• आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर अगस्त में बढ़कर 4.9 फीसद हो गई। यह इसका पांच माह का ऊंचा स्तर है। कोयला, प्राकृतिक गैस और बिजली क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन से उत्पादन बढ़ा है।

• सरकारी आंकड़ों के अनुसार आठ बुनियादी उद्योगों (कोर सेक्टर) में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली आते हैं। पिछले साल अगस्त में कोर सेक्टर की वृद्धि दर 3.1 फीसद रही थी।

• पिछले महीने यानी जुलाई में यह 2.6 फीसद रही थी। मार्च के बाद से यह बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर का सबसे ऊंचा स्तर है। उस समय यह 5.2 फीसद रही थी।

• आंकड़ों के अनुसार अगस्त में कोयला उत्पादन 15.3 फीसद बढ़ा, जबकि प्राकृतिक गैस उत्पादन में 4.2 फीसद तथा बिजली उत्पादन में 10.3 फीसद की बढ़ोतरी हुई।

• इन आंकड़ों से यह आभास मिलता है कि जीएसटी व्यवस्था लागू होने से जो व्यवधान पैदा हुआ था उससे कारोबारी गतिविधियां उबरने लगी हैं और यह क्रम जारी है-

• देश में सितम्बर में लगातार दूसरे माह विनिर्माण गतिविधियों में तेजी का रुख रहा। नए आर्डर आने और उत्पादन बढ़ने से सितम्बर में विनिर्माण गतिविधियां बेहतर रहीं। हालांकि उनकी वृद्धि की रफ्तार ऐतिहासिक रुझानों को देखते हुए कुछ धीमी रही।

• एक सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष सामने आया है।निक्केई इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) सितम्बर माह में 51.2 अंक रहा। अगस्त के आंकड़े के मुकाबले इसमें मामूली बदलाव दिखा। इससे जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद व्यावसायिक गतिविधियों में सुधार जारी रहने का संकेत मिलता है। हालांकि यह आंकड़ा 54.1 के दीर्घकालिक रुझान से नीचे रहा।

• पीएमआई में 50 से कम अंक गिरावट को दर्शाता है जबकि इससे ऊपर का आंकड़ा व्यावसाय में वृद्धि का रुझान दिखाता है। पीएमआई रिपोर्ट की लेखक व आईएचएस मार्किट की अर्थशास्त्री आश्ना डोधिया ने कहा, विनिर्माताओं के बीच कारोबारी विास भी बढ़ा है। उन्हें लगता है कि सरकार की हाल की नीतियों से उन्हें दीर्घकाल में फायदा होगा।

• इस दौरान विनिर्माण क्षेत्र में बेहतर रोजगार का रुख रहा है जिससे कारोबारी विास की पुष्टि होती है। नए कारोबारी आर्डर मिलने से भारतीय विनिर्माताओं ने अपने कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई है और इसकी गति अक्टूबर 2012 के बाद सबसे ज्यादा तेज देखी गई है। मूल्य के मोर्चे पर सर्वेक्षण में कहा गया है कि हालांकि सितम्बर में लागत का दबाव बढ़ा है।

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