(जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री)
(साभार हिंदुस्तान )

विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दक्षिण एशियाई देशों का आपसी व्यापार दुनिया के अन्य क्षेत्रों के आपसी कारोबार की तुलना में सबसे कम है। यह भी कहा गया है कि वर्ष 2017-18 में भारत का दक्षिण एशिया के साथ कारोबार करीब 1,900 अरब डॉलर रहा है, जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र के पड़ोसी देशों के साथ भारत की कुल कारोबारी क्षमता करीब 6,200 अरब डॉलर की है। इसका मतलब यह कि भारत पड़ोसी देशों के साथ कारोबार क्षमता का महज 31 फीसदी कारोबार ही कर पा रहा है। रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण एशिया में भारत का विदेश व्यापार भारत के कुल वैश्विक व्यापार का महज तीन फीसदी है और भारत-पाकिस्तान के बीच वैमनस्य से दक्षिण एशिया में आपसी कारोबार की ऊंचाई नहीं बढ़ पा रही है।

इसका बड़ा कारण क्षेत्र के दो बडे़ देशों भारत और पाकिस्तान के बीच निरंतर विवाद बने रहना है। भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास के इसी संकट के कारण सात दशक बाद भी दोनों देशों के बीच आपसी कारोबार निराशाजनक स्थिति में है। पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान ने आपसी रिश्ते को बातचीत से व्यापार तक ले जाने का इरादा जताया था, लेकिन उसके तत्काल बाद आतंकवादियों को समर्थन और सीमा पर लगातार गोलीबारी के कारण नए व्यापार संबंधों की संभावनाएं क्षीण हो गई हैं। गौरतलब है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और इंटरनेशनल टे्रड नियमों के आधार पर व्यापार में एमएफएन का दर्जा दिया जाता है। एमएफएन का दर्जा दिए जाने पर देश इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि उनके द्वारा आयात किए जाने पर उन्हें आयात संबंधी विशेष रियायतें प्राप्त होंगी। साथ ही उन्हें व्यापार में नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। भारत ने पाकिस्तान को 1996 में एमएफएन का दर्जा दिया था। पाकिस्तान को जब यह दर्जा मिला, तो इसके साथ ही उसे अधिक आयात कोटा देने के साथ उत्पादों को कम ट्रेड टैरिफ पर बेचने की छूट मिली है। एमएफएन दर्जे के कारण किसी भी स्थिति में पाक के साथ आयात दरों में भेदभाव नहीं किया जा सकता। यदि किसी आइटम पर आयात कर 10 फीसदी है, तो किसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी पाकिस्तान से 10 फीसदी से अधिक आयात कर नहीं वसूला जा सकता है।

डब्ल्यूटीओ का कहना है कि यदि कोई एक देश दूसरे देश को एमएफएन का दर्जा देता है, तो दूसरे देश द्वारा भी पहले को एमएफएन का दर्जा दिया जाना चाहिए। गौर करने वाली बात यह है कि 22 साल पहले भारत की ओर से पाकिस्तान को दिया गया यह दर्जा अब तक एकतरफा है। पाकिस्तान ने भारत को यह दर्जा नहीं दिया है।

पाकिस्तान ने वर्ष 2012 में भारत को एमएफएन का दर्जा देने का एलान किया था, लेकिन अभी तक वह वादा नहीं निभाया है। पाकिस्तान को एमएफएन का दर्जा देने के बावजूद भारत के साथ उसका आपसी कारोबार नहीं बढ़ा, लेकिन दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के जिन अन्य सदस्य देशों, यानी श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान को भारतेने एमएफएन का दर्जा दिया है, उनके साथ हमारा विदेश व्यापार तेजी से बढ़ा है।

इस समय जब भारत डॉलर-संकट का सामना कर रहा है, तब पड़ोसी देशों में निर्यात बढ़ाकर व्यापार घाटे को कम किए जाने की अच्छी संभावनाएं हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि 31 अक्तूबर को विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित कारोबारी सुगमता (इज ऑफ डूइंग बिजनेस) रिपोर्ट 2019 में कारोबारी सुगमता की वैश्विक रैंकिंग में भारत 190 देशों की सूची में 23 पायदान की छलांग लगाकर 77वें स्थान पर पहुंच गया है। वहीं पूरे दक्षिण एशिया में भारत कारोबार सुगमता में पहले क्रम पर स्थित है। कारोबार सुगमता की ऊं ची अनुकूलताओं के आधार पर भारत दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ अधिक कारोबार की संभावनाओं को साकार कर सकता है। उम्मीद है कि सार्क देश आपसी कारोबार बढ़ाने के लिए शुल्क बाधाएं दूर करने के साथ-साथ मंजूरी प्रक्रिया, नियमन और मानक जैसी बाधाओं के अलावा अविश्वास का संकट भी दूर करेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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