*⭕🌿☘क्यों आंदोलन कर रहे हैं किसान*

अपने कार्यकाल के चार वर्ष पूरे होने के बाद वर्तमान सरकार ने* एक बड़ा मीडिया अभियान शुरू किया, जिसे ’48 मंथ्स ऑफ ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ नाम दिया* गया।*

सरकार द्वारा कई इन्फोग्राफिक्स और ट्वीट्स के माध्यम से किसानों को खुशहाल दिखाया गया और यह दर्शाया गया कि इन 48 महीनों में किसानों के जीवन में बड़े बदलाव आ गए हैं। लेकिन सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। हाल के दिनों में किसानों द्वारा देश भर में बड़े पैमाने पर आंदोलन किये जाने की घटनाएँ सामने आई हैं।

*प्रमुख बिंदु*

किसानों द्वारा किये गए हालिया प्रदर्शनों का उद्देश्य उनकी बेशुमार समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित  करना था, जिसमें कृषि उत्पादों की कम कीमतों पर विशेष जोर दिया गया था।
पिछले 48 महीनों में सरकार के कृषि क्षेत्र में किये गए प्रदर्शन के बारे में कुछ आँकड़ों के माध्यम से प्रकाश डाला जा सकता है और किसानों के आंदोलनरत होने के कारणों का पता लगाया जा सकता है।
सीएसओ के आँकड़ों के अनुसार इस अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था(जीडीपी के संदर्भ में) औसतन 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, लेकिन कृषि क्षेत्र में यह (कृषि जीडीपी) प्रतिवर्ष मात्र 2.5 प्रतिशत की दर से बड़ी  है।
कृषि में निवेश (कृषि में सकल पूंजी निर्माण, कृषि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) 2013-14 के 17.7 प्रतिशत से गिरकर 2016-17 में 15.5 प्रतिशत पर आ गया।
कृषिगत निर्यात 2013-14 के $42 बिलियन से घटकर 2015-16 में $32 बिलियन हो गया, जो 2017-18 में सुधरकर $38 बिलियन हो गया।
कृषिगत आयात 2013-14 के $16 बिलियन से बढ़कर 2017-18 में $24 बिलियन हो गया। इस कारण कृषिगत व्यापार अधिशेष 2013-14 के $26 बिलियन से घटकर 2017-18 में $14 बिलियन हो गया।
साथ ही, अधिकांश प्रमुख फसलों की लाभप्रदता 2013-14 की तुलना में 2017-18 में लगभग एक तिहाई तक कम हो चुकी है।
2002-03 और 2012-13 के बीच किसानों की वास्तविक आय की वार्षिक वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत थी, जो पिछले 48 महीनों में घटकर लगभग 2.5 प्रतिशत हो चुकी है।
कुल मिलाकर, आँकड़ों से पता चलता है कि 2013-14 के बाद कृषि के मोर्चे पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
कृषि क्षेत्र में सामान्य से निम्न प्रदर्शन किसानों के आक्रोश का प्रमुख कारण है।
किसानों की दो प्रमुख मांगें हैं- पहली, सरकार द्वारा किये गए ‘लागत पर 50 प्रतिशत लाभप्रदता’ के वादे को पूरा किया जाए और दूसरी, पूर्ण ऋण माफी सुनिश्चित की जाए।
लाभकारी कीमतों संबंधी वादा 2006 की एम एस स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट पर आधारित था, जिसने न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत से 50 प्रतिशत अधिक रखने की सिफारिश की थी।
कपास, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, सोयाबीन, गन्ना उत्पादक किसानों को 2017-18 में प्राप्त हुआ मार्जिन 2013-14 के मर्जिनों से भी कम है। ऐसे में यदि 2018-19 में खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी हो भी जाती है तो भी सरकार के खरीद तंत्र की सीमित पहुँच को देखते हुए इस बढ़ोतरी का लाभ सीमित किसानों तक ही पहुँचने की उम्मीद है।
बेहतर कीमतों के लिये कुशल और टिकाऊ समाधान हेतु कृषि विपणन ढाँचे को व्यवस्थित करना बेहद आवश्यक है। साथ ही इससे जुड़े कानूनी प्रावधानों में भी उचित परिवर्तन करने होंगे।
केंद्र सरकार के पास कृषि विपणन क्षेत्र में सुधार करने का एक बेहतरीन अवसर है, क्योंकि वर्तमान में देश के अधिकांश राज्यों में एनडीए की सरकारें है।
लेकिन, आगामी आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए, इस बात की संभावना अधिक है कि सरकार ऋण माफी पर ज्यादा जोर दे। इस कदम से किसानों को अस्थाई राहत भले ही मिल जाए, लेकिन इससे  कृषि क्षेत्र के पुनरुत्थान की संभावना बेहद कम है।
कृषिगत जीडीपी में 4 प्रतिशत की दर से सतत् वृद्धि प्राप्त करना अभी भी बड़ी चुनौती है और कृषि क्षेत्र की वर्तमान दशा को देखते हुए 2022 तक किसानों की वास्तविक आय को दोगुना करने का लक्ष्य बहुत  दूर नजर आता है।
सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि कृषि क्षेत्र बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रहा है। साथ ही उसे वर्तमान में चल रहे कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं का समयोचित और प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा।
Source -The Indian Express

विश्व महासागर दिवस

चर्चा में क्यों?
8 जून को पूरी दुनिया में विश्व महासागर दिवस (World Ocean Day) के रूप में मनाया गया। यह दिवस महासागरों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिये मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

विश्व महासागर दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित ‘पृथ्वी ग्रह’ नामक फोरम में लाया गया था।
इसी दिन विश्व महासागर दिवस को हमेशा मनाए जाने की घोषणा भी की गई थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने इससे संबंधित प्रस्ताव को 2008 में पारित किया था औऱ इस दिन को आधिकारिक मान्यता प्रदान की थी।
पहली बार विश्व महासागर दिवस 8 जून, 2018 को मनाया गया था।
इसका उद्देश्य केवल महासागरों के प्रति जागरुकता फैलाना ही नहीं बल्कि दुनिया को महासागरों के महत्त्व और भविष्य में इनके सामने खड़ी चुनौतियों से भी अवगत कराना है।
इस दिन कई महासागरीय पहलुओं जैसे- सामुद्रिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग, पारिस्थितिक संतुलन, खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता, तथा जलवायु परिवर्तन आदि पर भी प्रकाश डाला जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *