*चर्चा में क्यों?*

हाल ही में गुजरात के कांडला बंदरगाह से गेहूँ से लदे एक जहाज़ को चाबहार बंदरगाह के रास्ते अफगानिस्तान रवाना किया गया है और इसके साथ ही भारत के सहयोग से निर्मित ईरान के इस बंदरगाह का औपचारिक संचालन आरंभ हो गया है। विदित हो कि चाबहार भारत एवं अफगानिस्तान के बीच एक वैकल्पिक एवं विश्वसनीय मार्ग है।

*क्यों महत्त्वपूर्ण है यह घटनाक्रम?*

चाबहार पर परिचालन आरंभ होना कई अन्य कारणों के अलावा इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसके साथ ही भारत ईरान एवं अफगानिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन समझौता अमल में आ गया जिस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तेहरान में मई 2016 में हस्ताक्षर किये थे।
दक्षिण एशिया में चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ के समानांतर एक व्यवस्था कायम रखने हेतु भारत के लिये अफगानिस्तान व्यापक महत्त्वों वाला है और इस कदम से भारत ने अफगानिस्तान की समृद्धि एवं विकास हेतु सहयोग जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई है।

*भारत के लिये चाबहार का महत्त्व*-

 

मध्य युगीन यात्री अल-बरूनी द्वारा चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार (मध्य एशिया से) कहा गया था। ज्ञात हो कि यहाँ से पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी महज 72 किलोमीटर दूर रह जाता है, जिसके विकास के लिये चीन द्वारा बड़े स्तर पर निवेश किया जा रहा है।
चाबहार भारत के लिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के द्वार खोल सकता है और यह बंदरगाह एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने के लिहाज़ से सर्वश्रेष्ठ जगह है।
भारत वर्ष 2003 से ही इस बंदरगाह के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के प्रति अपनी रुचि दिखा रहा है। लेकिन ईरान पर पश्चिमी प्रतिबंधों और कुछ हद तक ईरानी नेतृत्व की दुविधा की वज़ह से इसके विकास की गति धीमी रही। लेकिन, पिछले तीन वर्षों में काफी प्रगति भी हुई है।
चाबहार कई मायनों में ग्वादर से बेहतर है, क्योंकि:
♦ चाबहार गहरे पानी में स्थित बंदरगाह है और यह ज़मीन के साथ मुख्य भू-भाग से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ सामान उतारने-चढ़ाने का कोई शुल्क नहीं लगता।
♦ यहाँ मौसम सामान्य रहता है और हिंद महासागर से गुजरने वाले समुद्री रास्तों तक भी यहाँ से पहुँच बहुत आसान है।
चाबहार बंदरगाह पर परिचालन आरंभ होने के साथ ही अफगानिस्तान को भारत से व्यापार करने के लिये एक और रास्ता मिल जाएगा।
विदित हो कि अभी तक पाकिस्तान के रास्ते भारत-अफगानिस्तान के बीच व्यापार होता है, लेकिन पाकिस्तान इसमें रोड़े अटकाता रहता है।
पाकिस्तान के इस रुख से अफगानिस्तान तो असहज महसूस करता है ही साथ में भारत अफगानिस्तान को साधने की अपनी नीति में भी कठिनाइयाँ महसूस करता है। अतः चाबहार परियोजना भारत के लिये अत्यंत ही महत्त्वों वाला है।

*निष्कर्ष*-

व्यापारिक और कुटनीतिक दोनों ही दृष्टि से चाबहार का अपना महत्त्व है। गौरतलब है कि ईरान-इराक युद्ध के समय ईरानी सरकार ने इस बंदरगाह को अपने समुद्री संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये इस्तेमाल किया था।
हालाँकि इन बातों के बावजूद भारत में एक तबका है जो मानता है कि तालिबान या किसी अन्य चरमपंथी समूह ने अगर काबुल पर कब्ज़ा कर लिया तो चाबहार में भारत का पूरा निवेश डूब जाएगा। लेकिन, इन आशंकाओं के बावजूद हमें चाबहार की अहमियत तो पहचाननी ही होगी।
यह अफगानिस्तान तक सामान पहुँचाने के लिये यह सबसे बढ़िया रास्ता है, यहाँ वे तमाम सुविधाएँ हैं, जिनके मार्फत अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि ईरान में भी आसानी से व्यावसायिक पहुँच बनाई जा सकती है।

 

*स्रोत: द हिन्दू*

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