ओपेक जैसा बने सौर संगठन

हाल में दिल्ली में इंटरनेशनल सोलर अलायंस यानी आइएसए का पहला सम्मेलन आयोजित हुआ।आइएसए की स्थापना वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों द्वारा की गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन आने वाले समय में तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की बराबरी कर सकता है। ओपेक उन तेल उत्पादक देशों का संगठन है जो दुनिया के 40 प्रतिशत तेल का उत्पादन करते हैं। इसी संगठन के माध्यम से वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को प्रभावित करते हैं।

इस तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम ओपेक द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं। सम्मेलन के दौरान मोदी ने कहा कि भविष्य में आइएसए भी सौर ऊर्जा के दाम का नियंत्रण कर सकता है। सौर ऊर्जा के महत्व को पहचानने और उस पर जोर देने के लिए मोदी बधाई के पात्र हैं, लेकिन विश्व स्तर पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कुछ बिंदुओं पर विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है।इसमें पहला तो यही है कि तेल और सौर ऊर्जा के चरित्र में मौलिक अंतर है।कच्चे तेल को एक स्थान से निकाल कर दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सकता है, जैसे टैंकरों द्वारा ईरान से तेल भारत को पहुंचाया जा र है। इसके उलट बिजली की ढुलाई के लिए टांसमिशन लाइनों का जाल बिछाना होता है।इसके लिए अपने देश में नेशनल ग्रिड है।

इसके माध्यम से देश के किसी भी हिस्से में उत्पादित बिजली को किसी दूसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। इसी प्रकार एक अंतरराष्ट्रीय ट्रांसमिशन ग्रिड बनाना होगा। उन देशों में जंहा सूर्य की रोशनी अधिक उपलब्ध है वंहा पर उत्पादित बिजली को यूरोप और उत्तरी अमेरिका के उन स्थानों पर पहुंचाया जा सकता है जंहा पर सूर्य की रोशनी कम पड़ती है। जिस प्रकार परमाणु अस्त्रों के संबंध में परमाणु अप्रसार संधि की गई है उसी प्रकार सौर ऊर्जा की साझेदारी के लिए अंतरराष्ट्रीय ट्रांसमिशन लाइन की संधि करना जरूरी है जिससे सौर ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जा सके। इस ग्रिड का रूप चीन द्वारा स्थापित बेल्ट रोड इनिशिएटिव के रूप में किया जा सकता है।

इसमें भारत अग्रणी भूमिका निभाकर पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा के वितरण को सरल बना सकता है। तेल और सौर ऊर्जा में दूसरा मौलिक अंतर भंडारण का है। तेल को एक स्थान पर जमीन से निकालकर बड़ी टंकियों में भंडारण किया जा सकता है और जरूरत के अनुसार उससे निकालकर उपयोग किया जा सकता है। सौर ऊर्जा का चरित्र बिल्कुल भिन्न है। इसका उत्पादन दिन के उस समय होता है जिस वक्त सूर्य की रोशनी चमकती है, लेकिन ऊर्जा की अधिक खपत सुबह, शाम और रात को अधिक होती है। यानी जब ऊर्जा की ज्यादा जरूरत नहीं होती तब सौर ऊर्जा अधिक उत्पादित होती है और जब उसकी अधिक आवश्यकता पड़ती है तो उसका उत्पादन सुस्त पड़ जाता है।

उत्तरी देशों में सर्दियों में घरों को गर्म रखने के लिए ऊर्जा की खपत ज्यादा होती है जबकि सूर्य की रोशनी गर्मी के समय ज्यादा प्रखर होती है। सौर ऊर्जा को प्रभावी बनाने के लिए जरूरी है कि सौर ऊर्जा का भंडारण किया जा सके।वर्तमान में सौर ऊर्जा जिस समय उत्पादित होती है उसी समय उसका उपयोग अनिवार्य है। आज सौर ऊर्जा के भंडारण के कई उपाय उपलब्ध हैं। एक उपाय यह है कि सौर ऊर्जा से तेल को ऊंचे तापमान तक गर्म कर लिया जाए। इसके बाद जब बिजली बनाने की जरूरत हो तो इस गरम तेल को बायलरों में डालकर उससे भाप बनाई जाए और उससे टरबाइन चलाकर बिजली बनाई जाए।

दूसरा उपाय के तहत बैटरियों में बिजली का भंडारण किया जा सकता है।तीसरा उपाय के तौर पर पंप स्टोरेज योजनाओं से भंडारण हो सकता है। इन योजनाओं में दो तालाब ऊंचे और निचले स्तर पर बनाए जाते हैं। दिन के समय जब सौर ऊर्जा उपलब्ध होती है तब नीचे के तालाब से पानी को पंप करके ऊपर के तालाब में भर लिया जाता है। इसके बाद सुबह शाम जब बिजली की जरूरत होती है तो ऊपर के तालाब से पानी को नीचे के तालाब में टरबाइन के माध्यम से ले जाकर बिजली बना ली जाती है। लांकि ये तकनीक आज उपलब्ध तो हैं, लेकिन फिलल इन पर खर्च काफी ज्यादा आता है। ऐसे में सौर ऊर्जा को कारगर बनाने के लिए इसके भंडारण के नए आयाम को ढूंढना बहुत जरूरी है।

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