बट्‌टा खाते का कर्ज सुरसा के मुंह की तरह बैंकिंग उद्योग निगलने को तैयार है लेकिन, सरकार और उसके नए वित्त मंत्री को अपने पांच नए मंत्रों पर यकीन है कि वे संस्थाओं को उससे बचा लेंगे। यही कारण है कि दो दिन पहले उन्होंने स्पष्ट किया है कि सरकार बैड बैंक (विफल बैंक) योजना लागू नहीं करेगी और बैकों के मौजूदा ढांचे में कुछ कल्पनाशील उपायों से बीमारी का इलाज करेगी। सरकार इंदिरा गांधी द्वारा किए गए बैंकों के राष्ट्रीयकरण को भी निजीकरण के माध्यम से पलटने की तैयारी में नहीं है। पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमैन सुनील मेहता के नेतृत्व में गठित बैंकरों की समिति ने निजीकरण से इनकार करते हुए सरकार को बैंकों और उद्यमों के स्तर पर हल खोजने को कहा है। पांच सूत्री इन योजनाओं को प्रोजेस्ट सशक्त कहा गया है और इसके तहत बैंकों का विलय करने या उनका अधिग्रहण करने की बजाय एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) का गठन किया जाएगा, जो 500 करोड़ से ऊपर के कर्ज का समाधान करेगा। इस कार्यक्रम में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल(एनसीएलटी) की बड़ी भूमिका बन रही है जो 700 मामलों की सुनवाई कर दीवालिया व्यवसायियों की समस्याओं का समाधान कर रहा है।

निश्चित तौर पर सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है लेकिन, सिर्फ इतने से निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। हालांकि रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट आशावादी है इसके बावजूद मार्च 2018 में बट्‌टा खाते का जो कर्ज 11.6 प्रतिशत था वह मार्च 2019 में 12.2 प्रतिशत होगा। क्रेडिट सूइस की रिपोर्ट कहती है कि जीएनपीए जो दिसंबर 2017 में 8.82 खरब रुपए था वह मार्च 2018 में 10.09 खरब तक चला गया है। देश के 21 में से सिर्फ दो बैंकों ने मामूली मुनाफा दर्ज किया है, ज्यादातर घाटे में रहे हैं। 19 बैंकों का घाटा 873.5 अरब रुपए का बताया जा रहा है। आईडीबीआई बैंक की तो हालत इतनी खराब है कि उसे इंडस्ट्रियल डस्टबिन ऑफ इंडिया कहा जाता है। भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा उसके उद्धार की तैयारी की जा रही है। सरकार सामाजिक क्षेत्र को भी कर्ज देने के बारे में नए किस्म के उपकरण बनाने की सोच रही है। कुछ विशेषज्ञों ने तो आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस की मदद लेने का सुझाव दिया है। यह मामला किसी पार्टी या सरकार का नहीं बल्कि देश का है और इससे निपटने के लिए हर स्तर पर काम करना होगा।

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