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* 23 December 2017*

1.व्यापक हित देख अरब देशों के साथ खड़ा हुआ भारत
• अमेरिका और इजरायल के साथ हाल के वर्षो में प्रगाढ़ होते रिश्तों के बावजूद भारत ने यरुशलम के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में अरब देशों के साथ खड़े होकर यह दिखा दिया है कि उसकी विदेश नीति अभी भी पूरी तरह से स्वतंत्र है।
• वैसे इस बारे में फैसला करना भारतीय कूटनीतिकारों के लिए आसान नहीं था। गुरुवार को देर शाम न्यूयार्क स्थित यूएन मुख्यालय में वोटिंग शुरू होने से कुछ घंटे पहले तक भारत पसोपेश में था, लेकिन यूरोपीय देशों और खाड़ी देशों के बड़े तबके के इस प्रस्ताव के पक्ष में खड़ा होते देख भारत ने भी इसका समर्थन करने का फैसला कर लिया।
• विदेश मंत्रालय को भरोसा है कि अमेरिका यह समङोगा कि फलस्तीन और इजरायल के बीच विवाद पर भारत ने अपनी दशकों पुरानी नीति पर ही अमल किया है।
• अमेरिका की तरफ से यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने के खिलाफ अरब देशों ने एक प्रस्ताव यूएनजीए में पेश किया था। इसके समर्थन में भारत समेत 128 देशों ने वोट किया जबकि सिर्फ नौ देश अमेरिका के साथ खड़े हुए हैं। 35 देश वोटिंग से बाहर रहे जिसे एक तरह से अमेरिका का समर्थक ही माना जा रहा है।
• अमेरिका की तरफ से उसके खिलाफ जाने वाले देशों को आर्थिक मदद रोकने और उनका नाम सार्वजनिक करने समेत कई तल्ख बयान देने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में देशों ने उसकी इस नीति का विरोध किया।
• भारत पर अमेरिका व इजरायल के साथ ही अरब देशों की तरफ से भारी दबाव था। अमेरिका चार दिन पहले ही अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में भारत को एक वैश्विक शक्ति करार देते हुए उसके साथ गहरे ताल्लुक स्थापित करने की बात कर चुका है। जबकि इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतान्याहू अगले महीने भारत आने की तैयारियां कर रहे हैं।
• क्या इस फैसले का असर अमेरिका या इजरायल के साथ प्रगाढ़ हो रहे रिश्तों पर पड़ेगा। विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर से जब इस बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि, ‘हम फलस्तीन मुद्दे पर दशकों पुरानी अपनी नीति को आगे बढ़ा रहे हैं।
• हम इजरायल के साथ अपने रिश्तों को लेकर पूरी तरह से पारदर्शिता रखते हैं और दुनिया को डंके की चोट पर बताते हैं कि हमारे साथ बेहद करीब है। लेकिन कुछ नीतियों को बेहद व्यापकता में देखा जाना चाहिए। भारत नहीं चाहता कि इजरायल व फलस्तीन के बीच समझौता होने से पहले ही यरुशलम पर फैसला हो जाए।’
• यूएन में फलस्तीन पर 16 बार मतदान हुआ है और इनमें 15 बार भारत ने फलस्तीन के पक्ष में वोट किया है। बताते चलें कि 50 से ज्यादा अरब देशों के राजदूतों ने पिछले दिनों अकबर से मुलाकात की थी और अपना पक्ष रखा था।
• विदेश सचिव एस जयशंकर के मुताबिक, ‘हमने अमेरिका या इजरायल के खिलाफ वोट नहीं किया बल्कि भारत ने अरब देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया है।’ कूटनीतिक सूत्रों के मुताबिक अमेरिका और इजरायल के साथ रिश्तों को इस वोटिंग से नहीं जोड़ा जा सकता। भारत यह साफ कर चुका है कि अगर फलस्तीन मुद्दे के समाधान में यरुशलम को इजरायल को सौंपा जाता है तो वह उसका स्वागत करेगा।
• इसी तरह से भारत अमेरिका के साथ तमाम वैश्विक मुद्दों पर सहयोग को प्रगाढ़ करने की अपनी नीति को जारी रखेगा। इसके अलावा अरब देशों को इस मुश्किल वक्त में साथ देकर भारत आने वाले दिनों में उनका समर्थन भी हासिल करने की कोशिश करेगा। ये देश कई बार कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की हां में हां मिलाते हैं।

2. दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की अगुआई में हुई बैठक : सहमति से विवाद हल करेंगे भारत-चीन
• भारत और चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) की अगुआई में शुक्रवार को सीमा विवाद सुलझाने समेत तमाम द्विपक्षीय मुद्दों का सर्वमान्य हल निकालने पर अहम बातचीत हुई। डोकलाम विवाद के बाद पहली बार एनएसए स्तर पर होने वाली इस बातचीत में यह सहमति बनी कि सीमा से जुड़े तमाम विवादित मुद्दों का आपसी सहमति के आधार पर समाधान निकाला जाएगा।
• यह भी सहमति बनी कि सीमा पर शांति बनाए रखी जाएगी ताकि सीमा विवादों का स्थायी समाधान निकाला जा सके। बैठक के बाद भारतीय एनएसए अजीत डोभाल व चीन के एनएसए यान जइची ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात और उन्हें बैठक में हुई बातचीत का ब्यौरा दिया।
• विदेश मंत्रालय ने इस बातचीत को ‘सकारात्मक’ करार दिया है, लेकिन विदेश मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि इस तरह की अभी कई दौर की बैठकें करनी होगी तभी तकरीबन 4000 किलोमीटर लंबी द्विपक्षीय सीमा से जुड़े विवादों का समाधान निकाला जा सकेगा।
• भारत और चीन ने वर्ष 2003 में एनएसए स्तर की बातचीत शुरू करने का फैसला किया था। इसे विशेष प्रतिनिधि स्तरीय वार्ता का नाम दिया गया है, जिसकी यह 20वीं बैठक थी। विदेश मंत्रलय का कहना है कि बैठक का मुख्य उद्देश्य यह था कि किस तरह से दोनों देश आपसी रिश्तों को मजबूत बनाकर उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाए।
• वैसे भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि इस बैठक में डोकलाम मुद्दे पर बात हुई या नहीं। भूटान की सीमा पर स्थित डोकलाम को लेकर दोनों देशों के बीच जुलाई से लेकर अक्टूबर तक तनाव की स्थिति बनी रही। इसे हाल के दशकों के दौरान दोनों देशों के बीच सबसे तनाव वाला समय करार दिया गया है।
• माना जा रहा है कि एनएसए स्तरीय बातचीत में इस तरह के तनावपूर्ण स्थिति दोबारा न हो, इसकी भी कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए क्या-क्या करना होगा, इन उपायों पर भी बात हुई है। बहरहाल, यह तो सहमति बन गई है कि दोनों देश लगातार संपर्क में रहेंगे और बातचीत का सिलसिला बनाए रखेंगे। विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी सूचना के मुताबिक विवादों का सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश में दोनों देश एक-दूसरे की संवेदनाओं का भी ख्याल रखेंगे।
• भारत और चीन ने यह भी स्वीकार किया है कि एशिया और विश्व में शांति, स्थायित्व व विकास के लिए जरूरी है कि इनके बीच रिश्ते भी बेहतर हों।

3. नीली भेड़ों की रहस्यमयी बीमारी पर एनजीटी सख्त
• नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने दिल्ली सरकार एवं अन्य संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि यमुना में सीधे किसी प्रकार का रक्त न बहे। वध किए गए पशुओं का रक्त यमुना में बहाए जाने पर टिब्यूनल ने यह निर्देश दिया है।
• एनजीटी के कार्यकारी अध्यक्ष यूडी साल्वी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह निर्विवाद है कि पशुओं का रक्त नदी में जाता है। यह जल (संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम 1974 के प्रावधानों का उल्लंघन है। इसे अनिवार्य रूप से रोका जाना चाहिए।
• पीठ ने कहा, ‘इसीलिए हम 24 सितंबर 2015 के अंतरिम आदेश को पूर्ण के रूप में निर्देश दे रहे हैं। सभी प्रतिवादी यह सुनिश्चित करें कि वध किए गए पशु के रक्त का एक कतरा भी सीधे यमुना में प्रभावित होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।’
• धार्मिक समूह ओजस्वी पार्टी की याचिका पर सुनवाई के दौरान एनजीटी ने यह निर्देश दिया। याची ने पशुओं के वध के कारण यमुना में हो रहे प्रदूषण के खिलाफ ग्रीन टिब्यूनल में याचिका दायर की थी। याचिका में वध किए गए पशु का रक्त नदी में प्रवाहित होने पर सवाल उठाया गया था।

4. लोन डिफॉल्टरों के नाम उजागर हों: समिति
• बढ़ते फंसे कर्जो (एनपीए) की चिंता के बीच एक संसदीय समिति ने बैंकिंग कानून में संशोधन का सुझाव दिया है। समिति का कहना है कि कानून में डिफॉल्टरों के नाम सार्वजनिक करने का प्रावधान जोड़ा जाना चाहिए।
• समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को सदन के पटल पर रखी गई।रिपोर्ट में कहा गया कि बैंकों की दबावग्रस्त संपत्तियां यानी फंसे कर्ज नियंत्रित करने और उनकी बैलेंस शीट में सुधार की सख्त जरूरत है। इससे उनकी विश्वसनीयता बढ़ेगी और पूंजी जुटाना आसान होगा।
• समिति ने एनपीए की समस्या से निपटने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक के स्तर पर उठाए जा रहे कदमों पर संतोष जताया है। समिति ने कहा कि एसबीआइ कानून और अन्य संबंधित बैंकिंग कानूनों में संशोधन के जरिये कर्ज नहीं चुकाने वालों के नाम सार्वजनिक करने का रास्ता साफ होना चाहिए। रिजर्व बैंक भी ऐसे लोगों के नाम सार्वजनिक करने के पक्ष में है।
• हालांकि वित्त मंत्रलय का मानना है कि ऐसा करने से डिफॉल्टरों की ऐसी कंपनियों का पुनरुद्धार भी मुश्किल हो जाएगा, जिन्हें बेहतर स्थिति में लाया जा सकता है।
• एमटीएनएल व बीएसएनएल का हो विलय : संसदीय समिति ने घाटे में चल रही सरकारी टेलीकॉम कंपनियों एमटीएनएल और बीएसएनएल के विलय का सुझाव दिया है।
• समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि ऐसा करने से इन कंपनियों को निजी कंपनियों के सामने खड़े होने का मौका मिल सकता है।

5. कैटेलोनिया के मध्यावधि चुनाव में अलगाववादियों को मिला बहुमत
• कैटेलोनिया में हुए मध्यावधि चुनावों में अलगाववादियों ने बहुमत हासिल कर लिया है। इससे स्पेन की केंद्रीय सरकार को करारा झटका लगा है। साथ ही कैटेलोनिया संकट और गहरा गया है। स्पेन के साथ रहने की पक्षधर सिटीजंस पार्टी को 25 फीसद वोट ही मिले हैं। 135 सदस्यों वाली संसद में उसे 37 सीटें मिली हैं।
• कैटेलोनिया की आजादी की समर्थक टूगेदर फॉर कैटेलोनिया पार्टी, रिपब्लिकन लेफ्ट ऑफ कैटेलोनिया और पापुलर यूनिटी ने कुल 70 सीटें जीती हैं। 1गत अक्टूबर में कैटेलोनिया की आजादी के लिए हुए जनमत संग्रह को स्पेन सरकार ने अवैध करार देते हुए अलगाववादियों की सरकार को बर्खास्त कर दिया था।
• यही नहीं, स्पेनिश प्रधानमंत्री मारियानो राखोय ने कैटेलोनिया के राष्ट्रपति चाल्र्स पुइगदेमोंत के खिलाफ विद्रोह का मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। इसके बाद पुइगदेमोंत ने खुद को ब्रसेल्स में स्वनिर्वासित कर लिया। कैटेलोनिया में 21 दिसंबर को मध्यावधि चुनाव कराए गए।
• चुनाव नतीजों में अलगाववादी पार्टियों के धड़े में ही चाल्र्स पुइगदेमोंत की टूगेदर फॉर कैटेलोनिया, रिपब्लिकन लेफ्ट ऑफ कैटेलोनिया से थोड़ा आगे है। पुइगदेमोंत ने ब्रसेल्स में कहा कि कैटेलन रिपब्लिक ने चुनाव जीत लिया है। उन्होंने नतीजों को स्पेन सरकार की हार करार दिया है।

6. भारत ने यूएन में कहा- आतंकियों के पनाहगाह को नष्ट किया जाना चाहिए
• भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा है कि आतंकी संगठनों को मिलने वाले समर्थन पर रोक लगाई जाए और आतंकवादियों के पनाहगाहों को नष्ट किया जाना चाहिए। यूएन में भारत के अधिकारी तन्मय लाल ने कहा कि तालिबान, हक्कानी नेटवर्क और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के समर्थकों को रोकने के तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
• यूएन सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान में सुरक्षा को लेकर खुली बहस में तन्मय लाल ने कहा कि आतंकी अस्पतालों में बीमार लोगों, स्कूलों में बच्चों और मस्जिदों में नमाजियों सहित हर जगह को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने अफगानिस्तान में सुरक्षा के हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि आतंकवादी संगठनों को सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

7. सूर्य जैसा नया तारा मिला अपने ही ग्रहों को निगल रहा
• अनंत रहस्यों को खुद में छिपाए ब्रह्माण्ड हमेशा से खोगलविदों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। दुनियाभर के वैज्ञानिक भी विशाल दूरबीनों की मदद से आसमान की निगरानी करते रहते हैं और नए ग्रहों और तारों का पता लगाते रहते हैं। इसी कड़ी में वैज्ञानिकों ने एक बड़ी खोज की है। इस बार वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तारा खोज निकाला है जो हमारे सूर्य जैसा है।
• कई सौर मंडल के बारे में सामने आएंगे नए तथ्य : सूर्य जैसा यह तारा हमारी धरती से 550 प्रकाश वर्ष दूर है। यह तारा परिक्रमा कर रहे अपने ही ग्रहों को धीरे-धीरे निगल रहा है। इसे खोजने वाले खगोलविदों का कहना है कि यह तारा इन ग्रहों को गैस के विशाल बादलों या धूल में तब्दील कर रहा है।
• इस दूरवर्ती तारे को आरजे पिसियम नाम दिया गया है। इस खोज से हमारे समेत कई सौर मंडल की परिवर्तनशील अवधि के इतिहास पर नई रोशनी पड़ सकती है।
• नए ग्रहों के बनने का पता चला : अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता कैथरीन पिलाचोवस्की के मुताबिक, हम जानते हैं कि नए सौर मंडल में ग्रहों के आंतरिक विस्थापन की घटना असामान्य नहीं है। यह तारामंडल के क्रमिक विकास का बेहद रोचक चरण है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हम एक सौर मंडल को उसकी प्रक्रिया के बीच में देखने में सफल हुए हैं।
• पिलाचोवस्की के अनुसार, इस खोज से यकीनन हमें दुर्लभ और रोचक झलक मिली है कि नए ग्रहों के बनने में क्या होता है। वे नए सौर मंडल के गतिशील उतार-चढ़ाव में बच नहीं पाते हैं। इससे हमें यह समझने में मदद मिली है कि क्यों कुछ नए सौर मंडल का अस्तित्व बना रहता है, जबकि कुछ का खत्म हो जाता है।
• ग्रह ऐसे बचाए रखते हैं अपना अस्तित्व: एस्ट्रोनॉमिकल नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, खगोलविदों ने इस पर नजर रखने के दौरान पाया कि ऐसे ग्रह जो अपने सूर्य के बहुत पास घूम या उड़ रहे होते हैं, वो केवल अपने ज्वारीय बलों द्वारा ही फट जाते हैं या सूर्य के गुरुत्व बल द्वारा अपनी ओर खींच लिए जाते हैं। यदि वे निश्चित दूरी पर निश्चित पथ पर गति करते हैं तभी अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सफल होते हैं।

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