नीति आयोग ने परिवहन और रसोई के ईंधन के रूप में मेथनॉल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की जो पहल की है वह सकारात्मक है। इससे ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों को एक साथ साधा जा सकता है। मेथनॉल सस्ता, प्रदूषण रहित और बेहतरीन ईंधन है जो पूरी तरह या आंशिक रूप से पेट्रोल, डीजल या घरेलू गैस को प्रतिस्थापित कर सकता है। इससे ऊर्जा के मामले में आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी। यह एथनॉल से अलग है। एथनॉल पौधों से मिलता है। गन्ना और खाद्य तेल इसके स्रोत हैं। भारत जैसे सीमित भू संसाधन वाले देश में यह एक बाधा है। मेथनॉल को कई नवीकरणीय, गैर नवीकरणीय माध्यमों और प्रचुर मात्रा में मौजूद औद्योगिक कच्चे माल से हासिल किया जा सकता है। इनमें कृषि जैव ईंधन, शहरी कचरा, कोयला, प्राकृतिक गैस और हवा में मौजूदा कार्बन डाइ ऑक्साइड शामिल हैं। नीति आयोग के प्रस्ताव के मुताबिक अगर स्थानीय रूप से उत्पादित और अपेक्षाकृत सस्ते मेथनॉल से कच्चे तेल का आयात 20 फीसदी भी कम हुआ तो वाहनों से होने वाले प्रदूषण में 40 फीसदी की कमी की जा सकती है। देश में मेथनॉल उत्पादन की काफी संभावना है क्योंकि हमारे यहां 125 अरब टन कोयला भंडार है। जबकि करीब 50 करोड़ टन जैव ईंधन सालाना उत्पन्न होता है।

प्राकृतिक गैस भी हमारे यहां पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। कई देशों ने मेथनॉल को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के मामले में काफी प्रगति कर ली है। भारत को उनकी बराबरी करने में काफी मेहनत करनी होगी। उदाहरण के लिए चीन दुनिया में मेथनॉल का इस्तेमाल करने वाला सबसे बड़ा देश है। वह वाहन ईंधन के 10 फीसदी को कोयला उत्पादित मेथनॉल से प्रतिस्थापित कर चुका है। अमेरिका, कई यूरोपीय देश और ऑस्ट्रेलिया भी मेथनॉल इस्तेमाल करने वाले प्रमुख देशों में शामिल हैं। अच्छी बात यह है कि सरकार इस संबंध में नीति आयोग के प्रस्ताव के क्रियान्वयन को लेकर उत्सुक नजर आ रही है। परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बयान से भी यह बात साफ होती है जिन्होंने संसद में कहा था कि सरकार 2022 तक कच्चे तेल के बिल में 10 फीसदी की कमी करना चाहती है। इसके लिए वह मेथनॉल को घरेलू ईंधन के रूप में विकसित करना चाहती है। रोचक बात यह है कि भारतीय रेल भी इस बात का आकलन कर रही है कि क्या वह अपने 6,000 डीजल इंजनों को एक करोड़ रुपये प्रति इंजन व्यय करके मेथनॉल से चलने वाले इंजन में बदल सकती है।

अगर ऐसा हुआ तो रेलवे का ईंधन बिल घटकर आधा रह जाएगा। जानकारी के मुताबिक मेथनॉल इंजन का एक नमूना तैयार भी हो चुका है। परंतु इस महत्त्वाकांक्षी मेथनॉल परियोजना के नुकसान भी हो सकते हैं, भले ही तकनीकी रूप से उनसे निजात पाई जा सके। मेथनॉल से चलने वाले वाहन हालांकि प्रदूषणरहित होते हैं लेकिन कोयले से मेथनॉल बनाने के दौरान बड़े पैमाने पर कार्बन डाइ ऑक्साइड निकलती है। इस गैस को या तो कहीं भंडारित करना होगा या फिर इसका इस्तेमाल मेथनॉल संयंत्रों में बिजली बनाने में करना होगा। इसे मेथनॉल के रूप में पुनर्चक्रित भी किया जा सकता है। कुछ देश ऐसा कर भी रहे हैं। बहरहाल, इसके लिए जरूरी तकनीक में अभी काफी काम करना होगा। इसके अलावा आंतरिक दहन वाले इंजन थोड़े बहुत बदलाव के साथ केवल 15 फीसदी मेथनॉल प्रयोग में ला सकते हैं। उच्चस्तरीय मिश्रण के लिए इंजन का डिजाइन बदलना होगा। परंतु चूंकि मेथनॉल के इस्तेमाल के कुल लाभ इस प्रक्रिया में होने वाले व्यय पर भारी पड़ेंगे तो सरकार को मेथनॉल को बढ़ावा देने के क्रम में आगे बढऩा चाहिए। इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा में एक नया आयाम जुड़ेगा।

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