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*आभार-शशांक द्विवेदी*
पिछले दिनों जर्मनी के बॉन में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मलेन में भारत ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने की अपनी प्रतिबद्धिता दोहराई। साथ ही अक्षय ऊर्जा के अधिक प्रयोग और अपनी बढ़ती क्षमता पर भी दुनिया के सामने अपना पक्ष रखा। सच्चाई यह है की अक्षय ऊर्जा के अधिकाधिक प्रयोग से ही कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है। फिलहाल भारत सरकार की योजना अक्षय ऊर्जा की मदद से साल 2022 तक सभी को 24 घंटे बिजली मुहैया कराने की है। देश में बिजली की मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है, क्योंकि मांग के अनुपात में बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है, जबकि इसकी बढ़ती हुई कीमतों ने आम आदमी के बजट को बिगाड़कर रख दिया है। ऐसे में सौर ऊर्जा लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प बनकर उभरा है। इसकी मदद से ग्रिड एनर्जी पर बढ़ती निर्भरता को भी कम किया जा सकता है। साथ ही सौर ऊर्जा स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है। सरकार ने जवाहरलाल नेहरू सोलर मिशन के जरिये साल 2022 तक सौर ऊर्जा से एक लाख मेगावाट से अधिक बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें 40 हजार मेगावाट घर के छतों पर लगाए जाने वाले सोलर (रूफटॉप) से और 60 हजार मेगावाट बिजली बड़े और मझोले ग्रिड से जुड़ी हुईं परियोजनाओं के जरिये पूरा किया जाएगा। इसके अलावा सोलर पावर का कारोबार करने वालों को भी सरकार मौका देगी। साथ ही देशभर में परियोजना लगाने के लिए आर्थिक सहायता भी देगी।
फिलहाल केंद्र सरकार ने 2022 तक वैकल्पिक ऊर्जा स्नोतों की सहायता से दो लाख मेगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है, लेकिन बिजली की बढ़ती हुई खपत के लिए ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ ऊर्जा संरक्षण की दिशा में भी काम करने की जरूरत है। देश के नागरिकों के लिए एक ऐसी ऊर्जा संरक्षण नीति की जरूरत है, जिससे गैरजरूरी ऊर्जा के इस्तेमाल को रोका जा सके या कम किया जा सके। इसके लिए अब सरकार को संजीदा होना पड़ेगा, क्योंकि आज के हालात में देश में ऊर्जा के उत्पादन और खपत में बहुत बड़ा अंतर है। हालात यह है कि देश में करोड़ों लोग आज भी अंधेरे में जीवन जीने को मजबूर हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) के अनुसार अगले 20 सालों में भी भारत में ऊर्जा की समस्या बनी रहेगी। अभी भी देश के कई हिस्सों में मांग की सिर्फ 15 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति हो पाती है। 2030 तक भी देश के कई राज्यों में अबाधित बिजली आपूर्ति नहीं हो सकेगी। वास्तव में ऊर्जा की यह समस्या देश के विकास और भविष्य को सीधा-सीधा प्रभावित कर रही है, जिसके लिए हमें अभी से संजीदा होना होगा। जाहिर है ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ हमें ऊर्जा संरक्षण पर भी पूरा ध्यान देना होगा, क्योंकि सच्चाई यह है कि बिजली की बचत ही बिजली का उत्पादन है, लेकिन इसके लिए सरकार के साथ-साथ समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा।
ऊर्जा के कुशल उपयोग से बिजली की खपत घटाने में मदद मिलेगी और 50,000 करोड़ रुपये तक की बचत की जा सकेगी। वर्तमान में भारत विभिन्न स्रोतों से करीब एक लाख करोड़ यूनिट बिजली पैदा करता है और यदि इसका 10 प्रतिशत भी बचाया जाए तो 10,000 करोड़ यूनिट बिजली की बचत की जा सकती है। यह 50,000 करोड़ रुपये की बचत के बराबर है। इस बचाई गई बिजली का इस्तेमाल ऐसे पांच करोड़ लोगों के घरों को रोशन करने में किया जा सकता है, जो बिजली की सुविधा से वंचित हैं। सरकार का लक्ष्य हर साल लगभग 10,000 करोड़ यूनिट बिजली की बचत करने का होना चाहिए। देश के टेलीकॉम टॉवर प्रतिवर्ष लगभग पांच हजार करोड़ का डीजल जला रहे हैं। यदि वे अपनी यह जरूरत सौर ऊर्जा से पूरी करें तो बड़ी मात्र में डीजल बचाया जा सकेगा। हालांकि सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को इसकी ओर आकर्षित करना होगा। लोग इसको समझने तो लगे हैं, लेकिन इसका पूरी तरह प्रयोग करने से कतरा रहे हैं। छोटे स्तर पर सोलर कूकर, सोलर बैटरी, सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन, मोबाइल फोन आदि का प्रयोग देखने को मिल रहा है, लेकिन ज्यादा नहीं। बिजली के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करने से लोग अभी भी बच रहे हैं तो इसका कारण सौर ऊर्जा का किफायती न होना भी है। सौर ऊर्जा अभी महंगी है और इसके प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए जागरूकता जरूरी है। यदि इसे स्टेटस सिंबल बना दिया जाए तो भी लोग इसकी ओर आकर्षित होंगे।
दरअसल किसी भी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कुप्रभाव न पड़े और यह तरीका स्थाई हो, न कि लघुकालीन। इसके लिए हमें अक्षय ऊर्जा स्नोतों का व्यापक इस्तेमाल करना होगा। भारत में इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को देखते हुए पूरी दुनिया ही अक्षय ऊर्जा को अपनाने को विवश हो रही है। जाहिर है बिजली की भारी किल्लत को देखते हुए अक्षय ऊर्जा स्नोत को बड़े पैमाने पर अपनाना भारत की मजबूरी भी है और जरूरत भी। इसलिए भारत सरकार इन स्नोतों को विकसित करने को उच्च प्राथमिकता दे रही है। आज जरूरत है कि हम सब अक्षय ऊर्जा के स्नोतों का उपयोग करें और दूसरों को भी करने के लिए प्रेरित करें, क्योंकि अक्षय ऊर्जा ही देश का भविष्य है। देश को ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए अक्षय ऊर्जा का सहारा लेना पड़ेगा। साथ ही ऊर्जा संरक्षण को एक राष्ट्रीय मिशन की तरह क्रियान्वित करना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस समय देश का बहुत सारा राजस्व ऊर्जा संसाधनों को आयात करने में खर्च हो रहा है।
*(लेखक राजस्थान की मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं)*
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