*नए कानून से प्रमोटरों को खतरा नहीं*

• इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा। इससे कॉरपोरेट बांड मार्केट में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। यह कहना है बाजार नियामक सेबी के प्रमुख अजय त्यागी का।

• त्यागी के मुताबिक बैंकिंग व्यवस्था में फंसे हुए कर्जो की स्थिति सिर के ऊपर पहुंच गई है। ऐसे में आइबीसी दिवालिया मामलों का निश्चित समय में निपटारा सुनिश्चित कर माहौल को कारोबार के अनुकूल बनाने में सहायक है। त्यागी भी सीआइआइ के कार्यक्रम में बोल रहे थे।

• उन्होंने कहा, ‘कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट करने के ज्यादा मामलों के कारण अब तक निवेशक कॉरपोरेट बांड से दूरी रखते रहे हैं।’

• दिवालिया कानून का मकसद कंपनी प्रमोटरों की तबाही नहीं बल्कि उन्हें बचाना है 1मुंबई, प्रेट्र : नए दिवालिया कानून को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर्ज में फंसी कंपनियों के प्रमोटरों को आश्वस्त किया है। उन्होंने कहा कि नए इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कानून का मकसद प्रमोटरों का खात्मा नहीं, बल्कि कर्ज वसूली सुनिश्चित करने के साथ-साथ उनका बचाव भी है।

• जेटली भारतीय उद्योग चैंबर सीआइआइ की ओर से इनसॉल्वेंसी और बैंक्रप्सी पर आयोजित सम्मेलन में बैंकरों व उद्यमियों को संबोधित कर रहे थे।

• केंद्रीय वित्त मंत्री ने कर्ज लेने वालों के बीच बेहतर ऋण संस्कृति विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘वह पुरानी व्यवस्था जिसमें लोन देने वाला कर्जदार का पीछा करते करते थक जाता था और अंत में उसके हाथ कुछ नहीं लगता था, अब समाप्त हो चुकी है।

• अगर कर्जदाता को कारोबार में बने रहना है, तो उसे अपना कर्ज समय पर चुकाना होगा अन्यथा उसे दूसरे के लिए रास्ता छोड़ना पड़ेगा।’ ऋण वसूली सुनिश्चित करने वाले इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) को कर्जदाताओं के हाथ मजबूत करने वाला माना जा रहा है। बैंक व वित्तीय संस्थान आठ लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज यानी एनपीए से जूझ रहे हैं।

• कुल एनपीए में अकेले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ही 75 फीसद हिस्सेदारी है। जेटली ने कहा, ‘एनपीए की समस्या के समाधान के पीछे असल मकसद संपत्तियों को समाप्त करना नहीं, बल्कि व्यवसायों को बचाना है। यह काम चाहे इन कंपनियों के मौजूदा प्रमोटर खुद अथवा अपने साथ नया साङोदार जोड़कर करें या फिर नए उद्यमी आएं और यह सुनिश्चित हो कि इन मूल्यवान संपत्तियों को संरक्षित रखा जा सके।’

• वित्त मंत्री के मुताबिक सरकार ने केवल एक कानून में बदलाव नहीं किया है। केंद्र ने ऋण वसूली टिब्यूनलों (डीआरटी) की प्रक्रियाओं को बदला है। साथ ही सरफेसी कानून के प्रावधान भी संशोधित किए गए हैं। कदमों का सीधा और स्पष्ट संदेश है कि कर्जदारों को कर्ज का नियमित भुगतान सुनिश्चित करना होगा।

*बैंकों की पूंजी बढ़ाने को पैकेज का वादा*

• रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर उर्जित पटेल ने फंसे कर्ज यानी एनपीए से सर्वाधिक प्रभावित सरकारी बैंकों का पूंजी आधार बढ़ाने के लिए नए पैकेज का वादा किया है। उन्होंने कहा कि आरबीआइ और सरकार मिलकर बैंकों में नई पूंजी डालने के लिए यह पैकेज लाएंगे।

• पटेल शनिवार को यहां प्रमुख उद्योग चैंबर सीआइआइ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बैंकरों और उद्यमियों को संबोधित कर रहे थे।1आरबीआइ गवर्नर ने कहा कि इस साल मार्च में बैंकों का सकल एनपीए अनुपात 9.6 फीसद पर पहुंच गया। यह फंसे कर्ज का बेहद खराब स्तर है।

• इसमें बड़े सुधार की जरूरत है। कुल एनपीए का 86.5 फीसद हिस्सा बड़े कर्जदारों के पास है। एनपीए की समस्या को दूर करने के कड़े प्रावधानों व अन्य कारणों से कई बैंकों की पूंजीगत स्थिति प्रभावित होगी।

• इसलिए बैंकों का पूंजीगत आधार बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी। सरकारी बैंकों को एक तय समयसीमा में अपेक्षित पूंजी जुटाने में सक्षम बनाने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक नए पैकेज पर बातचीत कर रहे हैं।

• उर्जित के मुताबिक बाजार से पूंजी जुटाने, सरकारी हिस्सेदारी के विनिवेश, केंद्र द्वारा अतिरिक्त पूंजी झोंकने, रणनीतिक निर्णयों के आधार पर विलय और कम महत्व वाली संपत्तियों की बिक्री करने जैसे कदमों पर विचार किया जा सकता है।

• सरकार और आरबीआइ इस मुद्दे का व्यापक स्तर पर बहुआयामी समाधान तलाशने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। इन प्रयासों के शुरुआती परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। एनपीए की समस्या के समाधान के लिए हो रही कोशिशों की सफलता काफी कुछ सरकारी बैंकों के बहीखातों की क्षमता पर निर्भर करेगी। इससे तय होगा कि बैंक इसकी कितनी लागत वहन कर सकते हैं।

• फिलहाल बैंकों का कुल एनपीए इस समय आठ लाख करोड़ रुपये के ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। इसमें से 75 फीसद हिस्सा सरकारी बैंकों का है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को संकट से उबारने के लिए सरकार ने इनमें मार्च, 2015 से मार्च, 2019 तक की चार साल की अवधि में 75,000 करोड़ रुपये की पूंजी डालने का बजटीय प्रावधान किया था।

* 36 साल में पहली बार 13,000 करोड़ रु. के शेयर बायबैक करेगी इन्फोसिस*

• देशकी दूसरी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी इन्फोसिस अपने 36 साल के इतिहास में पहली बार शेयर बायबैक करेगी। कंपनी बोर्ड ने शनिवार को इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके मुताबिक इन्फोसिस अपने निवेशकों से 11.3 करोड़ शेयर खरीदकर उन्हें कुल 13,000 करोड़ रुपए लौटाएगी।

• कंपनी ने इस बायबैक के लिए प्रति शेयर 1,150 रुपए कीमत तय की है। यह बीएसई में शुक्रवार के बंद भाव 923.10 रुपए से करीब 25%और बीते तीन माह में शेयर के औसत मूल्य से 19.08% अधिक है।

• इन्फोसिस ने बताया कि बायबैक ऑफर के तहत कंपनी अपने निवेशकों से कुल 11 करोड़ 30 लाख 43 हजार 478 शेयर वापस ले लेगी। यह कंपनी के कुल जारी शेयरों के 4.92% के बराबर है। साथ ही कुल चुकता इक्विटी पूंजी और फ्री-रिजर्व्स के 20.51% के बराबर है।

• बोर्ड ने बायबैक की प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए 7 सदस्यीय समिति बनाई है। इसमें को-चेयरमैन रवि वैंकटेशन, एक्जीक्यूटिव वाइस-चेयरमैन विशाल सिक्का और इंटरिम सीईओ एमडी यूबी प्रवीण राव शामिल हैं। बायबैक की प्रक्रिया की समय सीमा और अन्य जानकारियों की घोषणा आगे की जाएगी।

• इस प्रक्रिया को एक विशेष प्रस्ताव के जरिए शेयरधारकों की मंजूरी मिलनी बाकी है। कंपनी बोर्ड ने शेयर बायबैक के प्रस्ताव को ऐसे समय मंजूरी दी है जब शुक्रवार को विशाल सिक्का ने कंपनी के एमडी सीईओ पद से अचानक इस्तीफा देने की घोषणा की है।

• गौरतलब है कि इस साल कई टेक कंपनियों ने बायबैक ऑफर लाने की घोषणा की है। इसमें देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी टीसीएस ने 16,000 करोड़ रुपए के मेगा बायबैक ऑफर की पेशकश की है। इसके अलावा अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियां मसलन कॉग्निजेंट, विप्रो, एचसीएल टेक, माइंडट्री भी ऐसी घोषणाएं कर चुकी हैं।

• 12-18 महीनों में गिरा है शेयर : पिछले12-18 महीनों के दौरान इन्फोसिस के शेयर में गिरावट का रुख है। इसकी वजह कारोबारी मांग में सुस्ती, ऑटोमेशन, रुपए की मजबूती के साथ-साथ कॉर्पोरेट गवर्नेंस के आरोप लगना है। बीते शुक्रवार यह 884.40 रुपए के भाव साथ कई साल का निचले स्तर पर गया था। इस साल में शेयर की कीमत करीब 9% और बीते एक साल में 13% कम हुई है। जबकि इस दौरान सेंसेक्स 12% बढ़ा है।

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