(देविंदर शर्मा )

(दैनिक भास्कर )

कुछ साल पहले एक लेखक ने मुझसे वर्ल्ड डिजास्टर रिपोर्ट का हवाला देते हुए पूछा कि क्या जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान भविष्य में किसान के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगा। मैंने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता, क्योंकि इससे बड़ी आपदा आने वाली है। किसान जानते हैं कि कब सूखा आने वाला है, वे जानते हैं जब गरमी का दौर लंबा खिंच जाए तो कौन से कदम उठाने हैं। वे कीटों के हमलों का सामना करने के लिए तैयार होते हैं। उन्हें पता है कि भारी वर्षा के दौरान फसल का नुकसान कैसे कम किया जाए। लेकिन, कल्पना कीजिए किसान को तब कितना आघात लगता होगा, जब उसे पता लगे कि बम्पर फसल के बाद कीमतें बुरी तरह गिर गई हैं। यह वही है जिसे मैं ‘प्रोड्यूस एंड पैरिश’ यानी पैदा करो और नष्ट हो जाओ कहता हूं। किसान रिकॉर्ड फसल लेता है सिर्फ पहले से देखी गई आपदा झेलने के लिए।

लगातार दो साल सूखे के बाद वर्षा के देवता आखिर मुस्कुराए। सामान्य कृषि मौसम की उम्मीद से किसानों ने पिछले दो मौसम के नुकसान की कसर निकालने के लिए खूब मेहनत की। उन्होंने सोचा कि अच्छी फसल उनके लिए अच्छी कीमतें लाएगी लेकिन, बाजार अचानक ध्वस्त हो गया। दालें, टमाटर, आलू, प्याज, सरसों और अन्य सब्जियों की कीमतें बुरी तरह गिर गईं, जिससे किसान अपनी उपज फेंकने पर मजबूर हो गए। किसान का गुस्सा विशाल विरोध प्रदर्शन में फुट पड़ा, जिसकी शुरुआत महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से हुई।

खेती के मोर्चे पर और भी संकट पैदा हो रहे हैं। ऐसे समय जब किसान संगठन कर्ज माफी और लागत पर 50 फीसदी मुनाफा देने की स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें लागू करने की मांग के लिए 9 से 15 अगस्त तक जेल भरो आंदोलन की योजना बना रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि फिलहाल चल रही अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौता वार्ताएं भारतीय कृषि के लिए अधिक बड़ा खतरा है। 1995 के बाद जब से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) वजूद में आया, विकासशील देशों को व्यापार संबंधी सारी पाबंदियां और आयात शुल्क हटाने पर मजबूर करने के प्रयास हैं। शुरू में डब्ल्यूटीओ के जरिये दो देशों या देशों के समूहों को द्विपक्षीय या बहुपक्षीय मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) करने के लिए आक्रामक तरीके से दवाब डाला गया।

तिरुवनंतपुरम स्थित स्वैच्छिक संगठन ‘थानाल’ के श्रीधर राधाकृष्णन बताते हैं कि आसियान ट्रेडिंग ब्लॉक के साथ एफटीए ने केरल में बागानदारों की आजीविका पर प्रहार किया है। वे कहते हैं- ‘सात साल पहले हमने केरल सरकार ने पूर्वानुमान लगाया था कि आयात शुल्क में कमी का केरल पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा खासतौर पर रबर मसालों के उत्पादकों पर।’ वे बताते हैं कि पूर्वानुमान के मुताबिक बढ़ते आयात के साथ कीमतें गिर गई हैं। इस बातों पर ध्यान देकर समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली केंद्र सरकार ने उन किसानों को मुआवजा या मदद के लिए कुछ नहीं किया, जिनकी जिंदगी-आजीविका पर गहरा असर हुआ। केरल सरकार पर यह बोझ डाल दिया गया कि वह हर साल कीमतें गिरने से रबर के किसानों को होने वाले 5 अरब रुपए के नुकसान की भरपाई करे।

इतना ही नहीं, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) संधि के तहत 92 फीसदी व्यापारिक वस्तुओं पर से आयात शुल्क हटाने पर विचार हो रहा है। जुलाई में हैदराबाद में इन वार्ताओं का ताजा दौर हुआ है। इससे भी बुरी बात यह है कि जो ड्‌यूटी जीरो हो जाएगी उसे बाद में बढ़ाया नहीं जा सकेगा। यह ऐसा प्रावधान है, जो डब्ल्यूटीओ में भी नहीं है। दूसरे शब्दों में यदि भारत आरसीईपी संधि पर हस्ताक्षर करने पर सहमत होता है तो इससे भारतीय बाजार आने वाले समय के लिए बिना किसी आयात शुल्क के साथ खुल जाएगा। इससे 60 करोड़ किसानों की आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भारत का अधिकार छिन जाएगा। इस संधि पर दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और चीन सहित 16 देश बातचीत कर रहे हैं। हर बार भारत जब व्यापार समझौतों में बातचीत करता है तो यह अपने पेशेवरों के लिए सीमा पार आवाजाही में आसान नियमों की मांग करता है। निश्चित ही यह महत्वपूूर्ण है पर मुझे समझ नहीं आता कि क्यों खेती को इस प्रक्रिया में बलि चढ़ाया जा रहा है, क्योंकि 60 करोड़ किसानों को आजीविका ेने वाली घरेलूू खेती को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बलिवेदी पर तो नहीं रखा जा सकता। डेयरी सेक्टर का मामला लीजिए। अमूल डेयरी कोऑपरेटिव के सीनियर जनरल मैनेजर जयन मेहता बताते हैं कि आरसीईपी वार्ताओं से डेयरी फार्मिंग में 15 करोड़ आजीविकाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा दूध उत्पादक है। दूध और दूध के उत्पादों का आयात 40 से 60 फीसदी आयात शुल्क पर आयात करने की अनुमति है। इससे स्थानीय डेयरी उद्योग को पर्याप्त संरक्षण मिल जाता है ताकि वे बाजार में टिकने लायक स्पर्धा कर सके। यदि सारे द्वार खोल दिए जाए तो भारत में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आने वाले सस्ते दूध की बाढ़ जाएगी। यह भूले कि सिर्फ 6,300 डेयरी फार्मर वाला ऑस्ट्रेलिया और 12,000 डेयरी फार्मर वाला न्यूजीलैंड अपने छोटे डेयरी समुदाय का संरक्षण आक्रामक ढंग से रख रहे हैं। वहीं भारत 15 करोड़ किसानों की आजीविका नष्ट करने पर तुला हुआ है।

भारत को हर तरह के फल, सब्जियों, फलियों, आलू, मसाले, बागानों की फसलों, बीज, रेशम, प्रसंस्करित खाद्य आदि के लिए बाजार खोलना पड़ेगा। हालांकि, भारत अब भी सिर्फ 80 फीसदी व्यापारिक वस्तुओं पर शून्य शुल्क पर जोर दे रहा है लेकिन, वार्ता पर चीन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया का आक्रामक रवैया हावी है।

दुनिया को यह समझने में बरसों लग गए कि डब्ल्यूटीओ सिर्फ शीर्ष 1 फीसदी के वाणिज्यिक हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया था। इससे सबक लेकर आरसीईपी संधि के लिए वार्ताएं पूरी गोपनीयता में हो रही हैं। वार्ता के हैदराबाद दौर में क्या आदान-प्रदान हुआ, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। अत्यधिक सुरक्षा गोपनीयता में चल रही वार्ता में चंद लोग फैसले लेते हैं, जो आखिरकार 99 फीसदी आबादी के भविष्य पर असर डालते हैं। यह बहुत ही अन्यायपूर्ण है।(DJ)
(येलेखक के अपने विचार हैं)

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