(रिजवान अंसारी)
(साभार दैनिक जागरण )

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका के तीन देशों का दौरा किया। उनके इस दौरे का मूल मकसद दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेना था। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी रवांडा और युगांडा भी गए। दिलचस्प बात है कि जहां किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला रवांडा दौरा था, वहीं 21 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने युगांडा की धरती पर कदम रखा। बीते चार बरसों में भारत के प्रधानमंत्री समेत राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति ने 23 अफ्रीकी देशों का दौरा किया है। भारत की अफ्रीका में अति सक्रियता यह बताती है कि उसकी विदेश नीति में अफ्रीका टॉप पर है। दूसरी तरफ, भारत की इस सक्रियता को अफ्रीका में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।

अफ्रीका यात्र के अहम पहलू :- दरअसल प्रधानमंत्री मोदी का अफ्रीका दौरा कई लिहाज से महत्वपूर्ण था। जहां ब्रिक्स सम्मेलन में कई बहुपक्षीय संवाद स्थापित किए गए, वहीं रवांडा और युगांडा के साथ कई द्विपक्षीय समझौतों पर सहमति बनी। हालांकि किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला रवांडा दौरा जरूर था लेकिन, भारत और रवांडा के बीच द्विपक्षीय संबंध 20 साल पुराना है। भारत रवांडा को पूर्वी अफ्रीका के प्रवेश-द्वार के रूप में देख रहा है और इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले साल जनवरी में भारत ने रवांडा के साथ रणनीतिक साझेदारी की थी। प्रधानमंत्री ने रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागाम के साथ हुई बातचीत में रवांडा को मिल रही क्रेडिट लाइन को 200 मिलियन डॉलर करने की सहमति दी। इनमें 100 मिलियन डॉलर रवांडा में इंडस्टियल पार्काें और किगाली विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए है, जबकि शेष रकम आधारभूत कृषि संरचना का निर्माण करने के लिए रखी गई है।

दोनों देशों ने द्विपक्षीय सामरिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भी कई उपायों पर चर्चा की। रक्षा, व्यापार, कृषि और पशु संसाधनों के क्षेत्र में सहयोग पर आठ सहमति पर दस्तखत किए गए। रवांडा कृषि बोर्ड और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के बीच लेदर, डेयरी, कृषि अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनाई है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रवांडा में एक गांव को 200 गायें भी भेंट के रूप में दीं। प्रधानमंत्री मोदी ने रवांडा की राजधानी किगाली में जल्द ही भारतीय उच्चायोग शुरू करने की भी घोषणा की। मौजूदा वक्त में रवांडा के लिए भारत के वर्तमान उच्चायुक्त का आवास युगांडा की राजधानी कंपाला में है।

अगर युगांडा की बात करें तो, 21 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस देश का दौरा तो किया ही, पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने युगांडा की संसद को संबोधित भी किया। अफ्रीका के पास दुनिया की कृषि भूमि का 60 फीसदी हिस्सा है। लेकिन, कृषि उत्पादन में उसकी भागीदारी महज 10 फीसदी है। भारत ने औद्योगिक निवेश के माध्यम से कृषि दर में वृद्धि हासिल करने के लिए युगांडा को मदद का भरोसा दिया है। युगांडा के साथ रक्षा सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वीजा तथा पासपोर्ट से जुड़े समझौतों पर दस्तखत किए गए। 1क्या है भारत की रणनीति

भारत के एक्जिम बैंक ने 40 अफ्रीकी देशों में प्रोजेक्ट्स के लिए 150 से ज्यादा बार कर्ज मंजूर किया है। भारत, अफ्रीका के साथ मौजूदा कारोबार को अगले 5 सालों में तिगुना करने की कोशिश में है। साथ ही, अफ्रीकी देशों में दूतावासों की मौजूदा संख्या 29 से बढ़ा कर 2021 तक 47 करने की भी योजना है।

अगर अफ्रीका के साथ कारोबार की बात करें तो, भारत के 62 अरब डॉलर के मुकाबले चीन का कारोबार लगभग 170 अरब डॉलर का है। भारत के 29 के मुकाबले चीन के 61 मिशन अफ्रीका में काम कर रहे हैं। इससे साफ है कि अफ्रीका में चीन की बराबरी करने के लिए भारत को अभी लंबी दूरी तय करनी होगी। दरअसल, भारत की रणनीति अफ्रीका में चीन की चमक को फीका कर अपनी चमक बिखेरने की है। बात चाहे एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा की हो या भारत-अफ्रीका सम्मेलनों में भारत की बढ़ती रुचि की, भारत की सभी कोशिशें चीन को एशिया समेत अफ्रीका में घेरने की है।

दूसरी तरफ, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अफ्रीका में दुनिया की 60 फीसदी जमीन खेती के लायक है, लिहाजा भारत की नजर अफ्रीका की उपजाऊ जमीन पर भी है। दरअसल भारत मौजूदा वक्त में अनुबंधित कृषि के तहत अफ्रीका में दाल की खेती कर रहा है तथा इसे और विस्तार देना चाहता है। इससे न केवल भारत अपना हित साधना चाहेगा, बल्कि अफ्रीका में रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा। समुद्री मार्ग से अफ्रीकी देशों के साथ हमारी नजदीकियां चीन या अमेरिका के मुकाबले कहीं बेहतर हैं। लिहाजा भारत अपनी इन्हीं रणनीतियों को साधने की नीयत से अफ्रीका से अपनी नजदीकियां बढ़ा रहा है।

सकारात्मक व नकारात्मक पहलू:- सकारात्मक पहलुओं की बात करें तो सबसे अहम यह है कि अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से भारत अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ ही वैश्विक आर्थिक शक्ति भी बन सकता है। दूसरा यह कि अफ्रीका से तेल आयात कर भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए पश्चिम एशिया पर निर्भरता कम कर सकता है। तीसरा सकारात्मक पहलू यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता की मांग के साथ-साथ अन्य मंचों पर भी भारत को अफ्रीका से व्यापक सहयोग मिलने की उम्मीद है। चौथा यह कि हिंद महासागर का भारत और अफ्रीका के लिए समान सामरिक, सुरक्षात्मक और रणनीतिक महत्व है। लिहाजा इसके विकास के लिए दोनों ही पक्ष बेहतर पहल कर सकते हैं। आखिर में जलवायु परिवर्तन पर विकसित देशों की असंतुलित नीतियों के खिलाफ भी भारत और अफ्रीका सहयोग कर सकते हैं।

नकारात्मक पहलुओं पर गौर करें तो अफ्रीकी देशों में राजनीतिक अस्थिरता और परिपक्व लोकतंत्र का अभाव भारत और अफ्रीकी देशों के द्विपक्षीय संबंधों को खासा प्रभावित करता है। दूसरा, बोको हराम, अल-शबाब जैसे आतंकवादी संगठनों की अफ्रीका में मौजूदगी भारतीय प्रवासी नागरिकों और व्यापारिक संस्थानों की सुरक्षा के लिहाज से भी चिंताजनक है। तीसरा नकारात्मक पहलू है कि वर्तमान कूटनीति के दौर में चीन की अफ्रीका नीति को भारत के मुकाबले अधिक सफल माना जाता है। क्योंकि, चीन की बढ़ती रफ्तार को भारत अभी तक रोक पाने में नाकाम रहा है।

आगे की राह: मौजूदा वक्त में भारत और अफ्रीकी देश आतंकवाद, निर्धनता, अशिक्षा, भुखमरी और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से समान रूप से पीड़ित हैं और दोनों का ही लक्ष्य अपने नागरिकों का समग्र विकास करना है। दूसरी तरफ, अफ्रीकी देशों की आवश्यकताएं भी व्यापक हैं और वे चीन के आक्रामक आर्थिक साम्राज्यवाद का विरोध कर भारत को एक ठोस व विश्वसनीय सहयोगी के रूप में देख रहे हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि भारत, अफ्रीका में अपने लिए बने सद्भाव का भरपूर उपयोग करे। हम हमेशा यह सोचते हैं कि हमारी सलाह को वहां के अंदरूनी मामलों में कहीं हस्तक्षेप तो नहीं समझा जाएगा। लेकिन हमें यह सोचना होगा कि हम जिनकी फिक्र करते हैं उन्हें निर्बाध रूप से सलाह मशविरा दिए बिना कैसे उनका विकास कर सकते हैं।

दूसरी तरफ, अफ्रीका में चीन और अमेरिका की नकल करने के बजाय भारत को स्वतंत्र रूप से फ्रंट फुट पर खेलने की जरूरत है। भारत को अमेरिका और चीन से तुलना करने के बजाय अपनी खासियत के आधार पर संबंध बनाने की जरूरत है। 1हमें समझना होगा कि अफ्रीका में अमेरिका और चीन से हमारी पहचान अलग है। हमारी लोकतांत्रिक साख हमें अलग पहचान तो दिलाती ही है, साथ ही साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव और रंगभेद के खिलाफ साझा संघर्ष से उपजी एकता भारत और अफ्रीका के बीच आज भी बरकरार है।

इससे इतर हमारी समस्या यह भी है कि विकासशील देशों के मुकाबले विकसित देशों के प्रति हमारा झुकाव ज्यादा रहता है। यही वजह है कि हम इन देशों के साथ निरंतर सहयोग को बनाए रखने में पीछे रह जाते हैं। 1लिहाजा यह जरूरी है कि हम अफ्रीकी देशों की युवा शक्ति के साथ संपर्क कर उन्हें प्रशिक्षित करें, ताकि कारोबार और कूटनीति के स्तर पर भारत और अफ्रीकी देशों के बीच तालमेल और बेहतर बन सके।

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