(मुख्य फसलें-देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न– सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली– कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई- प्रौद्योगिकी।)

संदर्भ
यह देश के लिये ‘परिवर्तन’ का काल है! या यूँ कहें कि देश परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। आज देश में बहुरंगी क्रांति के लिये अभियान चलाए जा रहे हैं। इन क्रांतियों का उद्देश्य भारत को खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। हालाँकि अपेक्षित प्रगति के बावज़ूद पूर्वोत्तर के मामले में हम थोड़ा पीछे रह गए हैं।

बहुरंगी क्रांति के तहत चलाए जा रहे अभियान
दरअसल, बहुरंगी क्रांति कई सारी क्रांतियों का एक समग्र रूप है, इसमें शामिल क्रांतियाँ हैं:
1. प्रोटीन-समृद्ध दलहन संबंधी ‘दूसरी हरित क्रांति’
2. मवेशी और पशुपालन संबंधी ‘श्वेत क्रांति’
3. सौर ऊर्जा संबंधी केसरिया ‘ऊर्जा क्रांति’
4. स्वच्छ जल तथा मछुआरों के कल्याण संबंधी ‘नील क्रांति’

इनमें से हरित और श्वेत क्रांतियों ने भारतवासियों के जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित करना शुरू कर दिया है। जहाँ तक खाद्य सुरक्षा का संबंध है, भारत को खाद्य आत्मनिर्भरता के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिये। हालाँकि इस संबंध में कई अल्पकालीन तथा दीर्धकालीन कदम उठाए जाने हैं।

हरित क्रांति का उद्देश्य अनाज के उत्पादन में वृद्धि करना है। इस कदम से अनाज के आयात में भारी कमी आई है। हरित क्रांति की बदौलत हम अब अनाज उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भर हो गए हैं और हमारे पास अनाज का प्रचुर भण्डार मौजूद है।

हम अब अनाज का निर्यात करने में सक्षम हो गए हैं। हरित क्रांति के कारण खेती के तौर-तरीकों में आमूलचूल परिवर्तन आया है। इसके कारण विभिन्न प्रकार की मशीनों, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवार को नष्ट करने के तरीकों की मांग काफी बढ़ गई है। इसके परिणामस्वरूप कृषि आधारित उद्योग पनप रहे हैं तथा देश में भारी मात्रा में रोज़गार के अवसर पैदा हो रहे हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में खाद्य सुरक्षा

पूर्वोत्तर भारत प्राकृतिक संसाधनों में बहुत समृद्ध है, लेकिन इसके बावजूद भी आज़ादी के समय से ही यह क्षेत्र पिछडा हुआ है। आज दूसरी हरित क्रांति आरम्भ होने वाली है, लेकिन इसकी शुरुआत पूर्व से होनी चाहिये।
उल्लेखनीय है कि दूसरी हरित क्रांति की शुरूआत असम से होगी। कृषि मंत्रालय ने असम को पूर्वी राज्यों की उस सूची में शामिल कर लिया है, जिन्हें दूसरी हरित क्रांति के दायरे में लाया जाना है।

पूर्वी राज्यों में असम को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के लिये पुरस्कृत किया गया है। इस मिशन के तहत चावल उत्पादन को बढ़ावा देने में असम ने उल्लेखनीय काम किया है।

पूर्वोत्तर में विकास की संभावनाएँ क्यों?

पर्याप्त जल, उपजाऊ ज़मीन और मेहनती किसान पूर्वोत्तर की पहचान है। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने के लक्ष्य की पूर्ति में इस क्षेत्र में अपार क्षमताएँ विद्यमान हैं।

असम के गोगामुख में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की आधारशिला रखी गई है , जिसके मद्देनज़र आशा की जानी चाहिये कि पूरा क्षेत्र इससे सकारात्मक रूप से प्रभावित होगा।

पूर्वोत्तर जैविक खेती के क्षेत्र में भी शानदार काम कर सकता है। इस क्षेत्र में कृषि के अनुकूल जलवायु, ज़मीन की विभिन्न किस्में और पर्याप्त वर्षा के कारण यह क्षेत्र बागवानी के लिये भी बहुत फायदेमंद है।

यहाँ के उत्पादों को देश और विदेशों में बेचने के भी अवसर अच्छे हैं। विभिन्न तरह की जलवायु की मौजूदगी के कारण इस क्षेत्र में फल, सब्ज़ियाँ, मसाले और जड़ी-बूटियों की खेती के भी अवसर हैं।

इनके अलावा नींबू, अनानास, हल्दी, अदरक इत्यादि भी इस क्षेत्र में उगाए जाते हैं। राष्ट्रीय उत्पादन में इस क्षेत्र का योगदान 5.1 प्रतिशत (फल) और 4.5 प्रतिशत (सब्ज़ी) है।

इस क्षेत्र की अनोखी बात यह है कि यहाँ कृषि के अनुकूल जलवायु मौजूद है, जो देश के अन्य हिस्सों में उपलब्ध नहीं है। वास्तव में पूर्वोत्तर बाज़ार अपने आप में बहुत अनोखा है। यहाँ गैर-मौसमी उपज भी उपलब्ध हो जाती है जो यहाँ की जलवायु विविधता के कारण संभव है।

समस्याएँ क्या हैं ?

अन्य मोर्चों पर प्रगति के बावज़ूद पूर्वोत्तर भारत में दूध और दुग्ध उत्पादों की खपत काफी कम है। इसका कारण विभिन्न प्रकार के भोजन करने की आदत और दूध की कम उपलब्धता है।

असम सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य है। उसके बाद त्रिपुरा का स्थान है। हाल में त्रिपुरा में दूध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। हालाँकि इस संबंध में किये जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे

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