(अमरनाथ त्रिपाठी)

वर्तमान केंद्र सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रयासरत है। प्रारंभ में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बारे में जिक्र किया तो लोगों को समझ में नहीं आया कि वह किस तरह आय बढ़ाने की बात कर रहे हैं? जैसे कृषि से आय या कृषि और गैर कृषि से कुल आय, नाममात्र आय या वास्तविक आय-किस प्रकार की आय को सरकार दोगुना करना चाहती है। इस असमंजस को नीति आयोग ने अपने एक नीति पत्र द्वारा दूर किया है जिसके अनुसार सरकार वास्तविक आय और कृषि से प्राप्त आय को दोगुना करने की बात कर रही है। इसे अशोक दलवई की अध्यक्षता में बनी समिति भी सत्यापित कर रही है।

बहरहाल कृषि से होने वाली आय को बढ़ाने के लिए उत्पादन को बढ़ाना होगा और कृषि लागत में कमी लानी होगी। उत्पादन में वृद्धि बोये गए क्षेत्र में वृद्धि और उत्पादकता में वृद्धि से प्राप्त होती है। हालांकि बोये गए कुल क्षेत्र को एक सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता। इसके साथ यह भी ध्यान देना होगा कि जोत के आकार में लगातार कमी हो रही है। इस कमी का मुख्य कारण परिवारों में होने वाले बंटवारे हैं। 1995-96 में जहां औसत जोत का आकार 1.41 हेक्टेयर था वहीं यह घटकर 2010-11 में 1.15 हेक्टेयर हो गया। 85 प्रतिशत जोतों के आकार 2 हेक्टेयर से कम हैं। अर्थात इतने प्रतिशत जोत सीमांत और लघु जोत के श्रेणी में आते हैं। अनुकूलतम आकार से जोत के आकार कम होने से उत्पादकता में वृद्धि पैमाने की असमानता की वजह से नहीं लाई जा सकती इसलिए कृषि को लाभप्रद बनाए रखने के लिए जोतों के कम होते आकार पर विशेष ध्यान देना होगा और इसे रोकने के प्रयास करने होंगे। सामूहिक कृषि से इसका हल निकल सकता है। भूमि पट्टे पर देना भी इस लिहाज से कारगर हो सकता है। वर्तमान केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में एक कदम उठाया है और मॉडल अधिनियम 2016 लागू किया है।

उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उत्तम प्रकार के बीज जैसे हाइब्रिड बीज आदि का उपयोग बढ़ाना होगा। दूसरी तरफ उत्पादन-दक्षता को भी सुधारना होगा, क्योंकि वर्तमान में उत्पादन-दक्षता अधिकांश उपजों की कम है जिस कारण वास्तविक उत्पादन संभावित उत्पादन से काफी कम रहता है। मिट्टी परीक्षण कराकर परीक्षण-परिणाम के अनुसार उर्वरक और अन्य पोषक तत्वों का उपयोग करने से उत्पादकता और उत्पादन-दक्षता दोनों में ही वृद्धि होगी। मोदी सरकार ने मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के नाम से इस क्षेत्र में एक योजना शुरू की है जिसके तहत किसानों के खेतों की मिट्टी का परीक्षण करके उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड मुहैया कराया जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 9.9 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराया जा चुका है। 2017 के अंत तक और 13 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को अभी तक 76 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है और 24 प्रतिशत सिर्फ ढाई महीने में हासिल करने की चुनौती है। हाल ही में एक अध्ययन के दौरान उत्तर प्रदेश राच्य के फिरोजाबाद जिले के परतापुर गांव में किसानों से बातचीत करने पर यह पता चला कि वहां किसी भी किसान की मिट्टी का परीक्षण नहीं हुआ है। इससे यह प्रतीत होता है कि मृदा परीक्षण के काम में तेजी लानी होगी।

कृषि लागत का एक बड़ा हिस्सा मजदूरों और सिंचाई पर खर्च होता है। मजदूरी पर होने वाले खर्चे को मशीनीकरण को बढ़ावा देकर कम किया जा सकता है। चूंकि अधिकांश किसान संसाधनहीन लघु और सीमांत किसान हैं इसलिए कस्टम हायरिंग सेंटर जैसी योजना अधिक कारगर साबित हो सकती है। इस योजना का एक और लाभ है कि कुछ नवयुवकों को रोजगार भी प्राप्त होगा। सिंचाई पर होने वाले खर्च में कमी तब तक नहीं हो सकेगी जब तक हम इसके तरीके में बदलाव नहीं लाएंगे और भू-पृष्ठ जल और भूजल का संयुक्त उपयोग नहीं करेंगे। साथ ही साथ जल संचयन को भी बढ़ावा देना होगा। जहां सिंचाई के लिए किसानों की निर्भरता भूजल पर बढ़ती जा रही है वहीं भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। जिससे पानी को भूगर्भ से बाहर लाने में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ रही है। इस प्रकार किसानों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ रहा है और वातावरण पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

किसान किसी प्रकार यदि उपज पैदा कर भी लेते हैं तो उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता है। हाल ही में कुछ राच्य सरकारों ने कृषि ऋण को माफ करने की घोषणा की है, लेकिन किसानों से बात करने पर यह पता चलता है कि वे ऋण माफी की जगह अपने उत्पाद के उचित मूल्य प्राप्त करने को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। उचित मूल्य न मिलने का एक बहुत बड़ा कारण अधिक उत्पादन भी है। जैसे इस वर्ष उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए आलू बोझ बन गया है। अधिक पैदावार के कारण किसानों को शीतगृह में आलू रखने के खर्चे को भी निकाल पाना कठिन हो गया है। किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए ज्यादातर सरकारी खरीद योजना ही उपयोग में लाई जाती है, जबकि इससे बेहतर होगा कि स्थानीय स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा दिया जाय। इससे गैर-कृषि रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। इसके साथ-साथ मानकीकरण और श्रेणीकरण को भी बढ़ावा देना पड़ेगा जिससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को अपनी जरूरत के अनुसार उपज प्राप्त हो जाए।

उपरोक्त उपायों से किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है। इन उपायों को ईमानदारी और मिशन के तरीके से लागू करने के लिए राच्य सरकारों की प्रबल इच्छाशक्ति और कुशल नौकरशाही की आवश्यकता है। जनधन योजना इन दोनों के समन्वयन का एक उचित उदाहरण है। कुछ उसी प्रकार से कृषि आय बढ़ाने वाले इन उपायों को भी लागू करने की आवश्यकता है।(आभार सहित दैनिक जागरण )
(लेखक आर्थिक विकास संस्थान में प्राध्यापक सदस्य हैं)

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