत्र में लगभग 88,000 सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के ज़रिए स्व-रोज़गार के अवसर सृजित किए जा सकें। इससे लगभग 7 लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा।
साख गांरटी कोष
सरकार ने उन सूक्ष्म और लघु उद्यमों को राहत प्रदान करने के लिये एक ऋण गारंटी निधि की स्थापना की है जो अपने उद्यमों के विकास के लिये ऋण प्राप्त करने हेतु ज़मानत (Collateral Security Pledge) देने में असमर्थ रहते हैं।
साख गांरटी कोष को पहले ही 2500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 7500 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इस वृद्धि के साख गांरटी कोष को पहले ही 2500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 7500 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इस वृद्धि के साथ-साथ संबंधित योजना में अन्य ढाँचागत सुधारों की बदौलत इस सेक्टर में ऋण वृद्धि और रोज़गार सृजन को काफी बढ़ावा मिलेगा।
स्फूर्ति (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries -SFURTI)
परंपरागत उद्योगों के पुनरुद्धार के लिये कोष योजना (SFURTI) उद्योगों को अत्यधिक उत्पादक एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाने तथा ग्रामीण और अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ाने के विचार से खादी, ग्रामोद्योग और कॉयर क्षेत्रों में पहचाने गए क्लस्टरों संबंधी परंपरागत उद्योगों के पुनर्सृजन के लिये 2005 में शुरू की गई थी।
इस स्कीम का उद्देश्य खादी, ग्राम एवं कॉयर क्षेत्रों में परंपरागत उद्योगों के एकीकृत क्लस्टर आधारित विकास के पुनर्सृजन हेतु सतत् और प्रतिकृति मॉडल स्थापित करना है।
स्फूर्ति के लिये बजटीय आवंटन को वर्ष 2017-18 के बजट अनुमान के 10 करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में 125 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इससे परंपरागत एवं ग्रामीण उद्योगों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
एस्पायर योजना (Aspire)
रोज़गार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा 2015 में ‘नवाचार, कृषि-उद्योग और उद्यमिता के संवर्द्धन के लिये योजना’ (A Scheme for promotion of Innovation, Entrepreneurship and Agro-Industry) शुरू की गई थी।
इस योजना के लिये आवंटन को वर्ष 2017-18 के बजट अनुमान के 50 करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में 232 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
इसके पीछे मुख्य उद्देश्य 100 आजीविका बिजनेस इन्क्यूबेटरों और 20 प्रौद्योगिकी बिज़नेस इन्क्यूबेटरों की स्थापना करना है। इससे उद्यमिता और रोज़गार सृजन में तेजी आएगी।
अन्य पहलें
अत्याधुनिक प्रौद्योगिक केन्द्रों की स्थापना के लिये आवंटन को तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ाकर वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में 550 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
खादी अनुदान के तहत आवंटन को बढ़ाकर वर्ष 2018-19 के बजट अनुमान में 415 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
गैर-परंपरागत सौर ऊर्जा के दोहन के लिये सोलर चरखा मिशन की एक नई योजना भी प्रस्तावित की गई है ताकि और ज़्यादा रोजगारों का सृजन हो सके।
अनुसूचित जाति और जनजातीय उद्यमियों के कारोबार में वृद्धि के लिये राष्ट्रीय SC/ST हब के तहत आवंटन को 60 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 93.96 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
विभिन्न योजनाओं के तहत एससी/एसटी घटकों हेतु पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये समग्र आवंटन में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई है।
250 करोड़ से कम टर्नओवर वाली कंपनियों के लिये निगम कर को 30% से कम कर 25% कर दिया गया है। इससे लगभग 99 फीसदी MSMEs लाभान्वित होगी।
3794 करोड़ रुपए की ऋण सहायता के अतिरिक्त MSMEs को बढ़ावा देने के लिये मुद्रा योजना के लिये पिछली बार की तुलना में 20 फीसदी अधिक यानि 3 लाख करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है।
राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों को व्यापार इलेक्ट्रॉनिक प्राप्य छूट प्रणाली (Trade Electronic Receivable Discounting System-TReDS) मंच पर लाने और इसे जीएसटी नेटवर्क के साथ लिंक करने की घोषणा की गई है।
TReDS एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म है जिसे MSMEs को देरी से होने वाले भुगतान की समस्या को हल करने के लिये शुरूं किया गया है।
यह MSMEs के व्यापार के बकाया बिलों (अथवा ट्रेड प्राप्य-Trade Receivable) के नीलामी की अनुमति देता है। यह योजना कई फाइनेंसरों के माध्यम से सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित कॉर्पोरेट और अन्य खरीदारों से सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यमों की व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण की सुविधा के लिये संस्थागत तंत्र की सुविधा प्रदान कराती है।