1.भारत-चीन को सब्सिडी देना पागलपन : ट्रंप
• अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और चीन जैसे उभरते देशों को मिलने वाली सब्सिडी रोकना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि विकासशील होने के नाम पर इन देशों को सब्सिडी देना पागलपन है। अमेरिका खुद विकासशील देश है और हम औरों से तेज विकास करना चाहते हैं।1नॉर्थ डकोटा के फागरे शहर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ट्रंप ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) पर आरोप लगाया कि उसने जानबूझकर चीन को बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का मौका दिया।
• ट्रंप ने कहा, ‘कुछ देश हैं जिन्हें उभरती अर्थव्यवस्था माना जाता है। कुछ देश जो पर्याप्त परिपक्व नहीं हुए हैं, हमें उन्हें सब्सिडी देनी पड़ती है। भारत, चीन जैसे देशों को हम कहते हैं कि ये विकास कर रहे हैं। ये देश खुद को विकासशील की श्रेणी में रखते हैं और सब्सिडी पाते हैं। यह पागलपन है कि हमें इन्हें पैसा देना पड़ता है। लेकिन हम इसे रोकने जा रहे हैं। हमने इसे रोका है।’
• अमेरिका को भी विकासशील देशों की श्रेणी में रखते हुए ट्रंप ने कहा, ‘जहां तक मेरा मानना है, हम भी विकासशील देश हैं। मैं चाहता हूं कि हमें भी उस श्रेणी में रखा जाए, क्योंकि हम भी उभर रहे हैं। हम बाकी सब की तुलना में तेजी से उभर रहे हैं।’
• ट्रंप के इस रुख से विकसित बनाम विकासशील देशों की लंबे समय से चली आ रही बहस में एक नया मोड़ आ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह रुख विकासशील देशों से अमेरिका की दूरी को बढ़ा सकता है।
• ट्रंप ने डब्ल्यूटीओ पर भी निशाना साधा। उन्होंने इसे सबसे बेकार अंतरराष्ट्रीय संगठन बताया। उन्होंने कहा, ‘बहुत से लोग नहीं जानते कि यही है जिसने चीन को आर्थिक महाशक्ति बनने का मौका दिया।’ अमेरिका-चीन में ट्रेड वार की स्थिति पर ट्रंप ने कहा, ‘मैं चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। लेकिन मैंने उनसे कह दिया है कि हमें व्यापार में संतुलित होना पड़ेगा। हम चीन को हर साल अमेरिका से 500 अरब डॉलर ले जाकर खुद को मजबूत करने की अनुमति नहीं दे सकते।’
• ट्रंप ने कहा कि अमीर देशों को बाहरी खतरों से बचाने के लिए अमेरिका को मूल्य मिलना चाहिए। अमेरिका पूरी दुनिया का ख्याल रखता है और वो इसे हल्के में लेते हैं। उन्होंने कहा, ‘कई वर्षो से हम इन देशों की सुरक्षा कर रहे हैं।
• वे अपनी संपत्ति बढ़ा रहे हैं। उनका सैन्य खर्च बहुत कम है। दुनियाभर में हमारा सैन्य खर्च सबसे ज्यादा है। इसमें ज्यादातर सेना बाहरी देशों को बचाने में लगती है। इनमें ऐसे देश भी शामिल हैं, जो हमें पसंद नहीं करते।’

2. नेपाल को लुभाने की चीन की नई चाल : व्यापार करने के लिए दी अपनी जमीन के इस्तेमाल की इजाजत
• अभी तक दूसरे देशों को कर्ज देकर उन पर दबाव बना रहे चीन ने नई चाल चली है। उसने भारत के पड़ोसी देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाने के क्रम में नेपाल को लुभाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। उसने नेपाल को अपने चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टो का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी। इससे जमीन से घिरे नेपाल की अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए भारत पर निर्भरता कम हो जाएगी।
• दोनों देशों ने छह चेकप्वाइंट से चीनी सरजमीं पर पहुंचने का रास्ता तय किया है। शुक्रवार को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
• विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने यहां बताया कि नेपाल अब चीन के शेनजेन, लियानयुगांग, झाजियांग और तियानजिन बंदरगाहों का इस्तेमाल कर सकेगा। तियानजिन नेपाल से सबसे नजदीकी बंदरगाह है और यह नेपाली सीमा से करीब 3,300 किमी दूर है।1इसी प्रकार चीन ने लंझाऊ, ल्हासा और शीगाट्स लैंड पोर्टो के इस्तेमाल की भी अनुमति नेपाल को दे दी।
• इससे नेपाल को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा। नई व्यवस्था के तहत चीनी अधिकारी तिब्बत में शीगाट्स के रास्ते नेपाल सामान लेकर आने-जाने वाले ट्रकों और कंटेनरों को परमिट देंगे। इस समझौते ने नेपाल के लिए कारोबार के नए दरवाजे खोल दिए हैं, जो अब तक भारतीय बंदरगाहों पर पूरी तरह निर्भर था।
• नेपाल के उद्योग और वाणिज्य मंत्रलय में संयुक्त सचिव रवि शंकर सैंजू ने कहा कि इस समझौते से किसी तीसरे देश के साथ कारोबार के लिए नेपाली कारोबारियों को बंदरगाहों तक पहुंचने के लिए रेल या रोड मार्ग का इस्तेमाल करने की अनुमति होगी। इस सिलसिले में चीन के साथ बातचीत के दौरान रवि शंकर ने ही नेपाली प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था।
• चीन के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की मार्च 2016 में चीन यात्र के दौरान ही इस समझौते पर सहमति बनी थी।चीन के विदेश मंत्री वाग यी (बाएं) ने शनिवार को इस्लामाबाद में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से मुलाकात की।

NATIONAL

3. चमक खो रहे हैं चुनावी बांड
• राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयास संभवत: फीके पड़ रहे हैं। चुनावी बांड के जरिये चंदा देने की मुहिम शुरू करने की कोशिश रफ्तार पकड़ती नहीं दिख रही है। कम से कम चुनावी बांडों की बिक्री के आंकड़ों का ताजा रुख तो यही संकेत कर रहा है। अब तक चार चरणों में हुई बिक्री में न केवल बिकने वाले बांडों की संख्या में कमी आई है, बल्कि राशि भी कम हो रही है।
• सरकार ने चुनावी फंडिंग को साफ-सुथरा बनाने के लिए साल 2017-18 के बजट में चुनावी बांड स्कीम की घोषणा की थी। मार्च में पहले चरण में बांडों की बिक्री शुरू हुई और जुलाई में इसका चौथा चरण पूरा हुआ। चारों चरणों के बिक्री आंकड़े बताते हैं कि बांडों की बिक्री की संख्या लगातार घट रही है। मार्च 2018 में कुल 520 बांडों की बिक्री हुई, जिससे सरकार को 222 करोड़ रुपये मिले। बांडों की यह संख्या जुलाई तक आते आते 82 तक सीमित रह गई है।
• सूत्रों का कहना है कि इस अवधि में केवल 32.5 करोड़ रुपये के ही बांडों की बिक्री हुई है।1सरकार ने चुनावी बांडों की बिक्री की जिम्मेदारी देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक को सौंपी है। अब तक हुए चार चरणों में कुल 470.80 करोड़ रुपये की राशि के ही बांडों की बिक्री हुई है।
• संसद में सरकार की तरफ से पेश आंकड़ों के मुताबिक पहले तीन चरण (मार्च, अप्रैल, मई 2018) में 438.3 करोड़ रुपये के कुल 980 बांडों की बिक्री हुई। लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने केवल 959 बांडों को ही भुनाया था जिनसे उन्हें 427.3 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ।
• सूत्र बताते हैं कि चौथे चरण में बिकने वाले 82 बांडों में अधिकांश बांड बड़ी राशि यानी दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये वाले हैं। एक हजार और दस हजार रुपये की राशि वाले बांडों की संख्या नगण्य रही है। जहां तक बांड खरीदारी में आगे रहने वाले शहरों की बात है, तो उसमें मुंबई और दिल्ली का नाम शामिल है।
• वित्त मंत्रलय के एक अधिकारी के मुताबिक चुनावी बांडों की बिक्री संख्या में कमी यह बता रही है कि राजनीतिक पार्टियों को बांडों के जरिए चंदा देने में कतराने लगे हैं। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि चुनाव नजदीक आने पर चुनावी बांड की बिक्री एक बार फिर रफ्तार पकड़ सकती है।
• सरकार ने बजट में घोषणा करने के लगभग एक साल बाद जनवरी 2018 में इसकी अधिसूचना जारी की थी। मार्च में 520 बांडों के मुकाबले अप्रैल की बिक्री में 114.90 करोड़ रुपये के 256 बांड बिके। मई में हुए तीसरे चरण में 101.40 करोड़ रुपये की राशि के 204 बांडों की बिक्री हुई।
• चुनावी बांड जारी किए जाते समय यह अपेक्षा की गई थी कि इससे चुनावी राजनीति में सुधार लाने की दिशा में बड़ी मदद मिलेगी, लेकिन जैसी जमीनी हकीकत सामने आ रही है उससे यह अपेक्षा पूरी हो पाना मुश्किल नजर आ रहा है। राजनीति में घर कर गई खामियों की एक बड़ी वजह राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता के अभाव को मानी जाती है।

ECONOMY

4. एफपीआइ के नियम बदलने का सुझाव
• मार्केट रेगुलेटर सेबी विदेशी निवेशकों की चिंताएं और आशंकाएं खत्म करने के लिए सक्रिय हो गया है। एक उच्च स्तरीय पैनल द्वारा कई विवादित प्रस्तावों में बदलाव और प्रस्तावित नियमों के अनुपालन के लिए ज्यादा समय दिए जाने के सुझाव के बाद उसने सभी पक्षों से विचार विमर्श शुरू किया है।
• सभी पक्षों के सुझावों पर विचार करने के बाद ही वह केवाईसी और लाभार्थी के स्वामित्व संबंधी नियमों के संबंध में गाइडलाइन को अंतिम रूप देगा। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह बाजार में विदेशी निवेशकों की चिंता में बाजार में गिरावट दर्ज की गई थी।
• बाजारा में इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों के स्वामित्व वाले विदेशी फंडों समेत सभी तरह के विदेशी फंडों को नए नियमों के पालन में दिक्कतें आ सकती हैं। दिसंबर तक इनका अनुपालन सुनिश्चित करना और भी मुश्किल हो सकता है।
• इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के पूर्व डिप्टी गवर्नर एचआर खान की अध्यक्षता वाली समिति ने वित्त मंत्रलय और उद्योग प्रतिनिधियों से बातचीत के आधार पर कई बदलाव करने का सुझाव दिया है।1सेबी ने समिति की अंतरिम रिपोर्ट सार्वजनिक करके 17 सितंबर तक सुझाव और प्रतिक्रियाएं मांगी हैं।
• समिति के अनुसार ने अप्रवासी भारतीयों (एनआरआइ), ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया(ओसीआइ) और प्रवासी भारतीयों (आरआइ) को फॉरेन पोर्टफोलिया इन्वेस्टर (एफपीआइ) में गैर नियंत्रणकारी हिस्सेदारी लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। निवेश नहीं कर रहे एफपीआइ या सेबी में पंजीकृत ऑफशोर फंडों के प्रबंधन से उन्हें रोका नहीं जाना चाहिए।
• पंजीकृत निवेश प्रबंधकों के मामले में भी यही होना चाहिए। समिति का सुझाव है कि एनआरआइ, ओसीआइ और आरआइ के पास एफपीआइ का एयूएम (असेट अंडर मैनेजमेंट) एकल 25 फीसद और समग्र 50 फीसद तक है तो उन्हें एफपीआइ का संघटक बनने की अनुमति होनी चाहिए।
• समिति का कहना है कि तत्कालीन भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआइओ) पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए। सुनियंत्रित और पब्लिकली नियंत्रित एफपीआइ को अपनी निवेश सीमा को मिलाने की अनुमति देने का भी सुझाव दिया गया है। केवाइसी के बारे में समिति का कहना है कि सरकार संबंधित एफपीआइ (कैटागरी-1) के मामले में लाभार्थी के स्वामित्व के लिए अतिरिक्त दस्तावेजों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
• सेबी ने अप्रैल में एक सकरुलर जारी किया था जिसमें उसने केवाईसी और लाभार्थी स्वामित्व की पहचान के लिए नए नियमों का प्रस्ताव किया था। इसके लिए अंतिम तारीख दो माह बढ़ाकर दिसंबर कर दी गई थी। किसी भारतीय या अप्रवासी भारतीय द्वारा मॉरीशस, सिंगापुर, दुबई जैसे दूसरे देशों के रास्ते पैसा वापस देश में भेजने की संभावना को खत्म करने के लिए सेबी ने ये नियम बनाए थे। इन नियमों पर कई एफपीआइ ने चिंता जताई।
• हाल में एमरी नाम के लॉबी ग्रुप ने कहा कि अगर नए नियम नहीं बदले गए तो तमाम विदेशी निवेशक देश में पैसा नहीं लगा पाएंगे। उनके अयोग्य होने से 75 अरब डॉलर का निवेश अत्यंत कम समय में निकालना होगा। उसने शेयर बाजार और रुपये पर भारी दबाव पड़ने की चेतावनी दी थी। हालांकि इसके बाद सेबी ने इसे निराधार और गैर जिम्मेदाराना दावा करार दिया।

SCIENCE

5. मंगल ग्रह पर रोवर की लैंडिंग के लिए किया सुपरसॉनिक पैराशूट का परीक्षण
• अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक सुपरसॉनिक पैराशूट का परीक्षण करने के लिए वर्जीनिया स्थित वालूप्स फ्लाइट फैसीलिटी से साउंडिंग रॉकेट लांच किया। इस पैराशूट का इस्तेमाल 2020 में मंगल ग्रह पर रोवर को उतारने के लिए किया जाना है। बता दें कि साउंडिंग रॉकेट उड़ान के दौरान निरीक्षण और डाटा जुटाने में सक्षम होता है।
• रॉकेट के साथ लांच हुए एडवांस सुपरसॉनिक पैराशूट इन्फ्लेशन रिसर्च एक्सपेरिमेंट (एस्पायर) को नासा के जेट प्रोपल्शन लैब (जेपीएल) में तैयार किया गया था। नासा ने बताया कि इस सबऑर्बाइटल लांच (जब अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष की बाहरी सीमा को छू कर लौट आए) को मंगल की परिस्थितियों की नकल कर डिजाइन किया गया था।
• पृथ्वी पर लौटते हुए पैराशूट वालूप्स से करीब 28 मील दूर अटलांटिक महासागर में गिरा था। वैज्ञानिक पैराशूट का निरीक्षण करने के साथ उससे जुटाए गए डाटा का अध्ययन कर रहे हैं।
• जेपीएल के इंजीनियर ने बताया कि यह मंगल ग्रह पर 2020 में भेजे जा रहे रोवर के डिजाइन की मजबूती का परीक्षण था। यह मिशन मंगल ग्रह के वातावरण के करीब जाने की कोशिश है। बता दें कि नासा 2020 के जुलाई या अगस्त में रोवर लांच कर सकती है।
• उस वक्त पृथ्वी और मंगल ऐसी स्थिति में होते हैं जो लाल ग्रह पर रोवर की लैंडिंग के लिए सही है। यह मिशन ग्रह पर जीवन की खोज का अगला कदम होगा। इसके तहत केवल रहने योग्य वातावरण नहीं बल्कि सूक्ष्मजीवों के पुरातन संसार के चिह्न् भी तलाशे जाएंगे।

Sorce of the News (With Regards):- compile by Dr Sanjan,Dainik Jagran(Rashtriya Sanskaran),Dainik Bhaskar(Rashtriya Sanskaran), Rashtriya Sahara(Rashtriya Sanskaran) Hindustan dainik(Delhi), Nai Duniya, Hindustan Times, The Hindu, BBC Portal, The Economic Times(Hindi& English)

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