• सुस्त होती अर्थव्यवस्था के लिए राहत पैकेज को लेकर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसियों ने सरकार को ऐसा नहीं करने की चेतावनी दी है। एजेंसियों का मानना है कि राहत पैकेज के तहत सरकार को अपना खर्च बढ़ाना होगा जिससे राजकोषीय हालत और खराब हो सकती है।

• जापानी वित्तीय एजेंसी नोमूरा का मानना है कि सरकार के राजस्व संग्रह की रफ्तार में फिलहाल कोई दिक्कत नहीं है। अर्थव्यवस्था की मौजूदा समस्याएं सरकार के अत्यधिक खर्च से हैं, राजस्व की कम रफ्तार की वजह से नहीं। ऐसी स्थिति में राहत पैकेज के जरिये खर्च और बढ़ाना सरकार के राजकोषीय संतुलन के लिए और भारी हो सकता है।

• चालू वित्त वर्ष के तहत किये गये सार्वजनिक खर्च में अब इस बात की गुंजाइश नहीं बची है कि इसे और बढ़ाया जा सके।1नोमूरा इंडिया के चीफ इकोनोमिस्ट सोनल वर्मा का मानना है कि इसलिए राहत पैकेज विकास की दर बढ़ाने में बहुत अधिक सहायक नहीं होगी। वर्मा का कहना है कि अगर सरकार के राजकोषीय रुख को देखें तो इसकी बहुत अधिक वजह खर्च है न कि राजस्व।

• उनका कहना है कि अप्रैल से जुलाई तक की अवधि में राजस्व संग्रह की रफ्तार इसकी ऐतिहासिक औसत दर से केवल 2.1 फीसद कम रही है। लेकिन अभी भी यह हाल के वर्षो में सबसे अच्छी है। बहुत संभव है कि टेलीकाम क्षेत्र, विनिवेश और लाभांश से मिलने वाला राजस्व लक्ष्य से कम रहे। लेकिन प्रत्यक्ष कर संग्रह की रफ्तार देखकर लगता है कि राजस्व संग्रह के लक्ष्य और प्राप्तियों में बहुत बड़ा अंतर नहीं रहेगा।

• शुरुआती दिक्कतों के बावजूद जीएसटी के चलते रेवेन्यू में बढ़त रहेगी।1दूसरी तरफ सरकार के खर्च का आंकड़ा बता रहा है कि यह अपने ऐतिहासिक औसत दर से साढ़े सात फीसद अधिक है। सरकार अपने व्यय के बजट लक्ष्य का 37.7 फीसद जुलाई तक खर्च कर चुकी है। यह इस अवधि में 2008-09 में खर्च की दर से भी अधिक है। उस वर्ष मंदी के चलते सरकार ने अर्थव्यवस्था के लिए राहत पैकेज जारी किया था।

• बीते वित्त वर्ष में भी इस अवधि में सरकार ने बजट अनुमान का 33.2 फीसद ही खर्च किया था। 1खर्च और राजस्व के इस अंतर के चलते सरकार का राजकोषीय घाटा भी अपने लक्ष्य से काफी अधिक चल रहा है। जुलाई 2017 तक यह बजट अनुमान के 92.4 फीसद के स्तर पर पहुंच चुका है।

• इस अवधि में सरकार का राजकोषीय घाटा 546532 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। जबकि बीते वर्ष इसी अवधि तक यह 504896 करोड़ रुपये था। माना जा रहा है कि इस वक्त सार्वजनिक खर्च में वृद्धि का मतलब राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को खतरनाक स्तर तक लाना होगा। जबकि पैकेज देने से खर्च में इजाफा होगा।

*⭕• सरकार का सार्वजनिक खर्च पहले से ही काफी ज्यादा :* नोमूरा:- अर्थव्यवस्था की दिक्कत अधिक खर्च की है राजस्व संग्रह की नहीं

• नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा है कि यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी दो वर्षो में हुई आर्थिक सुस्ती खत्म हो चुकी है। अगले दो तिमाहियों में विकास दर सुधरने की संभावना है। 1 कुमार ने यह माना कि नोटबंदी और जीएसटी के चलते समस्याएं आ रही हैं।

• जीएसटी लागू करने में भी परेशानियां आ रही हैं लेकिन अब लोग इसके साथ समायोजन बनाने लगे हैं। एआइएमए के डायमंड जुबली अधिवेशनमें उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास दर के लिहाज से अगला वित्त वर्ष काफी अच्छा रह सकता है।

• चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून में विकास दर तीन साल के निचले स्तर 5.7 फीसद रह गई। नीति आयोग के उपाध्यक्ष का कहना है कि मैन्यूफैक्चरिंग व सर्विस सेक्टर का पीएमआइ जुलाई में न्यूनतम स्तर छू चुका है। अब इसमें सुधार होने लगा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *