*By_राहुल लाल*

भारत-आसियान संबंध भारतीय विदेश नीति के ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का आधार स्तंभ है। आसियान यानी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का समूह, जिसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में है। अभी इसके 10 सदस्य इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस, ब्रुनेई, वियतनाम, म्यांयामार, कंबोडिया और लाओस हैं। इस बार फिलीपींस की राजधानी मनीला में 31वें आसियान शिखर सम्मेलन, 15वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन और 12वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। भारत दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र की उन्नति का पक्षधर है। आर्थिक गलियारों से लेकर निवेश जैसे मामलों में वह सदस्य देशों के साथ मजबूती से बढ़ रहा है। आसियान के मनीला बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका एक साथ आए हैं।

चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत के बीच इन देशों ने माना है कि स्वतंत्र, खुला, खुशहाल और समावेशी हिंद प्रशांत क्षेत्र से दीर्घकालिक वैश्विक हित जुड़े हैं। भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान को मिलकर चतुष्कोणीय संगठन बनाने का विचार 10 वर्ष पूर्व आया था, लेकिन अब जाकर यह अस्तित्व में आ पाया है। इस पहल को दक्षिण चीन सागर में चीन की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिहाज से अहम माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 नवंबर 2017, मंगलवार को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल के साथ अलग-अलग मुलाकात कर गठबंधन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बात की। प्रधानमंत्री मोदी की वियतनाम और न्यूजीलैंड के अपने समकक्ष पदाधिकारियों और ब्रुनेई के सुल्तान से भी अलग-अलग मुलाकात हुई, जिसे हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को देखते हुए अहम मानी जा रही है। साथ ही अब इसकी प्रबल संभावना है कि भारत-अमेरिका-जापान के बीच होने वाले नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को जल्द शामिल कर लिया जाएगा। तीन देशों का पिछला सैन्य अभ्यास कुछ महीने पहले बंगाल की खाड़ी में हुआ था। जापान इस गठबंधन को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित है। वह इसे सिर्फ सैन्य या सुरक्षा तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि वह इसका आर्थिक व निवेश क्षेत्र में भी विस्तार करने का इच्छुक है।

प्रधानमंत्री मोदी ने आसियान के मंच से पाकिस्तान और चीन को कड़ा संदेश दिया। दोनों ही देशों का नाम लिए बिना उन्होंने जहां आतंकवाद और चरमपंथ को क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती करार दिया, वहीं पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करने वाले चीन को सख्त संदेश देते हुए कहा कि भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था का पक्षधर है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य को दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते दखल के प्रति आसियान देशों की नाराजगी को स्वर देने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है। चीन प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस समुद्री क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है, जबकि वियतनाम और फिलीपींस जैसे पड़ोसी देशों को इस पर एतराज है। भारत पहले से ही इस इलाके में निर्बाध समुद्री परिवहन की वकालत करता रहा है। भारत के लिए दक्षिण चीन सागर का अति विशिष्ट महत्व है। हमारा भी 55 फीसद से अधिक व्यापार दक्षिण चीन सागर के माध्यम से होता है। यही कारण है कि भारत समुद्री कानून से संबंधित 1982 के संयुक्त राष्ट्र समझौते समेत अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत के मुताबिक दक्षिण चीन सागर में परिवहन की आजादी और संसाधनों तक पहुंच का समर्थन करता है।

भारत-आसियान संबंधों की ऊंचाइयों को इससे भी समझा जा सकता है कि भारत ने पूर्व की परंपरा को तोड़ते हुए 26 जनवरी 2018 को गणतंत्र दिवस समारोह में एक मुख्य अतिथि देश के स्थान पर सभी आसियान देशों को आमंत्रित किया है। साथ ही 25 जनवरी 2018 को भारत-आसियान शिखर सम्मेलन भी प्रस्तावित है। बहरहाल बताते चलें कि भारत-आसियान संबंधों की शुरुआत तब हुई जब भारत ने अपनी ‘लुक ईस्ट नीति’ के अंतर्गत पूर्वी देशों से संबंधों को प्रगाढ़ करने की कवायद शुरू की। हालांकि इसकी आधिकारिक घोषणा 1991 में तब की गई, जब भारत आसियान का प्रभागीय वार्ताकार बना। 2014 में म्यांमार में हुए 12 आसियान-भारत शिखर सम्मेलन भारत ने अपनी ‘लुक इस्ट नीति’ को ‘एक्ट ईस्ट नीति’ में तब्दील कर दिया। आसियान भारत का चौथा बड़ा व्यापारिक साङोदार है। 2015-16 में दोनों पक्षों के बीच 65 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जो कि भारत के कुल वैश्विक बाजार का 10.12 फीसद है। 2016-17 में यह बढ़कर 70 अरब डॉलर हो गया है।

भारत ने आसियान से 2015-16 में 25 अरब डॉलर का आयात किया था, जो 2016-17 में बढ़कर 30 अरब डॉलर हो गया। भारत और आसियान देशों की अनुमानित संयुक्त जीडीपी 3.8 लाख करोड़ डॉलर है। 2050 तक यूरोपीय संघ, अमेरिका और चीन के बाद आसियान के चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अनुमान है। 2018 तक शीर्ष 15 विनिर्माण केंद्रों में शीर्ष पांच में आसियान के शामिल होने का भी दावा है।

कालादान परियोजना कोलकाता बंदरगाह को म्यांयामार के सितवे बंदरगाह जोड़ने वाली परियोजना है। इससे भारत-म्यांमार में लॉजिस्टिक खर्च सीधे कम से कम 40 फीसद घट जाएगा। इससे भारत आसियान के मुख्य द्वार म्यांयामार तक पहुंच जाएगा। इसी तरह एशियन ट्राइलेटरल हाइवे परियोजना मूलत: भारत, म्यांयामार और थाईलैंड के बीच 1360 किलोमीटर लंबी है। फिलहाल भारत-आसियान संबंधों ने कई नए अवसरों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। इससे भारत के लिए भी एक बड़ा बाजार उपलब्ध हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस क्षेत्र में आर्थिक अवसरों की बढ़ोतरी से पिछड़ापन दूर होगा। इस क्षेत्र में सामाजिक और सांस्कृतिक संपर्को में वृद्धि होगी। यह भी संभव होगा कि भारत-आसियान पारस्परिक सहयोग बढ़ाकर विश्व को अधिक लोकतांत्रिक और बहुध्रुवीय बना सकें।(साभार दैनिक जागरण )

(लेखक कूटनीतिक मामलों के1 जानकार हैं)
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