(जयंतीलाल भंडारी)

हाल ही में 3 अगस्त को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पूंजी आधार बढ़ाने और फंसे कर्ज (एनपीए) को वसूलने के प्रयासों के सकारात्मक नतीजे नजर आने लगे हैं। कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में 7 सरकारी बैंकों के सकल एनपीए में 4464 करोड़ रुपये की कमी आई है। इन बैंकों में बैंक ऑफ बड़ोदा, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और विजया बैंक शामिल हैं।

यह भी कहा गया है कि 31 मार्च, 2018 को सरकारी बैंकों के एनपीए की रकम 8 लाख 45 हजार करोड़ रुपये हो गई है। ऐसे में देश और दुनिया के अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बैंकों की जन हितैषी योजनाओं के संचालन संबंधी भूमिका के कारण सरकारी बैंकों के निजीकरण के बजाय सरकारी बैंकों में नई जान फूंकने के और अधिक प्रयास जरूरी हैं। वस्तुत: सरकारी बैंकों में पुनपरूजीकरण का कदम एक बड़ा बैंकिंग सुधार है। इससे सरकारी बैंकों को दोबारा सही तरीके से काम करने का अच्छा मौका मिल रहा है। इससे बैंकिंग व्यवस्था मजबूत बन रही है।

पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और इसमें नई जान फूंकने के लिए बैंकिंग क्षेत्र की हालत को पर्याप्त पुनपरूजीकरण से बेहतर करना सबसे पहली जरूरत है। इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एकीकरण दूसरी जरूरत है। आईएमएफ ने कहा है कि भारत को इसके लिए गैर-निष्पादित आस्तियों के समाधान को बढ़ाना होगा तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऋण वसूली पण्राली को बेहतर बनाना होगा।गौरतलब है कि 17 जुलाई, 2018 को सरकार के द्वारा पांच सरकारी बैंकों पंजाब नैशनल बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, इंडियन ओरवसीज बैंक, आंध्रा बैंक तथा इलाहाबाद बैंक के पूंजीकरण के तहत 11337 करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज घोषित किया गया है। इसके पहले 24 अक्टूबर, 2017 तक फंसे कर्ज की समस्या से जूझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अगले दो साल में 2.11 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज दिया जाना सुनिश्चित किया गया था।

यद्यपि बैंक पूंजी बाजार में भी जा सकते हैं, लेकिन सरकारी बैंकों के शेयर मूल्य इतने कम हैं कि सरकारी बैंक शेयर बाजार से भी अपेक्षित पूंजी नहीं जुटा पाएंगे। केंद्र सरकार, सरकारी बैंकों का निजीकरण करते हुए उन्हें निजी हाथों में बेच भी सकती है, लेकिन फिलहाल देश में सरकारी बैंकों को खरीदने की संभावना रखने वाले भरोसेमंद व्यक्ति या संगठन दिखाई नहीं दे रहे हैं। इन सबके अलावा, सरकारी बैंकों को विदेशियों को भी बेचा जा सकता है, लेकिन इस समय यह देश हित एवं राजनीतिक दृष्टि से सही नहीं होगा। इस तरह ऐसा कोई उपाय नहीं है, जो एक झटके में बैंकों की हालत सुधार दे और अर्थव्यवस्था की विभिन्न दिक्कतें दूर कर दे। चूंकि सरकार किसी सरकारी बैंक को विफल नहीं होने देना चाहती है, अतएव सरकार बैंकों को जरूरी पूंजी मुहैया कराने की डगर पर आगे बढ़ी है। इससे पूंजी की किल्लत से परेशान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जल्द राहत मिलेगी।

नीति आयोग का कहना है कि बैंकों को पूंजी मिलने से कर्ज देना आसान होगा। कर्ज देने की रफ्तार बढ़ने की स्थिति में निजी निवेश में तेजी आएगी।इतना ही नहीं सरकार की जनहित की योजनाएं सरकारी बैंकों पर आधारित हैं। देश भर में चल रही करीब 1100 कल्याणकारी स्कीमों के लिए धन की व्यवस्था करने और उन्हें बांटने की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को सौंप दी गई है। सरकारी बैंकों द्वारा मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए धड़ाधड़ कर्ज बांटा जा रहा है। आधार कार्ड के अपडेशन से लेकर पैन कार्ड और अन्य तरह के दस्तावेज भी यहां तैयार हो रहे हैं। बैंकरों को गांव-गांव जाकर न केवल लोन बांटना है, बल्कि पुराने लोन की रिकवरी भी करनी है। नतीजतन, बैंक ऑफिसर अपना मूल काम यानी कर बैंकिंग छोड़कर बाहर घूम रहे हैं। चूंकि बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ लेने के लिए बैंक खाता जरूरी है, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधाओं की भारी कमी है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 2018 तक जनधन योजना के तहत 31.44 करोड़ खाते हैं।

2014 से 2017 के बीच दुनिया में 51 करोड़ खाते खुले जिनमें से 26 करोड़ खाते केवल भारत में जन-धन योजना के अंतर्गत हैं। भारत में इस अवधि में 26 हजार नई बैंक शाखाएं भी खुली हैं। ऐसे में भारत की नई बैंकिंग जिम्मेदारी बैंकों के निजीकरण से संभव नहीं है। सरकारी बैंकों को ही सक्षम बनाना जरूरी है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष 23 अगस्त, 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण में तेजी लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इस कवायद का मकसद सरकारी बैंकों को सुदृढ़ करना है। सरकार की रणनीति अगले 3 वर्षो में वर्तमान 21 सरकारी बैंकों की संख्या घटाकर 10-12 करने की है। यकीनन केंद्र सरकार द्वारा सरकारी बैंकों के लिए पुनपरूजीकरण के नये पैकेजों से बैंकों को मजबूत बनाने और डूबते हुए कर्ज से गंभीर रूप से बीमार भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में महत्त्वपूर्ण सहयोग मिलेगा। आशा करें कि सरकार बैंकों के पुनपरूजीकरण के कार्य पर उपयुक्त निगरानी और उपयुक्त नियंतण्ररखेगी।

बैंकों को दी गई भारी-भरकम नई पूंजी के आवंटन की उपयोगिता और प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करेगी कि बैंक इसका इस्तेमाल कितने प्रभावी ढंग से करेंगे और फंसे कर्ज से कैसे निपटेंगे। साथ ही, बैंकों के पुनपरूजीकरण से दोहरी बैलेंस शीट की समस्या कितनी हल होगी। इन बातों पर प्रभावी नियंतण्रके साथ-साथ सरकार को सरकारी बैंकों से संबंधित लंबे समय से लंबित प्रशासनिक सुधारों पर भी ध्यान देना होगा। इस तरह बैंकों के पुनपरूजीकरण के साथ-साथ बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों को आकार देने की उपयुक्त रणनीति लाभप्रद होगी। ऐसा होने पर ही बैंकों में नये निवेश से छोटे बड़े उद्योग-कारोबार के साथ-साथ आम आदमी भी लाभान्वित होंगे। साथ ही, सार्वजनिक बैंक मजबूत बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील बना सकेंगे।(RS)

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