सरकार ने ‘बैकिंग नियमन संशोधन अधिनियम’ (Banking Regulation Amendment Act) को अधिसूचित कर दिया है। इससे भारतीय रिज़र्व बैंक को फंसे हुए ऋण को वसूलने के लिये बैंकों को निर्देश देने की शक्ति मिल जाएगी।
उल्लेखनीय है कि देश का बैंकिंग क्षेत्र गैर-निष्पादित परिसंपतियों यानी एनपीए की समस्या से जूझ रहा है, जो इस समय आठ लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुँच गया है।
विदित हो कि इस आठ लाख करोड़ के एनपीए में करीब छह लाख करोड़ रुपए का एनपीए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का है। हाल ही में संसद ने इस अधिनियम को अपनी मंज़ूरी दे दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
दरअसल, एनपीए की लगातार गंभीर होती समस्या के मद्देनज़र इस वर्ष मई में सरकार ने ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016’ (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) के तहत रिज़र्व बैंक को दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने संबंधी निर्देश ज़ारी करने की शक्ति प्रदान की थी और इसके लिये अध्यादेश पारित किया गया था।
इस अध्यादेश के बाद रिज़र्व बैंक ने 12 ऐसे खातों की पहचान की, जिसमें से प्रत्येक में 5,000 करोड़ रुपए से ज़्यादा का ऋण बकाया था और यह बैंकों के कुल एनपीए का करीब 25 प्रतिशत है। इसके लिये केंद्रीय बैंक ने बैंकों को तत्काल ऋणशोधन की कार्रवाई शुरु करने के निर्देश दिये हैं।
इस अध्यादेश की अवधि समाप्त हो जाने के बाद सरकार इस संबंध में बैंकिंग विनियमन (संशोधन) बिल, 2017 लेकर आई थी, जिसे अब अधिसूचित कर दिया गया है।
बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक की मुख्य विशेषताएँ
बैंकिंग विनियमन (संशोधन) बिल 2017 के माध्यम से बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 में संशोधन किया जाएगा, जिससे रिज़र्व बैंक को दिवालिया प्रस्ताव शुरू करने के लिये बैंकों को निर्देश ज़ारी करने की शक्ति मिल जाएगी।
रिज़र्व बैंक को फंसे हुए कर्ज़ के समाधान हेतु बैंकिंग कंपनियों को सलाह देने के लिहाज़ से अधिकारियों या समितियों की नियुक्ति करने या नियुक्ति की मंज़ूरी देने तथा अन्य निर्देश जारी करने के अधिकार भी मिल जाएंगे।
यह बिल रिज़र्व बैंक को एनपीए मामलों को ‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड’ (Insolvency and Bankruptcy Board) को सौंपने का अधिकार भी प्रदान करेगा।
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स