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*आभार _डॉ. जयंतीलाल भंडारी*
पिछले दिनों दो ऐसी रिपोर्ट्स आईं, जिन पर ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं गया, लेकिन यदि इन रिपोर्ट्स में कही बातों पर वास्तव में गंभीरतापूर्वक काम किया जाए तो हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रोजगार के परिदृश्य में भी व्यापक सुधार नजर आ सकता है। बीते 21 नवंबर को उद्योग मंडल एसोचैम और शिकागो की विश्व प्रसिद्ध एकाउंटिंग फर्म ग्रांट थॉर्टन द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) क्षेत्र से किसानों की आय में भारी सुधार के साथ-साथ रोजगार वृद्धि की उज्ज्वल संभावनाएं हैं। रिपोर्ट यह भी कहती है कि वर्ष 2024 तक भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 33 अरब डॉलर का नया निवेश आकर्षित करने और 90 लाख नए रोजगार अवसर सृजित करने की क्षमता है। इसी तरह पिछले दिनों नीति आयोग ने भी ‘भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव का रोजगार तथा वृद्धि पर प्रभाव नामक परिचर्चा पत्र में कहा कि किसानों को फसल के अच्छे मूल्य के लिए सीधे कारखानों से जोड़ने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि के लिए खाद्य प्रसंस्करण सबसे उपयुक्त क्षेत्र है। रिपोर्ट के अनुसार बीते चार दशक के दौरान देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सात गुना वृद्धि हुई, लेकिन रोजगार दोगुने भी नहीं बढ़े हैं। ऐसे में खाद्य प्रसंस्करण में सुधार से कृषि व संबंधित क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में रोजगार सृजित हो सकते हैं।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण के तहत पांच क्षेत्र हैं। डेयरी क्षेत्र, फल व सब्जी प्रसंस्करण, अनाज का प्रसंस्करण, मांस-मछली एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण तथा उपभोक्ता वस्तुएं जैसे पैकेटबंद खाद्य और पेय पदार्थ। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। भैंस के मांस, पालतू पशुओं और मोटे अनाज के मामले में भी भारत सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत का फलों और सब्जियों के उत्पादन में दुनिया में दूसरा क्रम है। भारत कुल खाद्यान्न् उत्पादन में भी विश्व में दूसरे स्थान पर है। लेकिन भारत में खाद्य उत्पादन के प्रसंस्करण का स्तर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। देश में कुल खाद्य उत्पादन का मात्र 10 प्रतिशत हिस्सा प्रसंस्करित किया जाता है, जबकि प्रतिवर्ष 40 फीसदी फसल नष्ट हो जाती है। विश्व में खाद्य प्रसंस्करित वस्तुओं के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र 2.2 प्रतिशत है। भारत से खाद्य प्रसंस्करित वस्तुओं के निर्यात में मात्रात्मक दृष्टि से भी काफी कमी आई है। 2012 में यह निर्यात 36.53 अरब डॉलर मूल्य का था, जो 2016 में घटकर 29.19 अरब डॉलर रह गया, जबकि ऐसे उत्पादों का आयात लगातार बढ़ा है।
वस्तुत: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों का एक महत्वपूर्ण घटक है। खाद्य प्रसंस्करण की वजह से उपज का अधिकतम इस्तेमाल सुनिश्चित हो पाता है तथा प्रसंस्करित वस्तुएं उपभोक्ताओं तक सुरक्षित व साफ-सुथरी स्थिति में पहुंचती हैं। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कई अन्य पूंजी आधारित उद्योगों की तुलना में ज्यादा रोजगार प्रदान करता है।
इसमें दोमत नहीं कि सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में विनिर्माण, तकनीकी शोध एवं विकास के लिए कई प्रयास किए हैं। खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित नौ मेगा फूड पार्क संचालित हो रहे हैं, जबकि 41 फूड पार्क को मंजूरी मिली है। इसी तरह देश में 100 से अधिक शीत भंडारण श्र्ाृंखलाएं कार्यरत हैं, जबकि 236 के लिए मंजूरी दी गई है। सरकार ने निर्दिष्ट फूड पार्कों में अलग-अलग खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) में 30 करोड़ डॉलर मूल्य के एक विशेष खाद्य प्रसंस्करण कोष की स्थापना की है। रिजर्व बैंक ने भी खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण व शीत भंडारण इकाइयों को कृषि गतिविधियों में शामिल करते हुए उनसे संबंधित ऋण को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शामिल किया है। स्कीम फॉर एग्रो मरीन प्रोसेसिंग एंड डेवलपमेंट ऑफ एग्रो प्रोसेसिंग क्लस्टर्स के विकास के लिए 6,000 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई है। इन प्रयासों के साथ-साथ खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देने के लिए बीते 21 नवंबर को सरकार ने लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को बुनियादी ढांचे का दर्जा दिया है।
देश-दुनिया के कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को विकसित करने के लिहाज से काफी संभावनाएं हैं। लेकिन अब तक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से न तो किसानों की खुशहाली के अध्याय लिखे जा सके हैं और न ही पर्याप्त रोजगार अवसर निर्मित हो पाए हैं। वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण के अनुसार देश में पंजीकृत खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में 17.41 लाख व्यक्ति कार्यरत हैं, जबकि अपंजीकृत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 47.90 लाख लोगों को ही रोजगार मिला हुआ है।
देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष जो समस्याएं व चुनौतियां है, उनका जल्द से जल्द निदान जरूरी है। तभी इस क्षेत्र में निहित संभावनाओं का पर्याप्त दोहन किया जा सकता है। अपर्याप्त परिवहन और भंडारण सुविधाओं के कारण खेत से खाद्य वस्तुएं कारखानों तक और कारखानों से प्रसंस्करित वस्तुएं उपभोक्ता तक पहुंचने में काफी नुकसान भी हो जाता है। खेतों का रकबा बहुत अधिक बंटा हुआ होने तथा नई तकनीक व प्रक्रियाओं की अपर्याप्तता तथा कुशल श्रमिकों की कमी भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रभावित कर रही है। विभिन्न् देशों द्वारा लागू किए गए व्यापार संबंधी कड़े तकनीकी अवरोधकों के कारण भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों की निर्यात क्षमता पर भी असर पड़ा है।नि:संदेह खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को देश के विकास का आधार बनाने के लिए कई बातों पर ध्यान देना जरूरी है। सरकार द्वारा चिन्हित फूड पार्कों को विश्वस्तरीय बुनियादी व शोध सुविधाओं, परीक्षण प्रयोगशालाओं, विकास केंद्रों तथा परिवहन लिंकेज के साथ मजबूत बनाना होगा। बेहतर खाद्य सुरक्षा व गुणवत्ता प्रमाणन व्यवस्था, तकनीकी उन्न्यन, लॉजिस्टिक सुधार, पैकेजिंग गुणवत्ता और ऋण की आसान उपलब्धता की मदद से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में काफी सुधार लाया जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करित उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए वैश्विक मूल्य-श्र्ाृंखलाएं स्थापित करने के मद्देनजर ढांचागत व संस्थागत सहायता उपलब्ध कराई जाए। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के आकार और बढ़ोतरी की संभावनाओं को देखते हुए भारत की उद्योग और व्यापार नीति को भी उसी हिसाब से तय करना जरूरी है। बेहतर होगा कि केंद्र राज्य सरकारों से यथोचित सलाह-मशविरा कर राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति तैयार करे। हम आशा करें कि केंद्र व राज्य सरकारें खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास में आ रही बाधाओं को दूर करने की दिशा में तेजी से काम करेंगी। ऐसा करने पर निश्चित रूप से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र देश में कृषि पैदावार व किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ रोजगार वृद्धि में भी सहायक होगा।
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