*❄️🌍वाटर इंडेक्स में धड़ाम*
नीति आयोग की रिपोर्ट देखने के बाद कम से कम इस बात पर संदेह नहीं रह गया कि भारत अपने इतिहास के सबसे भयावह जल संकट के दौर में है और यह भी कि हालात को इस कदर बिगाड़ने में अकर्मण्य सरकारी तंत्र के साथ हमारी भी बड़ी भूमिका है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, सरकार को तो युद्ध स्तर पर नई शुरुआत करनी ही होगी, हमें भी अपने-अपने स्तरों पर तत्काल सक्रिय हो जाने की जरूरत है। नीति आयोग के जल प्रबंधन इंडेक्स के अनुसार, देश के तकरीबन 60 करोड़ लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं, और दो लाख लोग हर साल सिर्फ इस कारण मर जाते हैं कि उनकी पहुंच में पीने योग्य पानी नहीं होता। 75 फीसदी घरों में पीने का पानी नहीं है और देश का करीब 70 फीसदी पानी पीने योग्य नहीं है। वाटर क्वालिटी इंडेक्स में 122 देशों की सूची में भारत 120वें स्थान पर है। रिपोर्ट आगाह करती है कि समुचित प्रबंधन न हुआ, तो 2030 तक चीजें हाथ से निकल जाएंगी, क्योंकि तब तक पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो चुकी होगी।
कुल मिलाकर, स्थिति भयावह है और बात कटते वनों, नव वनीकरण में कोताही, अंधाधुंध निर्माण के लिए जल दोहन और शहरीकरण में जल स्रोतों के खत्म होते जाने के सियापे से आगे जा चुकी है। तमाम और कारण भी हैं। आज भी हम खेती के लिए पानी के तार्किक उपयोग वाले सिंचाई के उन्नत इंतजाम में पीछे हैं, जो बड़ी समस्या है। अंधाधुंध शहरीकरण में उगते कंक्रीट के जंगलों ने पानी की पारंपरिक रिचार्जिंग तो कम की ही, पारंपरिक जल स्रोतों को खत्म ही कर दिया। इन्हें किसी भी सूरत में वापस लाना होगा। नदियों, धाराओं व तालाबों में रसायन और कचरा डालने पर दिखावटी सख्ती हुई, लेकिन असल में कुछ नहीं हुआ। शहरी उपभोक्ता, कृषि क्षेत्र व उद्योगों के बीच पानी के बंटवारे का असंतुलन भी हम नहीं ही दूर कर पाए। इस मामले में सरकारी तंत्र की नाकामी सबसे ऊपर है। पर सच यह है कि बहुत छोटे दिखने वाले उपाय अमल में लाकर भी इस बड़े संकट को छोटा किया जा सकता था।
आंकडे़ बताते हैं कि महज घरों के यूरीनल में हर बार फ्लश चलाने से बचा जाए या वाटर फ्री यूरीनल का प्रयोग किया जाए, तो हर घर से, हर दिन इतना पानी बचेगा कि सौ फ्लैट वाला एक अपार्टमेंट हर दिन अकेले कम से कम सात हजार लीटर पानी बचा सकता है। कल्पना करें कि यह प्रयोग अगर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे जल संकट से जूझते शहरों में ही क्यों, हर शहर के हर अपार्टमेंट, दफ्तर और स्कूल में अनिवार्य हो जाए, तो नतीजे कितने सुखद होंगे? मानना होगा कि जब हम अपार्टमेंट की राह चल ही पड़े हैं, तो जरूरी है कि वह संस्कृति भी अपनाएं, जो इस राह को सुखकर बनाए। सबसे ज्यादा जल दोहन यहीं से हुआ है, तो सबसे पहली नई शुरुआत भी यहीं से होनी चाहिए। हर अपार्टमेंट यदि किचन और बाथरूम के पानी का संचय कर उसके शोधन और फिर से इस्तेमाल की व्यवस्था कर ले, वाटर फ्री यूरीनल का प्रयोग शर्त बन जाए, तो नतीजे कितने प्रीतिकर होंगे, सहज ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यह मानने में गुरेज नहीं कि जिन हालात की ओर हम खुद को धकेल रहे हैं, उसमें कल को हमारा भी कोई शहर केपटाउन बन जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा। शिमला जैसे शहर तो उस दरवाजे पर खड़े ही हैं।