यूनिसेफ की 20 फरवरी 2018 को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के सबसे गरीब देशों में पैदा हुए बच्चे, जिनमें से ज्यादातर अफ्रीका में हैं, अब भी मौत के “खतरनाक” जोखिमों का सामना कर रहे हैं। यह जोखिम सबसे अमीर देशों की तुलना में 50 गुना से अधिक हो सकते हैं।
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ के अनुसार, दुनिया में हर साल एक मिलियन यानी 10 लाख नवजात अपने जन्म के पहले दिन ही अपनी अंतिम सांस ले लेते हैं। यूनिसेफ ने मंगलवार को नवजात मृत्यु दर पर अपनी एक रिपोर्ट ‘एवरी चाइल्ड अलाइव’ (Every Child ALIVE) रिपोर्ट जारी की।
रिपोर्ट से जुड़े प्रमुख तथ्य:
यूनिसेफ बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था है। ‘एवरी चाइल्ड अलाइव’ (द अर्जेंट नीड टू ऐंड न्यूबॉर्न डैथ्स) शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में जापान, आइसलैंड और सिंगापुर को जन्म के लिए सबसे सुरक्षित देश बताया गया है जहां जन्म लेने के पहले 28 दिन में प्रति हजार बच्चों पर मौत का केवल एक मामला सामने आता है।
यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016 में भारत में प्रति 1,000 जीवित जन्मों में नवजात मृत्युदर 25.4 रही। श्रीलंका में यह दर 127, बांग्लादेश में 54, नेपाल में 50, भूटान में 60 तथा पाकिस्तान में प्रति 1,000 जीवित जन्म में यह दर 45.6 रही। जापान, आइसलैंड और सिंगापुर में जन्मे बच्चों के बचने के अवसर अधिक रहते हैं जबकि पाकिस्तान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और अफगानिस्तान में स्थिति बिल्कुल उलट है।
रिपोर्ट में बांग्लादेश, इथियोपिया, गिनी—बिसाउ, भारत, इंडोनेशिया, मालावी, माली, नाइजीरिया, पाकिस्तान और तंजानिया को सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करने वाले देशों में रखा गया है। इन दस देशों में दुनियाभर में नवजात बच्चों की मौत के आधे से ज्यादा मामले आते हैं।
184 देशों में हुए अध्ययन की इस रिपोर्ट के मुताबिक 80 फीसदी बच्चों की मौत का कारण कोई गंभीर बीमारी नहीं होती है। ज्यादातर बच्चों की मृत्यु का कारण समय से पहले जन्म, प्रसव के दौरान जटिलता, बीमारी की सही रोकथाम न होना और न्यूमोनिया होती है।
हर मां और बच्चे को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देकर मृत्यु दर कम की जा सकती है। इसमें साफ पानी, जन्म के पहले घंटे में स्तनपान, मां बच्चे के बीच संपर्क जरूरी है। जन्म के पहले 28 दिन नवजात के जीवित रहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सर्वाधिक मृत्युदर वाले 10 देशों में आठ अफ्रीकी देश हैं और दो दक्षिण एशिया के हैं। इस सूची में दूसरे स्थान पर मध्य अफ्रीकी गणराज्य, तीसरे पर अफगानिस्तान और चौथे पर सोमालिया है।
रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में संघर्ष, प्राकृतिक आपदाएं, अस्थिरता और कुशासन जैसी समस्याओं का प्रभाव स्वास्थ्य प्रणाली पर अकसर पडता है और नीति निर्माता प्रभावी नीतियां नहीं बना सके हैं। हालांकि 2016 में संख्या के लिहाज से देखें तो नवजात की मौतों के मामले में भारत पहले नंबर पर रहा।
भारत में पिछले साल 6,40,000 नवजातों के मारे जाने के मामले दर्ज किए गए। यहां नवजात मृत्यु दर 25.4 प्रति हजार रही। इस तरह से दुनियाभर में जन्म लेने के कुछ समय या दिनों के भीतर मौत के 24 प्रतिशत मामले भारत में दर्ज किए गए। संख्या के मामले में पाकिस्तान दूसरे नंबर पर है। यहां इस साल 2,48,000 शिशुओं की जन्म के कुछ समय बाद मौत हो गए।
निम्न मध्य आय वाले देशों में नवजात मृत्युदर के लिहाज से पाकिस्तान पहले नंबर पर है। भारत इसमें 12वें नंबर पर आता है। लेकिन केन्या, बांग्लादेश, भूटान, मोरक्को और कांगो जैसे देश इस मामले में भारत और पाकिस्तान से अच्छी स्थिति में हैं।
रिपोर्ट के अनुसार कम मृत्युदर की बात करें तो जन्म लेने के लिहाज से जापान, आइसलैंड और सिंगापुर सबसे सुरक्षित देश हैं जहां प्रति हजार जन्म पर मृत्युदर क्रमश: 0.9, 1 और 1.1 रही। अर्थात इन देशों में जन्म लेने के पहले 28 दिन में प्रति हजार बच्चों पर मौत का केवल एक मामला सामने आता है।
इस सूची में उक्त तीन देशों के बाद फिनलैंड, एस्टोनिया, स्लोवेनिया, साइप्रस, बेलारूस, कोरिया गणराज्य, नार्वे और लक्जमबर्ग के नाम हैं। यहां प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार उच्च आय वाले देशों में औसत नवजात मृत्युदर तीन है, वहीं कम आय वाली श्रेणी में आने वाले देशों में यह दर 27 प्रति हजार है। अगर हर देश अपने यहां नवजात मृत्युदर को उच्च आय वाले देशों के स्तर पर ले आये तो 2030 तक 1.6 करोड बच्चों को मरने से बचाया जा सकता है। इसके लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच को जरूरी बताया गया है।
4 ‘P’ पर ध्यान देने की जरूरत:
नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए रिपोर्ट में 4 ‘पी’ पर ध्यान देने की बात कही गयी है। इनमें प्लेस (जगह)—साफ सुथरे स्वास्थ्य केंद्र, पीपुल (लोग)—भलीभांति प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी, प्रोडक्टस (उत्पाद)—जीवनरक्षक दवा और उपकरण और पावर (अधिकार)—सम्मान, गरिमा तथा जवाबदेही का उल्लेख है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में रोजाना करीब 7000 नवजात बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक मामलों में प्रशिक्षित डाक्टरों, नर्सों आदि के माध्यम से किफायती, गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करके, प्रसव से पहले मां और प्रसव के बाद जच्चा—बच्चा को पोषण, साफ जल जैसे बुनियादी समाधानों से बच्चों की जान बचाई जा सकती है।
रिपोर्ट एक और महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाती है कि दुनियाभर में करीब 26 लाख बच्चों की जन्म लेने के एक महीने के अंदर ही मौत हो जाती है। इसके अलावा करीब 26 लाख बच्चे प्रतिवर्ष मृत ही जन्म लेते हैं। ऐसे मामलों में सरकारी स्वास्थ्य तंत्र या नीति निर्माताओं की ओर से गणना का कोई निश्चित प्रावधान नहीं होता।