ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित पनबिजली के आंकड़े भारत से साझा करने के लिए चीन का राजी होना इस बात का संकेत है कि द्विपक्षीय रिश्तों को बेहतर बनाने की भरपूर गुंजाइश है।ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित पनबिजली के आंकड़े भारत सेसाझा करने के लिए चीन का राजी होना इस बात का संकेत है कि द्विपक्षीय रिश्तों को बेहतर बनाने की भरपूर गुंजाइश है। ये आंकड़े भारत के लिए काफी अहमियत रखते हैं, क्योंकि इनके जरिए पूर्वोत्तर में बाढ़ के बारे में अनुमान लगाना और बाढ़ से निपटने की योजना बनाना आसान हो जाता है। अगर जल स्तर और जल प्रवाह के बारे में अद्यतन सूचनाएं बराबर मिलती रहें, तो बाढ़ नियंत्रण के प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं, एहतियाती उपाय भी किए जा सकते हैं। असम तो दशकों से अमूमन हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलता आया है। कुदरत का उतार-चढ़ाव नहीं रोका जा सकता, पर सावधानी और प्रबंधन के बल पर प्रकृति का कोप कम जरूर किया जा सकता है। ब्रह्मपुत्र के जल-स्तर और प्रवाह के बारे में सूचनाएं मुहैया कराने के लिए चीन का राजी होना कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2006 में ही दोनों देशों के बीच इस तरह का समझौता हो गया और साल-दर-साल उस पर अमल भी होता रहा। समझौता यह हुआ था कि पंद्रह मई से पंद्रह अक्टूबर तक ब्रह्मुपत्र की गति, प्रवाह और जल-स्तर संबंधी जानकारी चीन हर रोज भारत को देगा।

लेकिन पिछले साल चीन ने ये आंकड़े भारत को मुहैया नहीं कराए, यह कहते हुए आंकड़े देने वाले तिब्बत स्थित केंद्र में आधुनिकीकरण का काम जारी होने के कारण ये आंकड़े देने में वह असमर्थ है। पर तमाम कूटनीतिकों का अनुमान था कि डोकलाम-गतिरोध की वजह से चीन ने ब्रह्मपुत्र के आंकड़े भारत को देने बंद कर दिए। डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच गतिरोध तिहत्तर दिनों तक चला था। गौरतलब है कि डोकलाम-गतिरोध के बाद यह पहली बार होगा जब चीन से ब्रह्मपुत्र के आंकड़े भारत को मिलेंगे। करीब बारह साल पहले हुए समझौते को जारी रखने और उस पर अमल करने का निर्णय दोनों देशों के जल संसाधन संबंधी आला अधिकारियों की बैठक में लिया गया। इस मसले पर दो दिन चली बैठक चीन के पूर्वी शहर हांगझोऊ में संपन्न हुई। उल्लेखनीय है कि चीन ने व्यापार घाटे से संबंधित भारत की शिकायत पर भी सकारात्मक संकेत दिया है। चीन के साथ भारत का व्यापार तो काफी बढ़ा है, पर चीन से होने वाले आयात के मुकाबले चीन को होने वाला भारत का निर्यात काफी कम रहा है।

वित्तवर्ष 2016-17 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 51 अरब डॉलर था, जो कि उससे पहले के साल में 52.69 अरब डॉलर था। चालू वित्तवर्ष की अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में यानी केवल सात महीनों में चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे का आंकड़ा 36.73 अरब डॉलर पर पहुंच गया। आपसी व्यापार के असंतुलन को दूर करने की मांग भारत ने एक बार फिर उठाई है। इस पर चीन के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री जांग शन ने भरोसा दिलाया है कि भारतीय उत्पादों और सेवाओं को चीन में अधिक बाजार पहुंच उपलब्ध कराया जाएगा। इस तरह की बात चीन की ओर से पहली बार नहीं कही गई है। इसलिए स्वाभाविक ही यह सवाल उठता है कि जांग शन ने जो आश्वासन दिया है, क्या उस पर चीन संजीदगी से अमल करेगा, और क्या यह सराकात्ममक रुख अन्य मामलों में भी दिखेगा?

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