शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्य में रखा भारत का पक्ष
डॉ. वेदप्रताप वैदिक, विदेश मामलों के जानकार

पी एम मोदी ने अपने वक्तव्य में चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ की पहल पर निशाना बनाया, जिसके तहत वह पाक के कब्जे वाले कश्मीर में निर्माण कर रहा है। मोदी ने अपने बयान को चीन के OBOR को अपनी संप्रभुता के खिलाफ बताया। इसे OBOR पर अप्रत्यक्ष प्रहार माना जा रहा है। मोदी ने कहा कि भारत सभी SCO देशों के साथ सहयोग करना पसंद करेगा। उन्होंने अफगानिस्तान में शांति के मजबूत प्रयास करने के लिए अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी की प्रशंसा की और उम्मीद जताई कि सभी पक्ष उनके इन कामों की सराहना करेंगे।

भारत का SCO में आना कितना असरदार?

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों की मानें तो शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में चीन, रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। भारत का कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। एससीओ को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है. एससीओ से जुड़ने से भविष्य में भी भारत को फायदा होगा। भारतीय हितों की जो चुनौतियां हैं, चाहे वो आतंकवाद हों, ऊर्जा की आपूर्ति या प्रवासियों का मुद्दा हो। ये मुद्दे भारत और एससीओ दोनों के लिए अहम हैं और इन चुनौतियों के समाधान की कोशिश हो रही है। ऐसे में भारत के जुड़ने से एससीओ और भारत दोनों को दूरगामी फायदा होगा। इस बार भारत पहली बार शंघाई सहयोग संगठन में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ।

समिट में हुई बातचीत, हमारे देश की ये चिंताएं हुईं दूर

विशेषज्ञों का कहना है कि शंघाई सहयोग संगठन में चर्चा से पहले वुहान में जब प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की मुलाक़ात हुई थी उसमें कोई एजेंडा नहीं था। वो दोनों देशों की आपसी समझ को बढ़ाने की मुलाकात थी, लेकिन इस समिट में हुई मुलाकात में दोनों देशों के द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की गई। ब्रह्मपुत्र के पानी के डेटा को लेकर एमओयू हुआ। चावल और अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात को लेकर भी नई सोच बनी है। दवाइयों और सूचना प्राद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के सहयोग को बढ़ाने पर बात हुई है। हालांकि ब्रह्मपुत्र के पानी के डेटा को लेकर जो समझौता हुआ है उस पर हम संतोष कर सकते हैं, लेकिन चीन पहले भी कई बार ऐसे समझौतों का उल्लंघन कर चुका है। इसलिए उस पर आंख मूंदकर भरोसा करना ठीक नहीं होगा। भारत और चीन के बीच साल 2005 में ब्रह्मपुत्र के पानी से जुड़े डेटा को साझा करने को लेकर सहमति बनी थी, लेकिन बीते साल डोकलाम में हुए तनाव के बाद चीन ने भारत को डेटा देना बंद कर दिया था।

बदली अमेरिकी नीतियों ने लाया हमें चीन के करीब!

भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा भी एक बड़ा मुद्दा है। बीते साल भारत और चीन के बीच व्यापारिक घाटा 51 अरब डॉलर था। विशेषज्ञों के अनुसार व्यापारिक घाटे के इस मुद्दे को सुलझाने की भी बात भारत और चीन के बीच हुई है। ऐसे समझौतों के बीच भारत और चीन का आपसी तालमेल अच्छा होना दोनों ही देशों के लिए बहुत ज़रूरी हो जाता है। अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव आने के बाद ये और भी महत्वपूर्ण हो गया है। ट्रंप अब अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं, जिसकी वजह से एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बड़े राष्ट्रों के दबंग नेता नई तरह की नीतियां अपना रहे हैं। अनौपचारिक मुलाकातें इसी नीति का हिस्सा हंै। नरेंद्र मोदी 2018 में शी जिनपिंग से करीब चार और मुलाकातें अलग-अलग सम्मेलनों में करने वाले हैं। ये नई तरह की कूटनीति हो रही है। चीन और भारत के बीच कई मुद्दों को लेकर गंभीर विवाद भी हैं। ऐसे में शंघाई सहयोग संगठन जैसे प्लेटफॉर्म बातचीत के लिहाज से फायदेमंद साबित होते हैं।

सधे अंदाज में पाक को नसीहत

प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान में आतंकवाद की बात कहकर परोक्ष रूप से पाकिस्तान पर निशाना साधा है। दरअसल विशेषज्ञों के अनुसार चीन की पूरी कोशिश थी कि भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव इस समिट में न उभरे। ऐसे में मोदी का नपा-तुला बयान पाक को नसीहत भी दे गया और आपसी झगड़ों से समिट पर पड़ने वाला प्रभाव भी नहीं उभरा। वैसे शंघाई सहयोग संगठन में पाकिस्तान भी पहली बार सदस्य देश के रूप में शामिल हुआ है।

SCO के बहाने ईरान से करीबी

भारत और ईरान के बीच हाल के आपसी संबंध जिस तरह से पारिभाषित हुए हैं, उस लिहाज से ईरान का पर्यवेक्षक के रूप से इस साल इस समिट में शामिल होना हमारे लिए फायदेमंद है। इससे एससीओ का महत्व भी काफी बढ़ गया है। ईरान का चीन के न्यौते को स्वीकार कर रूहानी का चीन पहुंचना एक बड़ा संकेत है। ईरान रूस, चीन और कुछ हद तक भारत के साथ हाथ मिलाकर अमेरिका को जवाब देना चाहते हैं।

विश्व में इस समय खट्‌टे-मीठे संबंधों का चल रहा दौर

शंघाई सहयोग संगठन की यह बैठक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण थी कि पिछले 17 साल में भारत और पाकिस्तान, इसके दो पूर्ण सदस्य बने। इस तरह के बहुराष्ट्रीय सम्मेलनों का फायदा यही है कि इनमें एक साथ कई राष्ट्रों से एक-दो दिन में ही द्विपक्षीय बातचीत हो जाती है। चीन के साथ ब्रह्मपुत्र नदी के जल-प्रवाह संबंधी सभी जानकारियों देने का समझौता हो गया। अब उत्तर पूर्व में जल की कमी या बाढ़ आदि की समस्या पर नियंत्रण रखने में भारत को आसानी होगी। दूसरे समझौते के अनुसार बासमती चावल के अलावा सादा चावल भी भारत अब चीन को निर्यात कर सकेगा। इससे व्यापार-संतुलन बढ़ेगा। अमेरिका के द्वारा लगाए जा रहे व्यापारिक प्रतिबंधों की उन्होंने खुलकर आलोचना की। इस समय अमेरिका, चीन और रूस के बीच खट्टे-मीठे संबंधों का नया दौर चल रहा है। इसमें भारत की भूमिका असंलग्न राष्ट्र की नहीं, सर्वसंलग्न राष्ट्र की हो गई है। हमारी विदेश नीति के नए आयाम उभर रहे हैं।

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