(पल्लव बागला, विज्ञान पत्रकार)
(साभार हिंदुस्तान )

अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ, तो 2022 में भारत उन देशों में शुमार हो जाएगा, जो अंतरिक्ष में इंसान को भेजने में सक्षम हैं। अभी इस सूची में मात्र तीन देश हैं। रूस ने यह उपलब्धि सबसे पहले हासिल की थी। उसने 1961 में ही यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजकर इतिहास रच दिया था। फिर अमेरिका ने यह कारनामा दोहराया और तीसरी उपलब्धि चीन के खाते में आई है। अंतरिक्ष का मानव मिशन कितना दुरूह होता है, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि चीन 2003 में इसमें सफल हुआ था, और पिछले डेढ़ दशक में अन्य कोई अन्य स्पेस एजेंसी ऐसा नहीं कर सकी है, जबकि दुनिया में तकनीक लगातार अत्याधुनिक होती जा रही है। जाहिर है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) यदि इस अभियान में कामयाब होता है, तो दुनिया भर में उसका डंका बजेगा। इस मिशन का नाम गगनयान रखा गया है।

इसरो उसी लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है, जिसकी एक झलक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के अपने संबोधन में दिखाई थी। उनका कहना था कि 2022 में जब देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे या हो सके, तो उससे पहले ही भारत मां का कोई लाल, चाहे बेटा हो या बेटी, अंतरिक्ष में पहुंचे। इसरो की अब तक की उपलब्धियों को देखते हुए अंतरिक्ष में मानव को भेजना भले ही एक तय प्रक्रिया मानी जाए, लेकिन यह एक बड़ी घोषणा थी। मुमकिन है कि इसमें उनकी सियासी सोच भी छिपी हो। अगले साल के मध्य में वह चुनाव में उतरने वाले हैं। इसलिए इस घोषणा को अपने पक्ष में चुनावी माहौल बनाने की कोशिश से जोड़कर भी देखा जाएगा ही। मगर सच यह भी है कि प्रधानमंत्री ‘स्पेस टेक्नोलॉजी’ का इस्तेमाल करना बखूबी जानते हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत होने वाले कामों में ही उन्होंने जिस तरह ‘जियो टैगिंग’ को अनिवार्य बनाया है, वह इस योजना में पारदर्शिता लाने में काफी कारगर साबित हो रहा है।

कहा यह भी जा रहा है कि अंतरिक्ष में इंसान को भेजने का यह काम इसरो बहुत पहले कर सकता था। बेशक, इसरो के पास पहले से ही काफी अच्छी टेक्नोलॉजी है। उसने बेहतरीन रॉकेट भी बनाए हैं। प्रक्षेपण में भी उसके हाथ सधे हुए हैं। अच्छे सैटेलाइट और रॉकेट होने के कारण इंसान को अंतरिक्ष में भेजने में देरी नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि हमारा जीएसएलवी मार्क-2 फेल हो रहा था और अंतरराष्ट्रीय उठा-पटक के कारण, खासतौर से यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं थी। अब हमारी आर्थिक सेहत सुधरी है और सफलता की दर में भी हम दूसरी तमाम अंतरिक्ष एजेंसियों पर बीस साबित हुए हैं। लिहाजा यह सही वक्त है कि हम मानव मिशन की ओर तेजी से कदम बढ़ाएं।

मानव मिशन की राह में अब हमें ज्यादा मुश्किलों का शायद ही सामना करना पड़े। ‘गगनयान’ जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। यह हमारा सबसे भारी-भरकम और सफल रॉकेट है। इसीलिए मैं इसे ‘रॉकेट का बाहुबली’ भी कहता हूं। इतना ही नहीं, 2014 में ही इसरो क्रू मॉड्यूल टेस्ट कर चुका है। क्रू मॉड्यूल वही ढांचा होता है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री बैठते हैं और सुरक्षित घरती पर लौटते हैं। ‘स्पेस सूट’ तो हम तैयार कर ही चुके हैं। साफ है कि अब एक प्रोजेक्ट के तौर पर इस मिशन को आगे बढ़ाने की देर है। इसरो ने भी कहा ही है कि वह पहले दो मानव रहित यान भेजेगा और फिर मानव मिशन।

‘गगनयान मिशन’ की सफलता की इसलिए भी उम्मीद बंधती है कि इसरो ने अब तक जो भी वादे किए हैं, वे पूरे हुए हैं। चंद्रयान इसने समय पर छोड़ा है और मंगलयान भी। गगनयान के लिए उसे नौ-दस हजार करोड़ रुपये की जरूरत है, जो भारत जैसी उभरती आर्थिक ताकत के लिए कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है। फिर, इस मिशन से 15 हजार के करीब नए रोजगार का भी सृजन होगा और आने वाले समय में अंतरिक्ष में जाने की लोगों की आकांक्षाएं भी पूरी होंगी।

हां, एक-दो मुश्किलें हैं, जिन्हें जल्दी से जल्दी दूर करना जरूरी है। जैसे, इसरो की चिंता यह है कि अभी उसके पास ‘बायोलॉजिकल साइंटिस्ट’ और ‘ह्यूमन मेडिकल सिस्टम’ के अच्छे विशेषज्ञ नहीं हैं। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जो जीवन रक्षक तंत्र बनाया जाएगा, उसमें इन विशेषज्ञों की खासी जरूरत होती है। हो सकता है कि इसके लिए भारतीय वायुसेना और इंस्टीट्यूट ऑफ एयरो स्पेस मेडिसिन से मदद मांगी जाए। अच्छी बात यह है कि इसरो अपने गगनयान मिशन को निजी मिशन बताने की बजाय ‘राष्ट्रीय मिशन’ बता रहा है। यानी यह इसरो का निजी प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि राष्ट्र का प्रोजेक्ट है। जाहिर है, इस नजरिये के साथ आगे बढ़ने से इसरो का काम आसान हो जाएगा।

चुनौती जीएसएलवी मार्क-3 का लगातार सफल प्रक्षेपण होने की भी है। अभी तक इसका एक ही सफल प्रक्षेपण हुआ है। आने वाले दिनों में अगर इसका एक भी प्रक्षेपण असफल हुआ, तो अंतरिक्ष में मानव को भेजने की इस योजना पर ग्रहण लग सकता है। हालांकि इसरो के साथ-साथ तमाम लोगों की यही उम्मीदें हैं कि ऐसा खतरा सामने नहीं आएगा और हम सफल रहेंगे। इसरो की असफलता की दर काफी कम है। यह हमारे भरोसे को मजबूत बनाता है।

स्पेस के क्षेत्र में भारत काफी बेहतर स्थिति में है। हम अपना रॉकेट खुद बना रहे हैं। सैटेलाइट भी तैयार कर रहे हैं। एप्लीकेशन में तो हम अव्वल हैं ही। फिर कम खर्च में सैटेलाइट बनाने और उसे लॉन्च करने में भी हमें महारत हासिल हो चुकी है। ऐसे में, इस मिशन के साथ हमारी निगाहें भविष्य की उस स्थिति पर भी बनी हुई है, जब चंद्रमा और मंगल पर लोग बसेंगे। इसरो उसी ओर अपनी उड़ान भर रहा है। यदि जरूरत महसूस हुई, तो हम भी वहां कॉलोनी बसा सकेंगे। गगनयान हमें इस सपने के करीब लाने वाला मिशन साबित होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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