ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 के अंत तक कार्बन उत्सर्जन की दर पिछले साल की तुलना में 2 फीसदी अधिक हो जाएगी। स्टडी के मुताबिक इस उत्सर्जन के लिए जीवश्म ईंधन का इस्तेमाल और उद्योग जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में कार्बन बजट पर भी चर्चा की गयी।

कार्बन बजट 2017 के मुताबिक, यह पहला मौका है जब ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तीन सालों तक सामान्य रहने के बाद बढ़ा है। कार्बन बजट को बॉन के जलवायु सम्मेलन कॉप 23 में पेश किया गया। रिपोर्ट के प्रमुख शोधार्थी कॉरिने ली क्वेरे ने इसे बेहद ही निराशाजनक बताया है।

प्रमुख तथ्य:

साल 2017 के दौरान मानवीय क्रियाओं के चलते कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन तकरीबन 41 अरब मीट्रिक टन तक रहने का अनुमान है। स्टडी में कहा गया है कि कुल 41 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में से 37 अरब के उत्सर्जन के लिए जीवाश्म ईंधन और उद्योग जगत जिम्मेदार हैं।

उत्सर्जन में इस रिकॉर्ड बढ़त को देखते हुए, विशेषज्ञों का अनुमान है कि ग्लोबल कार्बन बजट अगले 20 से 30 सालों में समाप्त हो जायेगा।

क्या है कार्बन बजट?

बजट, कार्बन की उस मात्रा को दर्शाता है जिसे हम वातावरण में छोड़ सकते हैं और छोड़ी गयी मात्रा जलवायु लक्ष्य पार नहीं करती है। बजट का अनुमान ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा निर्धारित होता है।

चीन और भारत में वृद्धि:

शोधकर्ताओं के मुताबिक वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि का एक कारण अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तेजी भी है। रिपोर्ट के सह-लेखक रॉबर्ट जैक्सन के मुताबिक, “वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी आ रही है। विकासशील देशों की जी़डीपी में वृद्धि हो रही है और ये देश अधिक वस्तुओं का उत्पादन कर रहे हैं, जिसके चलते भी उत्सर्जन बढ़ रहा है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन 28 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है और पिछले साल की तुलना में इसमें 3.5 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं भारत के कार्बन उत्सर्जन में भी 2 फीसदी की वृद्धि हुई है।

भारत के संबंध में रिपोर्ट से जुड़े तथ्य:

भारत का उत्सर्जन भी 2017 में बढ़ने का अनुमान है। लेकिन ये पिछले साल के मुकाबले महज 2 फीसदी ज्यादा है। पिछले एक साल में भारत में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 6 फीसदी प्रतिवर्ष की औसत से बढ़ा है। पिछले साल ये आंकड़ा 6.7 फीसदी था। रिपोर्ट मानती है कि इसके पीछे भारत में सोलर एनर्जी के इस्तेमाल में आई तेजी है लेकिन रिपोर्ट ये भी कहती है कि अर्थव्यवस्था में आई मंदी भी इसकी वजह हो सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था इन बाधाओं से पार पाने में सक्षम है इसलिए 2018 में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन फिर से 5 फीसदी से ज्यादा रह सकता है। जीवाश्म ईंधन और औद्योगिक इस्तेमाल से भारत का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 2.5 गीगाटन है दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर ये 36.8 गीगाटन है। इसमें चीन की हिस्सेदारी 10.5 गीगाटन, अमेरिका की 5.3 गीगाटन, यूरोपीय यूनियन की 3.5 गीगाटन और बाकी दुनिया की 15.1 गीगाटन हिस्सेदारी है।

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