* 24 December 2017*
1.सरकारी बैंकों को उबारने के लिए नौ सूत्र
• यह बात तो किसी से भी छिपी हुई नहीं है कि सरकारी बैंक बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। कुछ ही दिन पहले स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और मूडीज ने भारतीय बैंकों पर जारी अपनी रिपोर्ट में तो मौजूदा हालात को अभी तक की सबसे खराब दौर करार दिया है। अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने परोक्ष तौर पर कुछ ऐसी ही बातें कही हैं।
• आरबीआइ ने सीधे तौर पर तो नहीं कहा है लेकिन बैंकों के ढांचे को सुधारने के लिए उसने एक नौ सूत्रीय फॉमरूला दिया है जिसका लब्बोलुबाव यही है कि इन बैंकों के स्तर पर हालात को बेहतर बनाने के लिए कई स्तरों पर काम करना होगा।
• आरबीआइ का पहला फार्मूला यह है कि ग्राहकों की मांग और जरूरत के मुताबिक इन बैंकों को वित्तीय सेवा उत्पाद उतारने होंगे। इन्हें हर कीमत पर कर्ज की रफ्तार बढ़ानी होगी ताकि निवेश की प्रक्रिया को बढ़ावा मिले। यह सुझाव इसलिए अहम है कि वर्ष 2016-17 में सरकारी बैंकों की तरफ से दिए जाने वाले कर्ज की रफ्तार पिछले कई दशकों के मुकाबले सबसे सुस्त रही है।
• दूसरा सुझाव यह है कि बैंकों को अपनी बैलेंस सीट को दुरुस्त करना होगा। इसके लिए इन्हें सरकार की तरफ से तैयार दिवालिया कानून इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) का सहारा लेना होगा।
• बैंकों को कहा गया है कि वे नियामक एजेंसियों और कानून बनने का इंतजार नहीं करें बल्कि हिसाब-किताब किस तरह से दुरुस्त रखा जाए, इसका इंतजाम वे अपने स्तर पर ही करें।
• सनद रहे कि आरबीआइ पूर्व गर्वनर रघुराम राजन के कार्यकाल में बैंकों को सभी तरह के फंसे कर्जे (एनपीए) को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। अभी तक बैंकों के स्तर पर एनपीए छिपाने का काम किया जा रहा था।
• आरबीआई की तरफ से तीसरा सुझाव यह है कि वे ग्राहकों की शिकायतों को सुलझाने के लिए विशेष निकाय का गठन करें। यह निकाय ग्राहकों के हितों की रक्षा के मौजूदा तंत्र को मजबूत बनाएगा। चौथा सुझाव केंद्रीय बैंक ने कॉरपोरेट गवर्नेस के बारे में देते हुए कहा है कि इसे बढ़ावा देने से बैंक और देश का वित्तीय ढांचा दोनो मजबूत होंगे। इसके लिए बैंकों को सारे नियम कानूनों को मजबूती से लागू करने का सुझाव दिया गया है।
• इसके बाद पांचवा सुझाव यह है कि अप्रैल, 2018 से बैंक लागू होने वाले एकाउंटिंग स्टैंडर्ड को सही तरीके से लागू करें। माना जा रहा है कि इससे बैंकों के लिए भविष्य में फंसे कर्जे को छिपाना असंभव हो जाएगा।
• छठा सुझाव यह है कि ग्राहकों से तमाम तरह की जो फीस वसूली जाती है उसको तय करने और उसे लागू करने को लेकर पूरी तरह से पारदर्शिता बरती जाए।
• सातवां सुझाव यह है कि बैंकों को अब तकनीक को अपनाने में कोई देरी नहीं करनी चाहिए। सनद रहे कि सरकारी बैंक तकनीक को अपनाने में अभी भी काफी सुस्त हैं।
• आरबीआइ का कहना है कि बैंकों को ऐसी तकनीक लानी होगी जिससे आम ग्राहकों को बेहतरीन सेवा दी जा सके। आने वाले दिनों में बैंकिंग कारोबार में सफल होने का यही मंत्र होगा। तकनीक में सुधार न होने पर बैंक पिछड़ जाएंगे।
• आठवां सुझाव यह है कि लघु और मझोले उद्योगों पर फोकस बढ़ाना होगा। बैंकों को इन उद्योगों को कर्ज देने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए।
• इसके बाद नौवां और अंतिम सुझाव यह है कि बैंकों को साइबर अपराध रोकने के लिए मुकम्मल तैयारी करनी होगी।

2. पुरानी बुलंदी पर पहुंचेगा भारत और रूस का कारोबार
• वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण लागू होने के बाद भारत के कारोबारी रिश्ते अगर किसी देश के साथ सबसे ज्यादा प्रभावित हुए तो वह रूस है। तब तक रूस भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साङोदार था लेकिन आज की तारीख में रूस-भारत का द्विपक्षीय कारोबार महज 10 अरब डॉलर का है जबकि अमेरिका के साथ भारत का कारोबार 100 अरब डॉलर को पार कर गया है।
• चीन के साथ कारोबार 70 अरब डॉलर के करीब है। ऐसे में भारत और रूस आपसी कारोबार के हालात की नए सिरे से समीक्षा कर रहे हैं। शनिवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन के नेतृत्व में आर्थिक सहयोग से जुड़े हर मुद्दे पर बात हुई।
• माना जा रहा है कि इस बैठक में 30 अरब डॉलर के द्विपक्षीय कारोबार के लक्ष्य को हासिल करने को लेकर दोनो पक्षों में अहम बातचीत हुई है।
• भारत और रूस ने पहले ही वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय कारोबार के लक्ष्य को 30 अरब डॉलर करने और द्विपक्षीय निवेश के स्तर को बढ़ा कर 15 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा हुआ है। लेकिन अभी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार की स्थिति बेहद खराब है।
• भारत और रूस की अर्थव्यवस्था का आकार संयुक्त तौर पर 3.3 लाख करोड़ डॉलर का है। लेकिन भारत के कुल कारोबार में रूस की हिस्सेदारी महज एक फीसद है जबकि रूस के कारोबार में भारत की हिस्सेदारी 1.2 फीसद है।
• दोनो देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार को नई दिशा देने के लिए इंडिया-यूरेशियन इकोनॉमिक फ्री ट्रेड जोन बनाने पर भी बात हो रही है। इसमें इन दोनों देशों के अलावा बेलारुस, अर्मेनिया, कजाखस्तान व किर्गिस्तान जैसे कुछ अन्य देश शामिल होंगे। लेकिन इसको लेकर बातचीत की प्रगति की रफ्तार बेहद धीमी है।
• जानकार मानते हैं कि ईरान में भारत की मदद से तैयार हो रहे चाबहार पोर्ट का काम होने के बाद भारत के लिए इन देशों के साथ कारोबार करना ज्यादा आसान हो जाएगा। स्वराज और रोगोजिन के बीच इस बारे में भी विमर्श हुआ है।
• सनद रहे कि जून, 2017 में सेंट पीट्सबर्ग में भारत-रूस सालाना बैठक में भी आपसी कारोबारी रिश्ते को लेकर बेहद अहम बातचीत हुई थी। तब पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कारोबारी रिश्तों में सुस्ती को दूर करने की बात कही थी।
• भारत रूस के ऊर्जा क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर निवेश करने को तैयार है लेकिन वहां रूस की तरफ से उसे पूरा सहयोग नहीं मिलता। इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि रूस उसे गैर आधिकारिक तौर पर भारत के साथ रक्षा सौदों के साथ जोड़ता है।
• भारत अभी तक रूस के तेल उद्योग में 5.5 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। देखना है कि इन सब मुद्दों को स्वराज और रोगोजिन के बीच हुई बातचीत कितना सुलझा पाती है।

3. यूएन ने उत्तर कोरिया पर और प्रतिबंध लगाए
• संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया द्वारा 29 नवंबर को किए गए अंतरमहाद्वीप बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण को लेकर उस पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। नए प्रतिबंधों के तहत पेट्रोलियम पदाथरें तक उत्तर कोरिया की पहुंच और विदेश में रहने वाले उसके नागरिकों से होने वाली कमाई को सीमित कर दिया गया है।
• अमेरिका द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी। इसके तहत उत्तर कोरिया के लिए लगभग 90 प्रतिशत रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध रहेगा। इसकी सालाना अधिकतम सीमा पांच लाख बैरल तय होगी। इसके चलते उत्तर कोरिया में पेट्रोलियम उत्पादों का संकट पैदा हो सकता है।
• इसके अलावा उत्तर कोरिया के लिए कच्चे तेल के निर्यात को कम कर एक साल में 40 लाख बैरल पर लाने का भी प्रस्ताव है। अगर उसने फिर परमाणु या मिलाइल परीक्षण किए इसे और कम किया जा सकता है।
• प्रस्ताव में 24 महीनों के भीतर विदेश में काम कर रहे उत्तर कोरियाई नागरिकों को स्वदेश भेजना शामिल है। साथ ही उत्तर कोरिया के लिए खाद्य उत्पादों, मशीनरी, लकड़ी, जहाजों और बिजली के उपकरण के निर्यात पर रोक लगेगी।
• यूएन में अमेरिकी राजदूत निकी हेली ने कहा कि यह प्रतिबंध उत्तर कोरिया को स्पष्ट संदेश है। अगर उसने फिर उल्लंघन किया तो उसे और सजा का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘29 नवंबर को अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उत्तर कोरिया द्वारा दी गई अभूतपूर्व चुनौती है। इसलिए हमने भी अभूतपूर्व प्रतिक्रिया दी है।’
• यूएन में ब्रिटेन के राजदूत मैथ्यू रिक्रॉफ्ट ने कहा कि उत्तर कोरिया अधिकांश पेट्रोलियम पदाथोर्ं का इस्तेमाल अपने अवैध परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के लिए करता है। पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति रोकने से वह अब इस तरह के हथियार नहीं बना पाएगा।
• यूएन महासचिव एंतोनियो गुतेरस ने सुरक्षा परिषद के इस प्रस्ताव का स्वागत किया है।

4. भारत के पूर्वोत्तर पर पड़ेगा गर्म जलवायु का सर्वाधिक असर
• पृथ्वी के बढ़ते ताप और आद्र्रता से इस सदी के अंत तक भारत का पूवरेत्तर इलाका सर्वाधिक प्रभावित होगा। इसका अनुमान अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने वैश्विक तापमान मॉडल का अध्ययन कर लगाया है।
• पुराने अध्ययनों में आद्रता जैसे महत्वपूर्ण कारक को नजरअंदाज किया गया था जबकि यह गर्मी के प्रभाव को बढ़ाकर स्थितियां बिगाड़ सकता है। इंवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि आद्र्रता का आने वाले समय में कई इलाकों में प्रभाव बढ़ेगा।
• दुनियाभर के करोड़ों लोगों को इसकी वजह से परेशानी उठानी होगी लेकिन इसका सबसे ज्यादा भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में रहने वाले लोगों पर असर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त दक्षिणी अमेरिका, मध्य और पश्चिमी अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप, पूर्वी चीन आदि भी प्रभावित होंगे।
• शोधकर्ता इथान कोफेल ने बताया कि इन जगहों पर फिलहाल ऐसी समस्या दिखाई नहीं दे रही है लेकिन आने वाले समय के लिए पहले से तैयार रहना होगा। ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल की मदद से वैज्ञानिकों ने वर्तमान और भविष्य के ‘वेट बल्ब’ तापमान (इसमें गर्मी के साथ आद्रता भी शामिल होती है) का अध्ययन किया।
• थर्मामीटर के बल्ब पर गीले कपड़े को लपेटकर तापमान मापा गया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी साल के एक या दो दिन वेट बल्ब तापमान अधिक होता है। 2070 आते-आते 100 से 250 दिनों के लिए वेट बल्ब तापमान अधिकतम रहेगा।
• आद्रता बढ़ने के कारण वर्तमान के सूखे इलाके और सूखे जाएंगे। साथ ही तटीय इलाके अधिक आद्र्रता से प्रभावित होंगे।
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