*आभार-अरविंद जयतिलक*

ईरान के राष्ट्रपति द्वारा चाबहार बंदरगाह के उद्घाटन के साथ ही भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट मार्ग की शुरुआत हो गई है। इसके जरिए भारत बगैर पाकिस्तान गए ही अफगानिस्तान और उससे आगे रूस और यूरोप से आर्थिक कारोबार को अंजाम दे सकेगा। अभी तक भारत को अफगानिस्तान जाने के लिए पाकिस्तान होकर ही जाना पड़ता था। चूंकि कांडला और चाबहार बंदरगाह के बीच की दूरी नई दिल्ली और मुंबई के बीच की दूरी से भी कम है इसलिए इस समझौते से भारत अपनी वस्तुओं को ईरान के जरिए अफगानिस्तान आसानी से भेज सकेगा। इससे परिवहन लागत और समय दोनों की बचत होगी। याद होगा गत वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्र के दौरान दोनों देशों के बीच 12 समझौतों पर मुहर लगी जिसमें चाबहार बंदरगाह का विकास व चाबहार-जाहेदान रेलमार्ग निर्माण समझौता प्राथमिकता में था।

चाबहार बंदरगाह के भौगोलिक स्थिति पर गौर करें तो यह सिस्तान-ब्लूचिस्तान प्रांत में स्थित फारस की खाड़ी से बाहर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसलिए भारत के पश्चिमी तट से चाबहार आसानी से पहुंचा जा सकता है। महीने भर पहले ही भारत ने गेहूं की एक खेप चाबहार बंदरगाह के रास्ते अफगानिस्तान भेजी थी। वैश्विक समुदाय इस कदम को तीनों देशों के बीच नए रणनीतिक मार्ग की शुरुआत के तौर पर देख रहा है।

भारत के लिए चाबहार से जुड़ाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह पाकिस्तान में चीन द्वारा चलने वाले ग्वादर बंदरगाह से सिर्फ 100 मीटर ही दूर है। गौरतलब है कि चीन इसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के जरिए बनवा रहा है। दरअसल चीन की मंशा इस बंदरगाह के जरिए एशिया में नए व्यापार और परिवहन मार्ग खोलकर अपना दबदबा कायम करना है, लेकिन चाबहार के जरिए अब भारत चीन-पाकिस्तान की हर हरकत पर नजर रख सकेगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि चाबहार से जुड़ाव से जहां व्यापार-कारोबार को बढ़ावा मिलेगा वहीं इस क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान की भारत को घेरने की मंशा भी धरी की धरी रह जाएगी।

चाहबहार समझौते के आकार लेने से अफगानिस्तान और इससे सटे ईरान के इस बेहद अहम इलाके में बढ़ते चीन के प्रभाव पर अब आसानी से नियंत्रण रखा जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि भारत की ओर से दक्षिण-पूर्व ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह को विकसित करने की रणनीति 2003 में बनाई गई थी, लेकिन ईरान के उत्साह में कमी और बाद में उस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगने की वजह से रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी। मगर चाबहार बंदरगाह के जरिए अब भारत का अफगानिस्तान और राष्ट्रकूल देशों से लेकर पूर्वी यूरोप तक संपर्क बढ़ जाएगा। भारत की वस्तुएं तेजी से ईरान पहुंचेंगी और वहां से नए रेल व सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान समेत मध्य एशियाई देशों को भेजा जा सकेगा।

महत्वपूर्ण तथ्य यह भी कि भारत और ईरान एक दूसरे से कंधा जोड़ अफगानिस्तान में शांति तथा स्थायित्व लाने में भी सहायक सिद्ध होंगे। उल्लेखनीय है कि दोनों देशों का नजरिया तालिबान विरोधी और उत्तरी गठबंधन यानी नॉदर्न गठबंधन का हिमायती है। इसके अलावा मध्य एशिया में आर्थिक अवसरों तथा प्राकृतिक संसाधनों तक भारत की पहुंच बनाने में ईरान एक उपयुक्त गलियारा उपलब्ध कराता है। मध्य एशिया भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह क्षेत्र पर्याप्त मात्र में खनिज संसाधनों से भरपूर है। इनमें से तीन गणराज्य कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान व तुर्केमेनिस्तान दुनिया के सबसे बड़े तेल व प्राकृतिक गैस क्षेत्र के मालिक हैं। चूंकि आर्थिक रूप से मध्य एशियाई देश उदारीकरण की नीति का अनुसरण कर रहे हैं इस लिहाज से ये भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। चूंकि सामरिक लिहाज से भी मध्य एशिया भारत के लिए महत्वपूर्ण है ऐसे में चाबहार बंदरगाह की भूमिका भारत के लिए अति महत्वपूर्ण हो जाती है।

यह सत्य है कि भारत के लिए मध्य एशिया में शांति एवं अस्थिरता आवश्यक है। चूंकि मध्य एशिया की सीमा अफगानिस्तान से लगी है और अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान की चुनौतियां सघन हुई हैं, ऐसे में भारत के लिए मध्य एशिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना आवश्यक है। ईरान के साथ दोस्ती और मध्य एशिया में सशक्त भागीदारी से न सिर्फ पाकिस्तानी और चीनी सैन्य गतिविधियों पर निगरानी रखा जा सकेगा बल्कि आतंकी समूहों की आवाजाही पर भी भारत की नजर रख सकेगा। ऐसे में भारत और ईरान कंधे से कंधा मिलाकर इस क्षेत्र में अपनी भू-सामरिक रणनीति मजबूत करते हुए चाबहार बंदरगाह के जरिए द्विपक्षीय कारोबारी रिश्ते को भी बुलंदी पर पहुंचा सकते हैं। भारत-ईरान आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंध परंपरागत रूप से भारत द्वारा ईरानी कच्चे तेल आयात के माध्यम से प्रवाहित है। ईरान विश्व में तेल एवं गैस के व्यापक भंडारों वाले देशों में से एक है और मौजूदा समय में भारत को अपनी सकल घरेलू उत्पाद की दर 8-9 प्रतिशत बनाए रखने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता है जिसे ईरान आसानी से पूरा कर सकता है।

भारत भी ईरान को जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध कराने की वचनबद्धता पर कायम है। चाबहार समझौते के आकार लेने से भारत से ईरान को निर्यात की जा रही वस्तुएं मसलन चावल, मशीनें एवं उपकरण, धातुओं के उत्पाद, प्राथमिक और अर्धनिर्मित लोहा, औषधियों एवं उत्तम रसायन, धागे, कपड़े, चाय, कृषि रसायन एवं रबड़ इत्यादि में तेजी आएगी। भारत आइटीईसी कार्यक्रम के तहत ईरान को प्रत्येक वर्ष 10 स्लॉट उपलब्ध करा रहा है। दोनों देश आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार देने के लिए कई परियोजनाओं को आकार देना चाहते हैं। इनमें ईरान-पाकिस्तान-इंडिया गैस पाइप लाइन परियोजना, एलएनजी की पांच मिलियन टन की दीर्धकालीन वार्षिक आपूर्ति, फारसी तेल एवं गैस प्रखंड का विकास, दक्षिण पार्श गैस क्षेत्र और एनएनजी परियोजना विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस परियोजना में भारत की उर्जा जरूरतें पूरा करने की आश्चर्यजनक क्षमताएं हैं। नि:संदेह चाबहार के आकार लेने से ईरान से आर्थिक व सामरिक संबंध मजबूत होंगे। *(आभार सहित दैनिक जागरण )*
*(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)*

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