(डॉ. भरत झुनझुनवाला)

कारोबार में उद्यमी अपने लाभ की गणना करता है। मसलन, कच्चा माल खरीदने के लिए उसे कितना खर्च करना पड़ा और तैयार माल बेचने पर उसे क्या हासिल हुआ? उद्योगों के तमाम ऐसे प्रभाव भी होते हैं जिनका गहन आकलन नहीं किया जाता। जैसे रोजगार के कितने अवसर सृजित हुए? रोजगार मिलने से बीपीएल परिवारों की संख्या कितनी घटी? सरकार को कितनी बचत हुई। यह सब उद्योग का वह लाभ हुआ जो उद्यमी के गणित के बाहर था। इसे उद्योग का बाह्य लाभ कहेंगे। इसी प्रकार उद्योग से गंदा पानी छोड़ा जाता है जो नदी को प्रदूषित करता है तो वह बाह्य हानि होती है। कोई भी उद्योग देश के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह, यह जानने के लिए उद्यमी के व्यक्तिगत लाभ-हानि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को जो बाह्य लाभ एवं हानि होती है उसकी गणना करना भी जरूरी है। संभव है कि कोई उद्योग उद्यमी के लिए लाभप्रद हो, लेकिन समाज के लिए हानिकारक हो।

कुछ समय पहले रिजर्व बैंक ने बिटकॉइन नाम की इलेक्ट्रॉनिक करेंसी पर प्रतिबंध लगा दिया था। बिटकॉइन में व्यापार किसी व्यक्तिगत निवेशक के लिए लाभप्रद हो सकता था, लेकिन उसके बाह्य नकारात्मक प्रभावों और अर्थव्यवस्था को संकट में डालने की क्षमता आदि को देखते हुए रिजर्व बैंक ने तय किया कि बिटकॉइन पर शिकंजा कसा जाए। दूसरी ओर सरकार द्वारा उद्योगों को अक्सर सब्सिडी दी जाती है। इसके पीछे सोच यह है कि उद्योग द्वारा जो रोजगार सृजित होंगे उससे समाज को लाभ होगा। इसके एवज में ही सरकार उद्योगों को सब्सिडी देती है। किसी भी उद्योग की उपयोगिता इस पर निर्भर करती है कि उद्यमी के व्यक्तिगत और अर्थव्यवस्था के बाह्य प्रभावों को सम्मिलित करने के बाद कुल लाभ की मात्र हानि से ज्यादा है या नहीं? इस पृष्ठभूमि में हम तमिलनाडु में स्टरलाइट के तांबा संयंत्र का विश्लेषण कर सकते हैं।

हम मानकर चलें कि स्टरलाइट कंपनी के मालिकों के लिए वह उद्योग लाभप्रद है। तांबे को बनाने में जो खर्च उन्हें वहन करना पड़ता है उसकी तुलना में उसकी बिक्री से उन्हें ज्यादा लाभ होता है। व्यक्तिगत स्तर पर वह उद्योग उनके लिए लाभप्रद है। अब इसके बाह्य लाभ और हानि को देखा जाए। स्टरलाइट का सकारात्मक बाह्य प्रभाव तांबे का उत्पादन है। देश का लगभग आधा तांबा स्टरलाइट द्वारा उत्पादित किया जाता है। यदि स्टरलाइट तांबे का उत्पादन न करे तो तांबे का आयात करना होगा जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा। इससे हमारी आर्थिक संप्रभुता भी प्रभावित होगी। दूसरी ओर स्टरलाइट के बाह्य नकारात्मक प्रभाव भी हैं। स्टरलाइट द्वारा वायु प्रदूषण किया जाता है। जिससे आसपास रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। संयंत्र से गंदा पानी भी छोड़ा जा रहा है जिसने भूमि में रिसकर भूमिगत जल को जहरीला बना दिया है। उस जहरीले पानी से सिंचाई करके जो सब्जियां उगाई जा रही हैं वे भी जहरीली होने लगीं। इससे जनस्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था।

स्टरलाइट द्वारा प्रदूषित पानी को समुद्र में डाला जा रहा था। इससे मछलियां मर रही थीं और मछुआरों की जीविका संकट में पड़ रही थी। स्टरलाइट का बाह्य सकारात्मक प्रभाव देश की आर्थिक संप्रभुता और बाह्य नकारात्मक प्रभाव वायु एवं जल प्रदूषण में दिखाई पड़ता है। यह संयंत्र देश के लिए लाभप्रद है या नहीं, यह जानने के लिए जरूरी है कि बाह्य प्रभावों का आकलन किया जाता और यह देखा जाता कि स्टरलाइट को जो मुनाफा हो रहा है और समाज पर उसका जो प्रभाव पड़ रहा है, दोनों को जोड़ने के बाद गणित कैसे बैठता है? दुर्भाग्य से सरकार ऐसा समग्र आकलन करने से हिचकिचा रही है। इसके पीछे नेताओं और उद्यमियों की आपसी साठगांठ दिखती है।

दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका में ज्ञात हुआ कि स्टरलाइट ने 2004-05 से लेकर 2014 तक कांग्रेस एवं भाजपा, दोनों को करोड़ों रुपये का चंदा दिया। चंदे की ऐसी भारी-भरकम रकम से नेताओं और सरकार की इच्छाशक्ति समाप्त हो जाती है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मद्रास हाईकोर्ट के उद्यम को बंद करने के निर्णय को पलट दिया था। हालांकि उसने स्वीकार किया था कि यह संयंत्र जहरीली हवा छोड़ने के साथ ही पानी को भी प्रदूषित कर हालात खतरनाक बना रहा है। फिर भी उसने कहा कि इससे राज्य और केंद्र सरकार को राजस्व मिल रहा था, उससे रोजगार के अवसर बन रहे थे और उद्यम के नजदीक तुथूकुडी बंदरगाह में आवाजाही बढ़ रही थी। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने उद्यम के बाह्य सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का व्यक्तिगत आकलन करके यह तय कर दिया कि संयंत्र के बाह्य सकारात्मक प्रभाव ज्यादा थे और नकारात्मक बाह्य प्रभाव कम थे।

यदि सुप्रीम कोर्ट के जज चाहते तो यह भी कह सकते थे कि प्रदूषण का प्रभाव ज्यादा है और तुथूकुडी बंदरगाह को लाभ कम है। इस तरह के निर्णय से ऐसे उद्यम जो देश के लिए कुछ नुकसानदेह भी होते हैं, चलते रहते हैं।

मैंने विष्णुगाड पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के नफा-नुकसान में असंतुलन के संबंध में एनजीटी में एक याचिका लगाई थी। एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रलय से कहा कि किसी भी परियोजना के फायदे और नुकसान का आकलन करने के लिए वह एक अध्ययन कराए। पर्यावरण मंत्रलय ने यह कार्य भारतीय वन प्रबंधन संस्थान को सौंप दिया। संस्थान ने रपट में कहा कि खनन की किसी भी योजना के कुल फायदे-नुकसान की गणना करने में निम्न बिंदुओं को जोड़ा जाना चाहिए। एक, खान की उपयोगिता समाप्त होने के बाद उस भूमि को अपनी पुरानी स्थिति में लाने पर होने वाला खर्च। दूसरा, खनन से निकली धूल एवं जहरीली गैसों को छोड़ने से होने वाला नुकसान। तीसरा, उद्यम के रेडियोधर्मी प्रभाव से होने वाले नुकसान। चौथा, उद्यम से भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन अथवा प्रदूषण से होने वाला नुकसान। पांचवा, उद्यमों से छोड़ा जाने वाला गर्म पानी जिससे मछलियां और जलीय जीव मरते हैं।

ऐसे नकारात्मक प्रभावों की गणना करने की विधियां आज उपलब्ध हैं, लेकिन सरकारें ऐसी गणना करना नहीं चाहतीं। इसलिए सरकार ने इस रपट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। नेता, उद्यमी और कभी-कभी कोर्ट अपनी व्यक्तिपरक समझ को आगे बढ़ाते हैं। आज जरूरत इस बात की है कि सभी आर्थिक गतिविधियों जिनमें खनन, औद्योगिक संयंत्र और जल विद्युत परियोजनाएं इत्यादि शामिल हैं, के बाह्य प्रभावों का आकलन करके ही किसी परियोजना को स्वीकृति दी जाए। यदि ऐसा किया गया होता तो स्टरलाइट संयंत्र के बाह्य नकारात्मक प्रभाव सामने आ जाते। न इससे विवाद होता और न ही ¨हसा में लोगों की जान जाती।(साभार दैनिक जागरण)
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर हैं)

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