यद्यपि डोकलाम विवाद पर 28 अगस्त को चीन के साथ समझौता हो गया है और दोनों देश अपनी सेनाएं विवादित इलाके से हटाने को राजी हो गए हैं लेकिन अभी चीन से बढ़ते हुए आयात को नियंत्रित करने के लिए और चीन को निर्यात बढ़ाने की डगर पर भारत को बिना रुके आगे बढ़ना जरूरी है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों ‘‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चीन पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए त्योहारों में आम जनता से स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल की अपील की है। पीएम का कहना था कि देश में बनी मिट्टी की मूर्तियों और दीयों के इस्तेमाल से गरीबों को रोजगार मिलेगा। यद्यपि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया। मगर उनका मंतव्य स्पष्ट था। राखी, दिवाली और गणोशोत्सव के दौरान देश में हजारों करोड़ के सामान से लेकर मूर्तियां तक चीन से आती हैं और चीन की ऐसी कई वस्तुओं ने भारत के बाजार पर कब्जा कर लिया है। इससे धीरे-धीरे इनका स्वदेशी उद्योग चौपट हो रहा है और देश के छोटे और कुटीर उद्योग पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

निश्चित रूप से भारत-चीन व्यापार के बढ़ते हुए असंतुलन के मद्देनजर चीन से आयात में कमी के प्रयास जरूरी हैं। जहां भारत से चीन को किए जा रहे निर्यात लगातार घट रहे हैं, वहीं चीन से आयात लगातार छलांगे ले रहा है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में भारत-चीन व्यापार 71.47 अरब डॉलर का रहा। चीन को भारत से 10.19 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात किए गए, जबकि चीन से आयात का मूल्य 61.28 अरब डॉलर रहा। व्यापार घाटा 47.68 अरब डॉलर का रहा। यानी चीन ने भारत को पांच गुना अधिक निर्यात किए। भारत और चीन के बीच विदेश व्यापार के पिछले तीन वर्षो के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि वर्ष 2012-13 में भारत-चीन व्यापार 65.85 अरब डॉलर का रहा। चीन को भारत से 14.82 अरब डॉलर के निर्यात किए गए, जबकि चीन से 51.03 अरब डॉलर के आयात किए गए। व्यापार घाटा 36.21 अरब डॉलर का रहा। वर्ष 2013-14 में भारत-चीन व्यापार 72.36 अरब डॉलर का रहा। चीन को भारत से 11.93 अरब डॉलर के निर्यात किए गए, जबकि चीन से आयात का मूल्य 60.43 अरब डॉलर रहा। व्यापार घाटा 48.48 अरब डॉलर रहा। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में भारत-चीन व्यापार 70.71 अरब डॉलर रहा।

भारत से चीन को 9.01 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात किए गए, जबकि चीन से 61.7 अरब डॉलर के आयात किए गए। व्यापार घाटा 52.69 अरब डॉलर का रहा। स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच विदेश व्यापार लगातार बढ़ रहा है। लेकिन तीन वर्षो में चीन से आयात लगातार बढ़े हैं और चीन को भारत से निर्यात लगातार घटे हैं। साथ-साथ व्यापार घाटा भी वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ता गया है। केवल पिछले वर्ष 2016-17 में भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की नीति से व्यापार घाटे में नगण्य कमी दिखाई दी है। चीन ने भारत के साथ वर्ष 2019 तक व्यापार संतुलन के लिए समझौता किया था परंतु वह हवा-हवाई हो गया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन से कुछ आयात नियंत्रण का सफल प्रयोग पिछले वर्ष 2016-17 में दिखाई दे चुका है। वस्तुत: अक्टूबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चीन के द्वारा पाकिस्तान का साथ दिए जाने के कारण चीनी माल का बहिष्कार भारत के उपभोक्ताओं द्वारा उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ है। पिछले वर्ष दशहरा-दीवाली के त्योहार के दिनों में भारतीय बाजारों में चीनी सामान की बिक्री में 30 से 40 फीसद की कमी आई थी। चूंकि देश के प्रति चीन के द्वारा अपशब्दों का प्रयोग किया गया था, उसे न केवल सरकार के द्वारा वरन प्रत्येक भारतीय के द्वारा एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और बड़े पैमाने पर चीनी सामान के बहिष्कार के लिए जनजागृति दिखाई दी। इसका स्पष्ट प्रभाव भारत में चीन से होने वाले आयात पर दिखा। ऐसे में यदि भारत चीनी माल का बहिष्कार करता है, तो चीनी अर्थव्यवस्था को नया झटका जरूर लगेगा।

⭕यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चीन भारत में निर्यात बढ़ाने के हरसंभव प्रयास कर रहा है। चीन के लिए भारतीय बाजार अहम है। चीन ने वर्ष 2015 के बाद से अब तक अपनी करेंसी युआन के मूल्य में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारी कमी की है। इससे चीन के निर्यातकों को फायदा हो रहा है। चीन की मुद्रा सस्ती होने से वहां से भारत में आयात किया गया हर सामान सस्ता हुआ है। भारत में सस्ते चीनी सामान की आवक तेजी से बढ़ी है। चाहे चीनी उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल हों, मगर यह निर्विवाद है कि वे सस्ते होते हैं। भारत के कई उद्योग भी कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर हैं। देश के कोने-कोने में भारतीय बाजारों में चीन में उत्पादित वस्तुओं का ढेर लग गया है। चाइनीज विद्युत बल्ब झालर, चाइनीज रेडिमेड वस्त्र, चाइनीज खिलौने, चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और तरह-तरह के कई चीनी उत्पाद भारतीय उद्योगों पर बुरा असर डालते हुए दिखाई दे रहे हैं।

⚫इसमें कोई शक नहीं है कि भारतमें चीन से होने वाले निवेश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में चीन के लिए भारतीय बाजार की अहमियत स्पष्ट दिखाई दे रही है। चूंकि भारत व चीन दोनों विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य हैं। ऐसे में भारत डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत चीनी माल पर टैरिफ या गैरशुल्कीय प्रतिबंध लगाकर चीनी माल को रोक नहीं सकता है। लेकिन डब्ल्यूटीओ के नियमों का हवाला देते हुए चीन ने बोवाइन मीट, फल, सब्जियों, बासमती चावल और कच्चे पदार्थो के भारत से आयात पर बाधाएं उत्पन्न की हैं। ऐेसे में भारत द्वारा भी चीन के लागत से कम मूल्य पर माल भेजकर भारत के बाजार पर कब्जा करने का आधार देकर चीन के कई तरह के माल पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाकर उन्हें हतोत्साहित करना होगा। इसके साथ-साथ देश के करोड़ों उपभोक्ताओं का दायित्व है कि वे स्वेच्छा से स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और उपभोग को बढ़ाएं ताकि चीन से बढ़ते हुए आयात नियंत्रित हो सकें और भारत के विदेश व्यापार का असंतुलन कम हो

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