विकास के कई रास्ते इस सेज से भी निकल सकते हैं

(जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री)

सेज यानी स्पेशल इकोनॉमिक जोन को हम भूलने लग गए हैं। सेज की लिए आवंटित बहुत सी जमीनें खाली पड़ी हैं और अब इन पर कोई चर्चा तक नहीं होती। हालांकि इसका आरोप मौजूदा केंद्र सरकार पर नहीं मढ़ा जा सकता, यह काम उससे बहुत पहले ही शुरू हो गया था। जबकि निर्यात बढ़ाने और 2020 तक विश्व बाजार में दो फीसदी हिस्सेदारी बनाने के लिए सेज की भूमिका को प्रभावी बनाना जरूरी है।

हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय ने सेज से संबंधित जो आंकड़े पेश किए हैं, वे बताते हैं कि सेज रोजगार सृजन, निवेश और निर्यात के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हुआ है। 30 अगस्त, 2017 तक 373 अधिसूचित सेज में से 223 सेज चालू हैं और 150 का परिचालन ही नहीं हो रहा है। यह भी बताया गया कि 373 सेज के लिए 45,711.64 हेक्टेयर जमीन आवंटित की गई थी। लेकिन इसमें से 23,779.19 हेक्टेयर जमीन अभी खाली पड़ी है। दूसरी तरफ भारतीय वाणिज्य व उद्योग मंडल (एसोचैम) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में जितने सेज हैं, उनमें आधे से अधिक बेकार पड़े हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि देश में सेज से रोजगार सृजन, निवेश और निर्यात के जो अनुमान लगाए गए थे, वे वास्तविक धरातल से दूर रह गए हैं।

देश में वर्ष 2000 से शुरू हुई सेज की अवधारणा का मकसद निर्यात आधारित इकाइयों को विशेष प्रोत्साहन देना था। निर्यात को बढ़ाने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को गति देने और रोजगार के अवसर बढ़ाना भी सेज का प्रमुख उद्देश्य है। सेज के तहत निर्यात आधारित उद्योगों को न्यूनतम कागजी कार्यवाही और नियमों के साथ अच्छे इन्फ्रास्ट्रक्चर और आकर्षक वित्तीय सुविधाएं देने की व्यवस्था की गई। लेकिन अगर हम सेज की अब तक की प्रगति को देखें, तो इसके सफल न हो पाने का एक बड़ा कारण इससे संबंधित नीतियों की अस्थिरता है। एक समय के बाद नीतियां और बजट प्रावधान इस योजना को लेकर खामोश हो गए।

केंद्र सरकार ने 2018-19 में निर्यात को 350 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन जिस तरह से दुनिया में ‘ट्रेड वॉर’ शुरू हुई है, उसमें चुनौती और भी कठिन हो गई है। निर्यात क्षेत्र की चुनौती अभी इसलिए और बढ़ेगी, क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक वर्ष 2018 के अंत तक भारत को निर्यात सब्सिडी बंद करनी होगी। अमेरिका से आईटी निर्यात की आमदनी आधी से कम रह जाने की आशंका बढ़ रही है। ऐसे में, सेज से उम्मीद बांधी जा सकती है।

सेज की अवधारणा चीन के आर्थिक जोन से उपजी थी, उम्मीद थी कि इस रास्ते से हमारी अर्थव्यवस्था अपने पांवों पर खड़ी होगी, फिर हम विश्व बाजार में चीन के आधिपत्य को उसी की भाषा में जवाब देने की स्थिति में होंगे। लेकिन कई कारणों से बात आगे नहीं बढ़ी। इस बीच भारत के मुकाबले कई छोटे-छोटे देश मसलन बांग्लादेश, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों ने अपने निर्यातकों को सुविधाओं का ढेर देकर भारतीय निर्यातकों के सामने कड़ी प्रतिस्पद्र्धा खड़ी कर दी है। ऐसे में एक बार फिर सेज पर ध्यान देते हुए उसे गतिशील बनाना जरूरी है। जरूरी है कि सेज में नई जान फूंकने के लिए एकल खिड़की मंजूरी व्यवस्था लागू करने के साथ ही कारोबार आसान बनाया जाए और कंपनियों को सेज में उद्योग लगाने पर कर छूट संबंधी विशेष लाभ दिया जाए। सेज के माध्यम से निर्यात बढ़ाने के लिए अब नए प्रयास जरूरी हैं। जरूरी है कि सेज के तहत निर्यातकों को नए प्रोत्साहन दिए जाएं। हमें उम्मीद बांधनी चाहिए कि निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी को तेजी से बढ़ाने के लिए सेज की भूमिका को प्रभावी और कारगर बनाने के रणनीतिक प्रयासतेजी से किए जाएंगे। पहली प्राथमिकता ऐसी रणनीति की होनी चाहिए, जिससे देश में सेज के लिए आवंटित की आधी से अधिक खाली जमीन का उपयुक्त औद्योगिक उपयोग हो। साथ ही, देश में जो आधे से ज्यादा सेज बेकार पड़े हुए हैं, उन्हें उपयोगी और सक्रिय बनाकर निर्यात और रोजगार के बडे़ इंजन के रूप में विकसित किया जाए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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