1.न्यायमूर्ति सीकरी : विवाद में उछला नाम, तो सहमति ली वापस
• उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके सीकरी ने उस सरकारी प्रस्ताव के लिए दी गई अपनी सहमति रविवार को वापस ले ली, जिसके तहत उन्हें लंदन स्थित राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (सीसैट) में अध्यक्ष/सदस्य के तौर पर नामित किया जाना था।
• उन्हें यह नाम उस स्थिति में वापस लेना पड़ा है, जब उनके नामांकन को लेकर विवाद पैदा हो गया। चूंकि न्यायमूर्ति सीकरी ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को हटाने वाली समिति में उन्हें हटाने के लिए मत दिया था, इसलिए उन पर इस संदर्भ में सवाल खड़े होने लगे थे।
• बताया जाता है कि न्यायमूर्ति सीकरी के नामांकन का निर्णय पिछले महीने ही किया गया था, जब आलोक वर्मा को हटाने वाली समिति की बैठक भी नहीं हुई थी। प्रधान न्यायाधीश के बाद देश के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के एक करीबी सूत्र ने बताया कि न्यायाधीश ने रविवार शाम को सहमति वापस ले ली।
• सूत्रों ने कहा, ‘‘‘‘सरकार ने इस जिम्मेदारी के लिए पिछले महीने उनसे संपर्क किया था। उन्होंने अपनी सहमति दी थी। इस पद पर रहते हुए प्रति वर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और यह बिना मेहनताना वाला पद था।’’ विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सीकरी के नामांकन का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय से आगामी छह मार्च को होने वाली उनकी सेवानिवृत्ति को देखते हुए किया गया था। द
• रअसल, मीडिया में इस आशय की रिपोर्ट छपने के बाद कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना दिया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने रविवार को कहा कि सरकार को लंदन के राष्ट्रमंडल सचिवालय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (सीसैट) के अध्यक्ष/सदस्य के खाली पड़े पद पर न्यायमूर्ति सीकरी को नामित करने पर ‘‘काफी बातों का जवाब देने’ की जरूरत है।
• पटेल ने एक मीडिया रिपोर्ट को टैग करते हुए कहा था, ‘‘सरकार को कई बातों का जवाब देने की जरूरत है।’
• न्यायमूर्ति सीकरी उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के बाद सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मल्लिकाजरुन खड़गे वाले तीन सदस्यों के पैनल के सदस्य थे।
• इसी पैनल ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने का निर्णय लिया था।
• सीकरी के वोट ने वर्मा को हटाने में अहम भूमिका अदा की थी, क्योंकि खड़गे ने इसका कड़ाई से विरोध किया था। न्यायमूर्ति सीकरी ने सरकार का समर्थन किया था।

2. 24 हाई कोर्ट में महज 73 महिला जज
• देश के सभी हाई कोर्ट में कुल 670 न्यायाधीश कार्यरत हैं जिनमें से केवल 73 महिलाएं हैं। सरकार ने यह जानकारी कानूनी मामलों से संबंधित संसदीय समिति को दी है। देश के कुल 24 हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के कुल 1,079 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 409 रिक्त हैं।
• उल्लेखनीय है कि एक जनवरी, 2019 से तेलंगाना में भी हाई कोर्ट स्थापित हो गया है, यह देश का 25 वां हाई कोर्ट है। 23 मार्च, 2018 तक 24 हाई कोर्ट में 73 महिला न्यायाधीश कार्यरत थीं।
• यह कुल कार्यरत न्यायाधीशों का 10.89 फीसद है।
• संसदीय समिति के न्यायपालिका में महिलाओं और कमजोर तबके के लोगों की कम संख्या पर चिंता जताए जाने पर कानून मंत्रलय ने बताया कि सभी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को इस सिलसिले में अनुरोध पत्र भेजे गए हैं।

INTERNATIONAL/BILATERAL

3. लोकलुभावन राजनीति की देन ब्रेक्जिट और शटडाउन : द न्यूयॉर्क टाइम्स
• दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र ब्रिटेन और अमेरिका में इन दिनों अजब सी स्थिति बनी हुई है। ब्रिटेन की संसद यूरोपीय संघ से बाहर होने के मुद्दे पर उलझी हुई है। वहीं अमेरिका में बजट पर सहमति नहीं बनने के कारण शटडाउन चल रहा है। अमेरिका के इतिहास में यह सबसे बड़ा शटडाउन है। 22 दिसंबर को शुरू हुआ शटडाउन अपने 23 दिन पार कर चुका है। इससे पहले 1995-96 में 21 दिन लंबा शटडाउन चला था।
• इन दोनों देशों में बनी स्थितियों के पीछे राजनीतिक विश्लेषक एक जैसा ही कारण देख रहे हैं। उनका कहना है कि यह स्थिति लोकलुभावन राजनीति की देन है। चुनावी वादे को पूरा करने की ललक में दोनों ही स्थितियां बनीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान ही मेक्सिको से लगी सीमा पर दीवार खड़ी करने की बात कही थी। अब इस दीवार के निर्माण के लिए पांच अरब डॉलर (करीब 35 हजार करोड़ रुपये) के फंड को संसद से मंजूरी नहीं मिलने के कारण करीब चौथाई सरकारी विभागों का कामकाज बंद पड़ा है।
• विपक्षी डेमोक्रेट्स के न मानने पर इस स्थिति से निपटने के लिए ट्रंप आपातकाल का रास्ता अपनाने की तैयारी में हैं। ट्रंप की इमीग्रेशन पॉलिसी के सूत्रधार रहे स्टीव बेनन का कहना है कि सदन में बजट पर सहमति नहीं बनने पर ट्रंप आपातकाल का रास्ता अपनाएंगे।
• वहीं दूसरी ओर, ब्रिटेन भी ब्रसेल्स से किसी समझौते पर पहुंचे बिना ही मार्च में यूरोपीय संघ से बाहर होने का फैसला कर सकता है। मुश्किल का सामना दोनों पक्षों को करना पड़ेगा। दोनों ही मामले राजनीति की वजह से उत्पन्न हुए हैं।
• ब्रिटेन और अमेरिका दोनों ही देशों में बनी स्थिति के केंद्र में कहीं ना कहीं प्रवासी संकट ही है। ब्रिटेन में 1968 में ही प्रवासी संकट ने राजनीति में जगह बनानी शुरू कर दी थी। उस समय सांसद इनोच पॉवेल ने प्रवासियों को बाहर करने की बात कही थी। उनके इस बयान ने 1970 उनकी कंजर्वेटिव पार्टी को जबर्दस्त जीत दिलाई थी। इसके बाद पिछले दो दशक में इस्लामी आतंकियों द्वारा हुए हमलों के कारण एक बार फिर ब्रिटेन में प्रवासियों के खिलाफ आवाज उठी है।
• दूसरी ओर, अमेरिका में स्थानीय लोगों के बीच यह सोच मजबूत हुई है कि बाहर से आने वाले लोग उनके रोजगार छीन रहे हैं। प्रवासियों ने कुशल व अकुशल दोनों तरह के रोजगार पर कब्जा कर लिया है। 2008 के वित्तीय संकट ने इस धारणा को और मजबूती दी थी।
• हाल में हुई कुछ आपराधिक घटनाओं ने भी स्थानीय लोगों के मन में प्रवासियों के प्रति नफरत भरी है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से जुड़े प्रोफसर माइकल लिंड ने कहा, ‘कल्चर वार अब बॉर्डर वार में तब्दील हो गया है।’ विदेश नीति के जानकार रॉबर्ट कागन भी ब्रेक्जिट और मेक्सिको सीमा पर दीवार दोनों को एक ही सोच से उपजी स्थिति मान रहे हैं।
• उनका यह कहना भी है कि बाकी दुनिया से कट कर रहने की यह सोच ब्रिटेन या अमेरिका के लिए नई नहीं है। भौगोलिक रूप से दोनों बाकी दुनिया से समंदर के जरिये कटे हुए हैं। एक बार फिर दोनों देश अपनी उसी द्विपीय देश वाली पहचान की ओर लौटने को उत्सुक हैं, जहां बाकी दुनिया से कोई संबंध न रहे।
• क्या था रिपोर्ट में:-न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि एफबीआइ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के बीच संबंध को लेकर जांच कर रही है। मई, 2017 में एफबीआइ डायरेक्टर जेम्स बी. कोमे को पद से हटाने के ट्रंप के कदम से जांच एजेंसी को ऐसा लगने लगा था कि राष्ट्रपति का कदम देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाला है।
• संदेह गहराने के कारण उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी गई। जांच एजेंसी यह जानने का प्रयास भी कर रही है कि ट्रंप जानबूझकर रूस के इशारे पर काम कर रहे हैं या अनजाने में रूस का हथियार बन रहे हैं। हालांकि अब तक इनमें से किसी भी संदेह को पुष्ट करने वाला कोई प्रमाण सामने नहीं आया है।

4. भारत अफगानिस्तान के आर्थिक पुनर्निर्माण को प्रतिबद्ध
• भारत ने रविवार को कहा कि वह अफगानिस्तान के आर्थिक पुनर्निर्माण और युद्धग्रस्त क्षेत्र में ‘‘अफगान नीत, अफगान स्वामित्व वाली एवं अफगान नियंत्रित’ शांति एवं सामंजस्य की समावेशी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
• यहां ऐतिहासिक भारत-मध्य एशिया संवाद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भारत के पक्ष को रखा, जो आतंकवाद से बर्बाद देशों तक संपर्क बढ़ाने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान देता है। स्वराज ने संवाद के पहले सत्र में कहा, ‘‘मैं खासकर यह बताना चाहती हूं कि हमारा क्षेत्र आतंकवाद के गंभीर खतरों का सामना कर रहा है।
• भारत, मध्य एशिया और अफगानिस्तान ऐसे समाज हैं, जो सहिष्णु एवं मिश्रित हैं। आतंकवादी जिस नफरत की विचारधारा को प्रसारित करना चाहते हैं, उसकी हमारे समाज में कोई जगह नहीं है।’उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह भी पूछने की जरूरत है कि ये आतंकवादी कौन हैं, उनकी आर्थिक मदद कौन कर रहा है, उनका भरण-पोषण कैसे होता है, कौन उनका संरक्षण करता है और प्रायोजित करता है।’
• भारत अफगानिस्तान को पुनर्निर्माण, अवसंरचना विकास, क्षमता निर्माण, मानव संसाधन विकास एवं संपर्क पर केंद्रित विकास कार्यों के लिए करीब तीन अरब डॉलर की आर्थिक मदद दे रहा है।उन्होंने बताया कि सितंबर 2017 में शुरू की गई ‘‘नई विकास साझेदारी’ के तहत काबुल शहर में शहतूत बांध पेयजल परियोजना, नांगरहार प्रांत में कम लागत का आवासन, 116 उच्च स्तरीय सामुदायिक विकास परियोजनाएं एवं अवसंरचना के कई अन्य परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है।
• स्वराज ने बताया कि भारत एवं मध्य एशियाई देशों के बीच इस विकासशील साझेदारी को आगे ले जाने के लिए भारत ने ‘‘भारत-मध्य एशिया विकास समूह’ के गठन का प्रस्ताव दिया है।
• साथ ही उन्होंने भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान के संयुक्त प्रयास का उल्लेख किया, जिससे ईरान में चाबहार बंदरगाह बन पा रहा है, जो अफगानिस्तान से संपर्क का सुकर मार्ग है।

5. चीन सीमा पर भारत बनाएगा 44 सामरिक सड़कें
• चीन और पाकिस्तान की सीमा पर सेना की पहुंच को और अधिक आसान बनाने के लिए भारत ने एक बड़ा निर्णय लिया है। सरकार चीन से लगती सीमा पर 44 सामरिक सड़कों के निर्माण के साथ-साथ पाकिस्तान से सटे पंजाब एवं राजस्थान में करीब 2100 किलोमीटर मुख्य एवं संपर्क मार्गो का निर्माण करेगी।
• चालू माह के प्रारंभ में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट (2018-19) के अनुसार, ‘एजेंसी को भारत-चीन सीमा पर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण 44 सड़कों के निर्माण के लिए कहा गया है। इससे टकराव की स्थिति में भारतीय सेना को सीमाओं पर भेजना आसान हो जाए।’
• भारत और चीन के बीच करीब 4,000 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के इलाकों से गुजरती है। केंद्र सरकार की सबसे बड़ी निर्माण एजेंसी सीपीडब्ल्यूडी इन परियोजनाओं की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रही है।
• प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) से विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर मंजूरी लेने की प्रक्रिया भी चल रही है।
• चीन सीमा पर सड़कों के निर्माण पर 21 हजार करोड़ आएगी लागत : सीपीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत-चीन सीमा पर सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इन 44 सड़कों के निर्माण पर करीब 21,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
• ये सड़कें भारत-चीन सीमा से लगे पांच राज्यों- जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश में बनाई जाएंगी।
• सीमा पर चीन भी दे रहा है अपनी परियोजनाओं को प्राथमिकता : सीपीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब चीन भारत से लगी सीमाओं पर अपनी परियोजनाओं को प्राथमिकता दे रहा है।
• गत वर्ष डोकलाम में चीन के सड़क निर्माण की शुरुआत के बाद दोनों देशों के सैनिकों में गतिरोध की स्थिति बन गई थी। बातचीत में आपसी सहमति बनने के बाद चीन ने उस इलाके में सड़क निर्माण रोक दिया और भारतीय सेना वापस आ गई थी। 18 जून को शुरू हुआ गतिरोध 28 अगस्त को समाप्त हुआ था।
• पाक सीमा पर मार्गो के निर्माण में खर्च होंगे 5,400 करोड़ रुपये : सीपीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर राजस्थान एवं पंजाब में 5,400 करोड़ रुपये की लागत से 2100 किलोमीटर लंबे मुख्य एवं संपर्क मार्गो का निर्माण किया जाएगा।
• 945 किलोमीटर मुख्य तथा 533 किमी लंबे संपर्क मार्गो का निर्माण राजस्थान सीमा पर किया जाएगा। इस पर 3,700 करोड़ रुपये की लागत आएगी। पंजाब में करीब 1,750 करोड़ रुपये की लागत से 482 किमी मुख्य व 219 किमी लंबे संपर्क मार्गो का निर्माण किया जाएगा।
• यह परियोजना राजस्थान और पंजाब के दूर-दराज वाले इलाकों में सुरक्षा प्रदान करेगी।

ECONOMY

6. फिक्की ने की करों में कटौती की सिफारिश
• देश के प्रमुख उद्योग मंडल फिक्की ने सरकार से आगामी बजट में छोटी-बड़ी हर प्रकार की कंपनियों पर कारपोरेट कर की दर घटाकर 25 फीसद रखे जाने की सिफारिश की है। इस शीर्ष संगठन का मानना है कि इससे कारोबार का विस्तार होगा और कर संग्रह भी बढ़ेगा।
• फिक्की ने एक बयान में यह भी सुझाव दिया है कि व्यक्तिगत आयकर की 30 फीसद वाली सबसे ऊंची दर सालाना 20 लाख रूपये से ऊपर की आमदनी वालों पर ही लागू होनी चाहिए। उद्योग मंडल ने कहा है कि भारत में कारोबार करने वाली इकाइयों के लिए कर की लागत ऊंची है। इससे उत्पादन लागत ऊंची हो जाती है तथा कंपनियों की बचत और कम हो जाती है। परिणाम यह होता है कि उनके पास कारोबार में निवेश और विस्तार के लिए कम धन बचता है।
• फिक्की का मानना है कि कारपोरेट कर की 30 फीसद और लाभांश वितरण पर 20 फीसद कर की दर से कंपनियों पर कर की प्रभावी लागत बहुत ऊंची हो जाती है। फिक्की ने वित्त मंत्रालय को अपनी बजट पूर्व सिफारिश में कहा है कि विश्व के कई प्रमुख औद्योगिक देशों ने अपने यहां कर की दरों में काफी कमी की है। भारत में भी कंपनियों पर करों के बोझ में कमी करने पर विचार किया जाना चाहिए।
• फिक्की ने अपने ज्ञापन में न्यूनतम वैकल्पिक कर को भी घटाने की सिफारिश की है।उद्योग मंडल ने व्यक्तिगत आयकरदताओं को विनिर्दिष्ट निवेश योजनाओं में निवेश पर धारा 80सी के तहत मिलने वाली कटौती को बढ़ा कर तीन लाख रूपये करने की भी सिफारिश की है। इससे ‘‘निजी बचत को प्रोत्साहन मिलेगा।’ इसी तरह ज्ञापन में कर्मचारियों के भोजन खर्च पर दैनिक 200 रूपये तक के खर्च पर करयोग्य आय में कटौती का लाभ दिया जाए। अभी यह सीमा 50 रपए तक है।

7. राज्यों की आय में कमी पर गौर करेगा मंत्रिसमूह
• बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की अगुवाई में सात सदस्यीय मंत्रिसमूह माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किए जाने के बाद राज्यों की आमदनी में आ रही कमी के मुद्दे की समीक्षा करेगा। साथ ही उनकी आय बढ़ाने के लिए अपनी सिफारिशें भी सौंपेगा। जीएसटी परिषद की ओर से जारी अधिसूचना में यह कहा गया है।
• केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की अगुवाई वाली जीएसटी परिषद ने 22 दिसम्बर, 2018 को जीएसटी लागू किए जाने के बाद से राज्यों के राजस्व में कमी के कारणों के विश्लेषण के लिए मंत्रिसमूह बनाने का निर्णय किया था।
• एक जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद पंजाब, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, गोवा, बिहार, गुजरात और दिल्ली की आय में कमी दर्ज की गई है। अप्रैल-नवम्बर की अवधि में इन राज्यों की आय में 14-37 फीसद तक की कमी देखी गई है।
• केंद्र शासित प्रदेशों में पुडुचेरी को सबसे अधिक नुकसान उठा पड़ा है। उसकी आय में 43 फीसद की कमी आई है।समिति जीएसटी लागू किए जाने से पहले और बाद में प्रदेशों द्वारा अर्जित किए जाने वाले राजस्व के स्वरूप पर गौर करेगी।
• जीएसटी लागू होने के बाद 31 राज्य सरकारों में केवल आंध्र प्रदेश और पूर्वोत्तर के पांच राज्य मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, सिक्किम और नागालैंड की आय बढ़ी है।
• अप्रैल-नवम्बर 2018 की अवधि में केंद्र सरकार ने राज्यों के राजस्व के नुकसान के मुआवजे के तौर पर 48,202 करोड़ रूपये जारी किए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *