(रिजवान अंसारी)
(साभार दैनिक जागरण )

यह चौथा मौका था जब बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम) देशों के शासनाध्यक्षों ने नेपाल के काठमांडू में एक साथ मंच साझा किया। एक ऐसे समय में जब पाकिस्तान के बढ़ते असहयोग के कारण सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) पर अनिश्चितताओं के बादल मंडरा रहे हैं, तब भारत समेत पांच दक्षिण एशियाई देशों के लिए बिम्सटेक समूह की अहमियत बढ़ गई है। देखना होगा कि दक्षिण एशिया में पाक को अलग-थलग करने की भारत की रणनीति बिम्सटेक के जरिये कैसे कामयाब हो सकेगी?

सम्मेलन की मुख्य बातें 1ऐसा माना जा रहा था कि इस चौथे सम्मेलन में आगे की रणनीतियों पर व्यापक सहमति बन सकेगी। लिहाजा काठमांडू घोषणा पत्र में सहयोग क्षेत्रों की संख्या 14 से बढ़ा कर 16 करने की बात कही गई। इस सूची में ब्लू इकोनॉमी और माउंटेन इकोनॉमी को जोड़ा गया है। ब्लू इकोनॉमी पर एक्शन प्लान विकसित करने के लिए एक अंतर-सरकारी विशेषज्ञ समूह की स्थापना करने पर सहमति बनी है ताकि खाड़ी क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके। जहां तक माउंटेन इकोनॉमी का सवाल है तो इसके लिए भी एक अंतर-सरकारी विशेषज्ञ समूह की स्थापना करने पर सहमति बनी है ताकि पर्वतीय पारिस्थितिकीय तंत्र और वहां की जैव-विविधता को संरक्षित किया जा सके।

बिम्सटेक के लिए शोध और योजना बनाने तथा बिम्सटेक केंद्रों और अन्य संस्थाओं की परियोजनाओं को वित्तीय मदद मुहैया कराने के उद्देश्य से बिम्सटेक विकास कोष की स्थापना की बात कही गई है। खाड़ी क्षेत्र में ऊर्जा के संसाधनों, विशेषकर नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा के स्नोतों की उच्च संभावनाओं की पहचान और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक व्यापक योजना तैयार करने पर सहमति बनी है। लोगों को ज्यादा सस्ता हाई-स्पीड इंटरनेट, मोबाइल संचार और व्यापक पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए सूचना तकनीक और संचार से संबंधित मामलों के लिए एक कार्यबल की स्थापना का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में दिल्ली में 25-27 अक्टूबर तक इंडिया मोबाइल कांग्रेस 2018 कार्यक्रम में बिम्सटेक की एक मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित करने पर भी सहमति बनी है। बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में कला, संस्कृति, सामुद्रिक कानूनों एवं अन्य विषयों पर शोध के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में एक शिक्षा केंद्र की स्थापना करने की भी घोषणा की गई है।

बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियां:- एक ऐसे समय में जब बिम्सटेक को सार्क पर तरजीह देने की बहस चल रही है, तब बिम्सटेक को सफल बनाने के लिए दक्षिण एशियाई देशों के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हैं। विशेषकर भारत के सामने भी चुनौतियां तब बढ़ गई हैं जब भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया के दूसरे देशों को साथ लेकर आगे बढ़ने की राह पर है। जाहिर है इसकी कामयाबी के लिए बुनियादी समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। सबसे पहले बात करें तो बिम्सटेक के सदस्य राष्ट्रों में आपसी समन्वय की कमी दिखती है जिसके चलते नियमित एवं प्रभावशाली वार्ताओं का आयोजन नहीं हो पाता। गौरतलब है कि बिम्सटेक समूह का गठन 21 साल पहले ही हुआ, लेकिन अब तक सिर्फ चार दफा ही सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष मिल सके हैं। स्थापना के बाद जहां पहला सम्मेलन 7 साल बाद हो सका, वहीं तीसरा सम्मेलन 6 साल बाद हो सका। हालांकि यह तय किया गया था कि इस सम्मेलन का आयोजन हर चार साल बाद किया जाएगा। इस दौरान एक अच्छी बात यह हुई है कि पिछले दो वर्षो में बिम्सटेक की दूसरी बैठकें, मसलन-व्यापार एवं औद्योगिक समूहों की बैठकें, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रमुखों की बैठकें, टूर ऑपरेटरों की बैठकें वगैरह निरंतर होती रही हैं। लिहाजा बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है।

बिम्सटेक क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियों के विकास के लिए मुक्त व्यापार समझौते पर सदस्य देशों के बीच अभी भी कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है। हालांकि व्यापार एवं निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को और बढ़ाने के लिए बिम्सटेक बिजनेस फोरम और बिम्सटेक इकोनॉमिक फोरम की गतिविधियों को सशक्त बनाने पर सहमति जरूर बनी है। इधर भारत ने भी दिसंबर 2018 में बिम्सटेक स्टार्टअप कनक्लेव के आयोजन की बात कही है। उम्मीद है कि इससे भी सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापर को बढ़ावा मिल सकेगा।12014 में ढाका में बिम्सटेक के सचिवालय की स्थापना की गई, लेकिन इसकी पहुंच को सार्क, आसियान जैसे अन्य संगठनों की तरह बढ़ाने की जरूरत है। समझना होगा कि यह संगठन तब तक प्रगति नहीं करेगा जब तक कि बिम्सटेक सचिवालय को महत्वपूर्ण रूप से अधिकार नहीं दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि लंबे समय से बिम्सटेक के लिए स्थाई सचिवालय की स्थापना की मांग की जाती रही है। एक समस्या यह भी है कि बिम्सटेक क्षेत्र विभिन्न बहुपक्षीय संगठनों का नेतृत्व करते हैं और इनमें थाईलैंड और म्यांमार बिम्सटेक के बजाय आसियान को अधिक महत्व देते हैं। इसी तरह सार्क के देश सार्क पर बिम्सटेक को तरजीह नहीं दे सके हैं। मुक्त व्यापार पर ठोस सहमति न बन पाना और बिम्सटेक सचिवालय की आशा के अनुरूप प्रगति न हो पाना इसी का दूसरा पहलू है।

संगठन के कुछ सदस्य देशों के बीच शरणार्थियों की समस्या क्षेत्र में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक असंतुलन पैदा कर रही है। भारत और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या इसी का एक पहलू है। जाहिर है, इस तनातनी से दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग प्रभावित हो सकता है।

आगे की राह1एक ऐसे समय में जब भारत को चाहिए कि वह बिम्सटेक को सार्क के विकल्प के रूप में देखे, तब भारत के सामने बिम्सटेक से वह सब कुछ हासिल करने की चुनौती है जो सार्क से हासिल नहीं हो सका है। इसके लिए जरूरी है कि भारत अनौपचारिक रूप से बिम्सटेक के नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाए और इसकी व्यावहारिक प्रतिबद्धताओं के लिए एक मिसाल कायम करे। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह बिम्सटेक का सबसे बड़ा सदस्य है, लेकिन मजबूत नेतृत्व प्रदान नहीं कर पाने के कारण भारत की सदैव आलोचना होती रही है। इससे यह भी पता चलता है कि सदस्य देश भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। लिहाजा दक्षिण एशिया में अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए भारत के पास बड़ा मौका है।

बिम्सटेक के सभी सदस्य देशों की सक्रिय भागीदारी एवं परस्पर समन्वय के माध्यम से इस संगठन को आर्थिक विकास का केंद्र बनाने के लिए भारत को अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे। इसके अलावा संगठन के बेहतर क्रियान्वयन के लिए कम प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। दूसरी ओर बहुपक्षीय एजेंडा निर्धारित करने और शिखर सम्मेलन तथा मंत्रिस्तरीय बैठकों के बीच चालक दल के रूप में कार्य करने के लिए सचिवालय को स्वायत्तता प्रदान करना बेहद जरूरी है। स्वायत्तता इसलिए भी जरूरी है ताकि सदस्य देशों को सहमति वाले मुद्दों पर क्रियान्वयन में संस्थागत सहयोग मिल सके। साझा इतिहास की पृष्ठभूमि पर छात्रों, युवा उद्यमियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों आदि के बीच नए और मजबूत संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है। साझा विरासत और साझा मूल्यों के विकास के लिए मीडिया के माध्यम से सदस्य देशों के लोगों को एक-दूसरे के पास लाने की जरूरत है।

भारत को समझना होगा कि आसियान देशों और भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में काफी समानता है। भारत जहां भगवान बुद्ध की जन्म-स्थली है, वहीं आसियान देशों में बौद्ध धर्म को मानने वालों की बहुलता है। लिहाजा सांस्कृतिक संबंधों में प्रगाढ़ता से भी कूटनीतिक संबंध बेहतर होने की उम्मीद है। संगठन की बैठकें और सम्मेलनों को नियमित तौर पर आयोजित करना होगा ताकि संबंधों में और अधिक तीव्रता से मजबूती आए और परस्पर हितों की पूर्ति सुनिश्चित हो सके।

अंत में सबसे अहम यह कि एक तरफ चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ और ‘चीन-पाक आर्थिक गलियारे’ के जरिये दक्षिण एशिया में भारत को ओवरटेक करना चाह रहा है तो दूसरी तरफ इसके पड़ोसी देशों को अपनी तरफ आकर्षित करने की रणनीति पर भी काम कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह बेहद अहम हो चला है कि वह बिम्सटेक में सक्रिय भूमिका निभाए और अपने पड़ोसी देशों को सहेज कर रखे। इससे न केवल पड़ोसी देश, बल्कि चीन से तंग आ चुके आसियान के देशों से भी भारत की नजदीकियां बढ़ेंगी। लिहाजा दक्षिण एशिया में चीन को रोकने के लिए बिम्सटेक एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर सकता है, पर देखने वाली बात होगी कि भारत अपनी कूटनीतिक कुशलता का कितना परिचय दे पाता है।_

 

*_चीन में दमन से अमन की रणनीति_*

(देवाशीष चौधरी)
(फेलो, इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज)
(साभार हिंदुस्तान )

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 17 जनवरी, 2017 को दावोस में विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन को संबोधित करते हुए उस वक्त के अंतरराष्ट्रीय हालात की व्याख्या चार्ल्स डिकेंस की प्रसिद्ध पंक्ति ‘यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था’ के जरिए की थी। यह पंक्ति किसी खास दौर के विरोधाभासों का बयान करने के लिए उपयुक्त है। विडंबना है कि ह्यूमन राइट वाच की ताजा रिपोर्ट आने के बाद चीनी प्रांत झिंजियांग के बारे में भी यही कहा जा सकता है। रिपोर्ट बताती है कि झिंजियांग में चेन क्वांगुओ के पार्टी सचिव बनने के बाद से उइगर समुदाय इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, जबकि दूसरी तरफ, सुरक्षा के तमाम बड़े ताम-झाम और अत्याधुनिक निगरानी प्रणाली संकेत देते हैं कि ‘ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट’ जैसी उइगर-ताकतें चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं। ऐसे में झिंजियांग की सच्चाई को परखना जरूरी हो गया है।

5 जुलाई, 2009 के उरुमकी दंगों से पहले तक झिंजियांग में अलगाववादी हिंसा का कोई बड़ा निशान नहीं था। 1990 के दशक में हिंसा की छिटपुट घटनाएं जरूर हुई थीं, मगर झिंजियांग 2008 तक अमूमन शांत ही था। उसी वर्ष तिब्बत अशांत हुआ और ल्हासा में दंगे भड़के। 2013 और 2015 के बीच हिंसक घटनाओं में फिर से तेजी आई। मार्च 2016 में झिंजियांग के तत्कालीन पार्टी सचिव झांग चुंशियन ने दावा किया कि झिंजियांग में ‘हिंसक आतंकवाद’ में तेजी से कमी आई है और सरकार ने सुरक्षात्मक उपाय मजबूत किए हैं। मगर झांग की वहां से अचानक विदाई हो गई, जिसके बाद सवाल उठने लगे कि केंद्रीय नेतृत्व झिंजियांग पर आखिर कैसा शासन करना चाहता है और सख्त नीतियां अपनाकर सरकार क्या हासिल करना चाहती है?

2011 के शुरुआती महीनों में हुई कथित ‘जैस्मीन क्रांति’ के बाद झिंजियांग के सामाजिक प्रबंधन के लिए ऐसे कई संगठन बनाए गए, जिनका मकसद संदिग्ध तत्वों, धर्मगुरुओं, अपराधियों, अलगाववादियों और आतंकियों पर नजर रखना था। झिंजियांग और चीन के दूसरे हिस्सों में 2013-14 के दौरान हुई सिलसिलेवार हिंसक घटनाओं के बाद झिंजियांग सरकार ने इस क्षेत्र में सुरक्षात्मक हालात सुधारने के लिए कई कदम उठाए। केंद्रीय नेतृत्व ने उइगर अलगाववादियों के खिलाफ ‘जंग’ की घोषणा की और शी जिनपिंग ने इन्हें पकड़ने के लिए ‘तांबे और स्टील की दीवार बनाने’ और ‘जमीन से आसमान तक नेट’ लगाने के आदेश दिए। इस बीच, चेन क्वांगुओ ‘जातीय नीति के नए प्रवर्तक’ के रूप में चर्चित हो चुके थे। वह तिब्बतियों पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का नियंत्रण मजबूत बनाने के नए तरीके ईजाद कर चुके थे। तिब्बत में उनकी सफलता ही वजह थी कि उइगर अलगाववादियों का वास्तविक और काल्पनिक खतरा खत्म करने की जिम्मदारी उन्हें दी गई।

इसके बाद, केंद्रीय और क्षेत्रीय हुकूमतों ने कई ऐसे कानून बनाए, जिनके तहत उइगर की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियां अपराध के दायरे में आ गईं। इनमें चीन का आतंकवाद निरोधी कानून (दिसंबर, 2015), झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र (एक्सयूएआर) का आतंकवाद निरोधी कानून (अगस्त, 2016) और एक्सयूएआर रेगुलेशन ऑन डी-रेडिकलाइजेशन (मार्च, 2017) उल्लेखनीय हैं। ये कानून स्थानीय प्रशासन को निगरानी और सेंसरशिप का असीमित अधिकार देते हैं। इन कानूनों के तहत उइगर विचारों और उनके कार्यक्रमों पर नजर तो रखी ही जाने लगी, नकाब व बुरका पहनने, दाढ़ी बढ़ाने, बच्चों के धर्म से जुड़े नाम रखने आदि को आपराधिक व्यवहार बताकर उन पर पुलिसिंग शुरू हो गई।
चेन ने झिंजियांग में ‘कनवीनियंस पुलिस स्टेशन’ की स्थापना की, ताकि सरकार अधिक से अधिक निगरानी और स्थानीय समुदायों पर नियंत्रण रख सके। इस स्टेशन के पास दंगा रोकने के अत्याधुनिक उपकरण भी हैं और आवाज व चेहरा पहचानने वाले सॉफ्टवेयर जैसी अत्याधुनिक निगरानी व्यवस्था भी। चेन प्रशासन ने ‘डबल लिंक्ड हाउसहोल्ड’ सिस्टम की भी शुरुआत की, जो एक-दूसरे के घर में ताक-झांक की अनुमति देता है। स्थानीय आंदोलनों को दबाने के लिए झिंजियांग अधिकारियों ने बड़ी संख्या में उइगरों के पासपोर्ट जब्त किए और विदेशों में पढ़ रहे ज्यादातर उइगर नौजवानों को वापस मुल्क लौटने का फरमान सुनाया। कहा जाता है कि इनमें से अनेक छात्रों को वापस लौटने के बाद हिरासत में लिया गया और फिर उनका पता नहीं चला।

झिंजियांग में उइगरों के संदिग्ध व्यवहारों पर नजर रखने वाला साइबर निगरानी तंत्र भी है। यह उइगरों द्वारा किए जाने वाले तमाम इंटरनेट कम्युनिकेशन इकट्ठे करता है। पर्सनल कम्युनिकेशन की निगरानी, स्मार्टफोन पर नजर, निजी गाड़ियों पर जीपीएस व रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिटी टैग की अनिवार्यता भी आम कर दी गई है। पिछले साल से तो झिंजियांग पुलिस लोगों के डीएनए जमा करने की योजना पर भी खासी सक्रिय है। यहां 2017 की शुरुआत में ‘काउंटर-टेररिज्म ट्रेनिंग स्कूल’ और ‘एजुकेशन ऐंड ट्रांसफॉर्मेशन ट्रेनिंग सेंटर’ की स्थापना की गई, जहां हर उम्र के हजारों उइगर और अन्य मुस्लिम समुदायों को दोबारा पढ़ाई के लिए भेजा गया।

जिस ह्यूमन राइट वाच रिपोर्ट की आज चर्चा हो रही है, वह 58 लोगों के इंटरव्यू पर आधारित है। इनमें से पांच ऐसे हैं, जो इन शिक्षा शिविरों में कैद थे, जबकि 38 उन लोगों के परिजन हैं, जो अब भी इन शिविरों में बंद है। जातीय खांचे से देखें, तो इंटरव्यू देने वाले 32 कजाक थे, 23 उइगर, एक हुई और एक-एक उज्बेक व किर्गीज। वाच की रिपोर्ट यह भी बताती है कि नया दमनकारी शासन अब अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों के सामाजिक जीवन पर बंदिशें लगा रहा है।

केंद्रीय शासन के शुरुआती दौर के बाद, प्रशासन का उद्देश्य विभिन्न मुस्लिम समुदायों के बीच खाई बनाना था। और चूंकि 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में झिंजियांग में अलगाववादी हिंसा शुरू हो चुकी थी, इसीलिए सरकार ने बड़ी आसानी से उइगरों को ‘परेशानी पैदा करने वाले लोग’ साबित कर दिया। बावजूद इसके अब भी यह नहीं कहा जा सकता कि ‘धार्मिक चरमपंथी व हिंसक अतिवादी मानसिकता और वैचारिक बीमारी को दुरुस्त करने की’ चेन की रणनीति सही है, क्योंकि दमन की यह रणनीति ही झिंजियांग के विभिन्न मुस्लिम गुटों को एकजुट कर सकती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

*_रेल मंत्रालय ने रेल सहयोग portal launch किया_*
👇👇👇👇👇
_केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 11 सितम्बर 2018 को ‘रेल सहयोग’ पोर्टल लॉन्च किया. यह पोर्टल भारतीय रेलवे का एक खास मंच होगा, जिसके जरिए देश के कारोबारी समूह अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह रेल के माध्यम से कर सकेंगे._

_रेलवे ने वर्ष 2022 तक ‘नए भारत’ के निर्माण हेतु प्रधानमंत्री के विजन से प्रेरित होकर अपने बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, साफ-सफाई इत्‍यादि में बेहतरी के लिए अनगिनत पहल कर रही है, ताकि यात्रियों को अपने सफर के दौरान सुखद अनुभव हो सके._

*_‘रेल सहयोग’ पोर्टल से संबंधित मुख्य तथ्य:_*

_• यह वेब पोर्टल सीएसआर (कॉरपोरेट सामाजिक दायित्‍व) कोष के जरिए रेलवे स्‍टेशनों पर एवं इनके निकट सुविधाओं के सृजन में योगदान के लिए एक प्‍लेटफॉर्म सुलभ कराएगा._

_• इस पोर्टल की अनोखी खूबी इसकी सादगी और पारदर्शिता है. यह पोर्टल उद्योग जगत/कंपनियों/संगठनों को रेलवे के साथ सहयोग करने का उत्तम अवसर प्रदान करेगा._

_• यह पोर्टल न केवल यात्रियों के लिए, बल्कि रेलवे के आसपास के क्षेत्रों के लिए भी लाभदायक साबित होगा._

_• रेलवे ‘रेल सहयोग’ नामक एक अलग पोर्टल के माध्यम से निजी कंपनियों को स्टेशन परिसर में यात्रियों के लिए सुविधाएं मुहैया कराने के वास्ते अपना सीएसआर कोष से धन देने के लिए आमंत्रित करेगा._

_• रेल सहयोग के माध्यम से कारोबारी समूह भारत के रेलवे स्टेशनों पर अलग-अलग जन सुविधाओं के लिए अपना योगदान दे सकेंगे. कारोबारी समूह एवं सरकारी कंपनियां रेल यात्रियों के लिए पानी, शौचालय, विश्राम गृह, बैठने की सुविधाएं, वेटिंग रूम, प्रकाश व्यवस्था सहित तमाम सुविधाओं के लिए पैसा लगा सकेंगे._

_• सभी स्टेशनों पर शौचालयों का निर्माण और वहां कंडोम वेंडिंग मशीन लगाना, कम लागत वाले सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन, हॉटस्पॉट लगाकर स्टेशनों पर मुफ्त वाईफाई सेवा देना तथा एक साल के लिए इनके आरंभिक रखरखाव की व्‍यवस्‍था होगी._

_• पर्यावरणीय की दृष्टि से 2175 प्रमुख स्टेशनों पर बोतल क्रशिंग मशीनों की स्थापना भी एक और गतिविधि है. रेलवे यात्रियों द्वारा छोड़ी गई खाली प्लास्टिक की बोतलों को प्लास्टिक प्रदूषण का प्रबंधन करने के लिए इन मशीनों में कुचल दिया जाएगा. इसकी लागत लगभग 3.5 लाख से 4.5 लाख रुपये है._

*_इच्छुक कंपनी:_*

_इसमें योगदान के लिए इच्‍छुक कंपनियां अपने अनुरोधों के पंजीकरण के जरिए इस पोर्टल पर अपनी इच्‍छा जाहिर कर सकती हैं. इन अनुरोधों की प्रोसेसिंग रेलवे के अधिकारीगण करेंगे. ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के सिद्धांत के आधार पर इन अनुरोधों की छटनी की जाएगी और चयनित आवेदकों को रेलवे या नामित एजेंसियों जैसे कि राइट्स/रेलटेल इत्‍यादि के यहां संबंधित धनराशि जमा करने के बारे में सूचित कर दिया जाएगा. इसके बाद नामित एजेंसी संबंधित कार्य को पूरा करेगी._

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *