1.स्त्री ईश्वर की कृति है उससे नौकरी और पूजा में भेदभाव नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट
• सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक के मामले में सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि स्त्री ईश्वर की रचना है। आप ईश्वर को मानते हैं तो फिर किसी महिला के साथ नौकरी या पूजा-अर्चना में भेदभाव कैसे कर सकते हैं।
• महिला का मंदिर में पूजा करना संवैधानिक हक है और यह किसी कानून के आधीन नहीं है। पूजा का उम्र से कोई लेना-देना नहीं है।
• ज्ञात हो, केरल में अयप्पा भगवान के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। इस नियम को इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन व कुछ अन्य ने महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव कहते हुए चुनौती दी है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही है।
• वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने मामले पर सळ्नवाई के दौरान कहा, सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को मासिक धर्म के कारण शुद्ध न मानते हुए उनके मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी है,जो संवैधानिक प्रावधानों और बराबरी के हक का उल्लंघन है। यह एक प्रकार से सामाजिक बहिष्कार के समान है।
• इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, अनुच्छेद 25 (2)(बी) हर वर्ग के हंिदूू को सार्वजनिक पूजा स्थल में जाने की इजाजत देता है। हर वर्ग में हर जेंडर शामिल है, इसमें महिलाएं भी हैं। इसमें भेदभाव नहीं किया गया है।
• मुख्य न्यायाधीश ने कहा,अगर पुरुष किसी मंदिर में जाकर पूजा कर सकता है तो महिला भी पूजा कर सकती है। धार्मिक संस्थान को अनुच्छेद 26 में प्रबंधन का अधिकार मिला है लेकिन प्रबंधन में यह नहीं आता।
• अगर मंदिर सार्वजनिक है तो उसमें स्त्री-पुरुष दोनों जा सकते हैं। महिला को रोकना असंवैधानिक है। कोर्ट ने बायोलाजिकल बदलाव के चलते भेदभाव को भी गलत माना।
• मुख्य याची के वकील रवि प्रकाश गुप्ता ने महिलाओं के प्रवेश पर रोक का विरोध करते हुए कहा, इसे न मालूम समय से जारी परंपरा नहीं कहा जा सकता क्योंकि महिला होते हुए भी रानी को जाने की इजाजत दी गई थी।
• उन्होंने कहा, यह सीधे तौर पर लिंग आधारित भेदभाव है और यह खत्म होना चाहिए। न्याय मित्र राजू रामचंद्रन ने भी कहा, अनुच्छेद 25 में मिला पूजा का अधिकार अनुच्छेद 26 में धार्मिक संस्थान को मिले प्रबंधन के अधिकार से ऊपर है। दोनों प्रावधानों की व्याख्या एक दूसरे के साथ मिला कर होनी चाहिए। बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी।
• केरल ने महिलाओं के प्रवेश का किया समर्थन : केरल सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अपना पूर्व रुख बदलते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया।

2. तेदेपा का अविश्वास प्रस्ताव मंजूर, र्चचा शुक्रवार को, जीत का भरोसा दोनों को
• मोदी सरकार के खिलाफ तेदेपा की ओर से पेश अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में र्चचा के लिए बुधवार को स्वीकार कर लिया गया और इस पर र्चचा तथा मतदान शुक्रवार को कराया जाएगा।उस दिन सदन में न तो प्रश्नकाल होगा और न ही गैरसरकारी कामकाज। सुबह 11 बजे से र्चचा शुरू की जायेगी और उसी दिन प्रस्ताव पर मतदान भी कराया जाएगा।
• मोदी सरकार के चार साल से ज्यादा के कार्यकाल में उसके खिलाफ पहली बार अविास प्रस्ताव आया है। मानसून सत्र के पहले दिन प्रश्नकाल के बाद जरूरी कागजात सदन पटल पर रखवाने के बाद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन को सूचित किया कि उन्हें तेदेपा के के श्रीनिवास, थोटा नरसिम्हन, राष्ट्रवादी कांग्रेस पाटी के तारिक अनवर, माकपा के मोहम्मद सलीम, कांग्रेस के मल्लिकाजरुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल तथा रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एनके प्रेमचंद्रन की ओर से अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस मिले हैं।
• उन्होंने कहा कि श्रीनिवास का प्रस्ताव सबसे पहले मिला है। इसलिए वह उन्हें प्रस्ताव पेश करने की अनुमति दे रही हैं। इस पर श्रीनिवास ने एक पंक्ति का अपना प्रस्ताव पढ़ा, जिसमें कहा गया,‘‘यह सभा सरकार के खिलाफ अविश्वास व्यक्त करती है।’ इसके बाद अध्यक्ष ने जानना चाहा कि सदन में कितने सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करते हैं।
• विभिन्न दलों के 50 से अधिक सदस्यों के प्रस्ताव के समर्थन में खड़े होने पर उन्होंने कहा कि वह प्रस्ताव को र्चचा के लिए स्वीकार करती हैं, लेकिन र्चचा का दिन और समय बाद में तय किया जाएगा। सदन में कांग्रेस के नेता खड़गे ने इस पर नाराजगी जतायी कि अध्यक्ष ने उन्हें प्रस्ताव पेश करने का मौका नहीं दिया।
• उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के नाते उनकी ओर से दिये गये प्रस्ताव को पेश करने की अनुमति दी जानी चाहिये थी। इस पर श्रीमती महाजन ने कहा कि श्रीनिवास ने सबसे पहले प्रस्ताव का नोटिस दिया था इसलिए नियमों के अनुरूप उन्हें प्रस्ताव पेश करने का मौका दिया गया।
• भोजनावकाश के बाद श्रीमती महाजन ने सदन को सूचित किया कि प्रस्ताव पर र्चचा और मतदान 20 जुलाई को कराया जाएगा।

3. आठवीं कक्षा तक फेल न करने की नीति में बदलाव को मंजूरी
• लोकसभा ने आज नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2017 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी जिसमें आठवीं कक्षा तक फेल नहीं करने की नीति में संशोधन करने की बात कही गई है।
• हालांकि बच्चों को कक्षा में रोकने या नहीं रोकने का अधिकार राज्यों को दिया गया है। विधेयक पर र्चचा का जवाब देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, यह महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक विधेयक है और इससे स्कूलों, खासकर सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर सुधरेगा। उन्होंने कहा कि इस पहल से परीक्षा के साथ जवाबदेही आयेगी, शिक्षा और सीखने को बढावा मिलेगा, पढने और पढाने को प्रोत्साहन मिलेगा और अंतत: ‘‘सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा’ सुनिश्चित हो सकेगी।
• मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि नये संशोधन विधेयक में कक्षा में अनुत्तीर्ण होने की स्थिति में बच्चों को कक्षा में रोकने या नहीं रोकने का अधिकार राज्यों को दिया गया है। उन्होंने कहा कि 2009 के विधेयक में पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को फेल होने पर भी कक्षा में नहीं रोकने का प्रावधान था। इससे परीक्षा का महत्व ही कम हो गया था और शिक्षा के स्तर में गिरावट आ रही थी ।
• अब पांचवी और आठवीं कक्षा के स्तर पर परीक्षा लेने की बात कही गई है। हालांकि जिन राज्यों को ऐसा करना है, वे करेंगे और जिनको बदलाव नहीं करना है, वे नहीं करेंगे।
• जावड़ेकर ने कहा कि परीक्षा लेने के बारे में राज्य तय करेंगे कि उन्हें किस स्तर पर परीक्षा लेनी है । उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी छात्र को स्कूल से नहीं निकाला जा सकेगा। जावड़ेकर ने कहा कि 22 राज्यों ने इस प्रावधान को बदलने की सिफारिश की। कई सव्रेक्षणों में भी पता चला कि बच्चों को अपनी वर्तमान कक्षा से कम कक्षा के विषयों की ही जानकारी नहीं है।
• उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह विधेयक किसी छात्र को उसी कक्षा में रोकने के लिए नहीं है। नये संशोधन के तहत पांचवीं और आठवीं कक्षा की मार्च में होने वाली पहली परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को मई में दूसरी बार परीक्षा का अवसर मिलेगा। दूसरी बार भी फेल होने पर ही बच्चे को उसी कक्षा में रोका जा सकेगा।
• मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि तमिलनाडु और केरल समेत कुछ राज्य पुराने प्रावधान को ही चाहते थे। इसलिए हमने विधेयक में प्रावधान रखा है कि बच्चों को कक्षा में रोकने या नहीं रोकने का अधिकार राज्यों को होगा।

4. मानसून सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयक लाएगी सरकार
• संसद के बुधवार से शुरू हो रहे मानसून सत्र में सरकार 43 विधेयक र्चचा और पारित कराने के लिए लाने का प्रयास करेगी जिनमें से छह विधेयक अध्यादेशों के स्थान पर लाये जायेंगे। संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने मंगलवार को बताया कि 24 दिन के इस सत्र के दौरान 18 बैंठकें होंगी।
• सत्र में वर्ष 2018-19 के लिए रेलवे सहित अन्य अनुपूरक मांगों तथा वर्ष 2015-16 की अतिरिक अनुदान मांगों को मंजूरी का प्रस्ताव किया जायेगा। तीन विधेयक वापस भी लिये जायेंगे जिनमें लोकसभा में सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम विकास (संशोधन) विधेयक 2015 और राज्यसभा में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (अधिनियम) विधेयक 2012 और नालंदा विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2013 शामिल है।
• उन्होंने कहा कि सत्र में जिन अध्यादेशों के स्थान पर विधेयक लाये जायेंगे उनमें भगोड़ा आर्थिक अपराध अध्यादेश 2018, आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश 2018, उच्च न्यायालयों की कामर्शियल अदालतें, कामर्शियल डिविजन्स और कामर्शियल अपीलीय डिविजन्स (संशोधन) अध्यादेश, 2018, होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल (संशोधन) अध्यादेश, 2018, राष्ट्रीय खेल विविद्यालय अध्यादेश, 2018, इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 शामिल हैं।
• इसके अलावा दोनों सदनों में लंबित पड़े कुछ और महत्वपूर्ण विधेयकों पर भी र्चचा होगी और उन्हें पारित किया जाएगा। इनमें मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018, नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन केन्द्र विधेयक 2018, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण विधेयक, 2016, संविधान का 123वां संशोधन विधेयक 2017, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक 2017, मोटरवाहन संशोधन विधेयक 2017 और भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन विधेयक 2013 शामिल हैं।
• नये विधेयकों में मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2018, सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2018, बांध सुरक्षा विधेयक 2018 और डीएनए प्रौद्योगिकी उपयोग नियमन 2018 भी शामिल हैं।

5. कुछ और बैंकों को पूंजी देगी सरकार
• सार्वजनिक क्षेत्र के पांच बैंकों को पूंजी समर्थन देने के बाद वित्त मंत्रालय दो-तीन और बैंकों की पूंजी जरूरतों का आकलन कर रहा है। इन बैंकों को सितम्बर अंत तक जरूरी पूंजी समर्थन दिया जा सकता है।
• वित्त मंत्रालय पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, आंध्र बैंक साहित सार्वजनिक क्षेत्र के पांच बैंकों को 11,336 करोड़ रपए के पूंजी समर्थन को अंतिम रूप दे चुका है। इस पूंजी समर्थन से बैंकों को उनकी नियामकीय पूंजी जरूरतों को प्रभावित किए बिना ही ब्याज भुगतान की प्रतिबद्धता को निभाने में मदद मिलेगी।
• एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि दो या तीन और बैंकों को उनकी पूंजी जरूरतों को पूरा करने के लिये सहायता की जरूरत होगी। इन बैंकों को सितंबर तक पूंजी उपलब्ध करा दी जाएगी।
• लंबी अवधि के अतिरिक्त टीयर-1 बांड (एटी -1) पर ब्याज भुगतान का अतिरिक्त बोझ पड़ने से कई बैंक वित्तीय दबाव में आ गए। बैंकों पर पहले ही कर्ज में फंसी राशि बढ़ने और घोटालों की वजह से वित्तीय बोझ बढ़ा है।

6. परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य 2030-31 तक ही हासिल होगा
• अगले सात वर्षो के भीतर परमाणु ऊर्जा लक्ष्य को तीन गुणा से ज्यादा करने का सरकारी लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। केंद्र सरकार परोक्ष तौर पर मान रही है कि परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने की क्षमता 21-22 हजार मेगावाट करने का काम वर्ष 2030-31 तक ही पूरा हो सकेगा। मौजूदा समय में इससे 6700 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। इस लक्ष्य को 2024-25 तक हासिल करने की बात हो रही थी।
• पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बळ्धवार को लोकसभा में बताया कि परमाणु क्षमता में वर्ष 2031 तक 15,700 मेगावाट उत्पादन क्षमता 21 नई परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के जरिये जोड़ी जाएगी। सरकार की इस घोषणा से साफ है कि तीन गुणा उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य 2025 में नहीं, बल्कि 2030-31 में जाकर पूरा होगा।
• मई, 2017 में सरकार ने परमाणु ऊर्जा से संबंधित कुछ अहम फैसले किए थे। तब बताया गया था कि इससे बनने वाली बिजली की क्षमता वर्ष 2030 तक 35 हजार मेगावाट और वर्ष 2050 तक 60 हजार मेगावाट की जाएगी।
• पिछले वर्ष राजग सरकार ने यह एलान किया था कि स्वदेशी परमाणु रिएक्टरों के सहारे 7000 मेगावाट बिजली बनाने वाली परियोजनाएं लगाई जाएंगी। 70 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली इन परियोजनाओं के लिए अभी तक न तो जगह चिह्नित हो पाई है और न ही कौन सी कंपनियां इन्हें लगाएंगी, इसका फैसला हो पाया है। इनमें से राजस्थान, कर्नाटक व मध्य प्रदेश में प्रस्तावित परियोजनाओं पर इस वर्ष (2018) में ही काम शुरू होना था।
• सिंह ने इस बात को भी खारिज किया कि परमाणु ऊर्जा से जुड़े सिविलियन लायबिलिटी एक्ट 2010 में उनकी सरकार ने कई बड़े संशोधन कर उसे कंपनियों के हितों के मुताबिक बनाने का काम किया है। उन्होंने बताया कि कोई ऐसा संशोधन नहीं किया गया है जो किसी दुर्घटना की स्थिति में पीड़ितों के हितों की रक्षा करने में बाधा उत्पन्न करता हो।
• साथ ही सरकार इस बात के लिए कृतसंकल्प है कि जो भी परियोजनाएं लगाई जाएंगी, उसमें स्थानीय लोगों को ज्यादा रोजगार दिया जाएगा।

7. ‘‘ उड़ान’ के जरिये विमानन क्षेत्र की ऊंची उड़ान जारी
• कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच सस्ते टिकट और क्षेत्रीय संपर्क योजना ‘‘उड़ान’ के तहत लगातार छोटे शहरों के विमानन मानचित्र पर आने से देश के विमानन क्षेत्र की ऊंची उड़ान जून में भी जारी रही तथा हवाई यात्रियों की संख्या 18.36 प्रतिशत बढ़कर एक करोड़ 13 लाख 25 हजार पर पहुंच गई।
• पिछले साल जून में यह संख्या 95 लाख 68 हजार रही थी।पिछले साल अक्टूबर से यह लगातार नौवां महीना है जब घरेलू मागरें पर हवाई यात्रियों की संख्या एक करोड़ से ज्यादा रही है। इस साल मई में यह रिकार्ड एक करोड़ 18 लाख 56 हजार पर रही थी। इस साल जनवरी से जून तक हवाई यात्रियों की संख्या में 21.95 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई और यह छह करोड़ 84 लाख 83 हजार पर पहुंच गई।
• पिछले साल की पहली छमाही में यह पांच करोड़ 61 लाख 55 हजार रही थी।नागर विमानन महानिदेशालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश की सबसे बड़ी विमान सेवा कंपनी इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी जून में 41.3 प्रतिशत पर रही और 46 लाख 73 हजार यात्रियों ने अपनी यात्रा के लिए उसे चुना।
• इस मामले में 13.3 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी के साथ जेट एयरवेज दूसरे और 12.5 प्रतिशत के साथ सरकारी विमान सेवा कंपनी एयर इंडिया तीसरे स्थान पर रही। चौथे स्थान पर किफायती विमान सेवा कंपनी स्पाइसजेट (12.1 प्रतिशत), पांचवें स्थान पर एयर एशिया (5.3 प्रतिशत) और छठे स्थान पर विस्तारा (चार प्रतिशत) रही।
• भरी सीटों (पीएलएफ) के मामले में स्पाइसजेट का प्रदर्शन एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ रहा। उसने औसतन 93.3 प्रतिशत भरी सीटों के साथ उड़ान भरी। इस मामले में 88.5 प्रतिशत पीएलएफ के साथ गोएयर दूसरे, 88.3 प्रतिशत के साथ इंडिगो तीसरे, 84.8 प्रतिशत के साथ विस्तारा चौथे और 80.9 प्रतिशत के साथ एयर इंडिया पांचवें स्थान पर रही।

8. कर्नाटक एक्सप्रेस में कैप्टन सेवा की शुरुआत
• लंबी दूरी के यात्रियों को आरामदायक यात्र का अहसास कराने के उद्देश्य से दक्षिण-पश्चिम रेलवे ने बेंगलुरु से नई दिल्ली के बीच चलने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में कैप्टन सेवा की शुरुआत की है। कैप्टन पर यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं का ख्याल रखने सहित उन्हें होने वाली दिक्कतों को समयबद्ध तरीके से दूर करने की जिम्मेदारी होगी।
• सबसे वरिष्ठ टिकट निरीक्षक को कैप्टन का दर्जा दिया गया है। 1बेंगलुरु के डीआरएम आरएस सक्सेना ने बताया कि कैप्टन कोच और टायलेट की सफाई, कोच में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने, पंखे, लाइट, एसी सहित मोबाइल चार्जिग प्वाइंट सही कराने जैसी शिकायतों का निवारण कराएंगे। यात्रियों को कैप्टन को पहचानने में दिक्कत नहीं हो, इसलिए वह अपने बाएं हाथ में एक लाल रंग का बैच पहनेंगे।
• डीआरएम ने बताया कि कैप्टन को कोच में रहने वाले टीटीई के कामों के निरीक्षण का अधिकार होने के साथ ही वह यात्रियों से स्वत: संपर्क करेंगे। साथ ही जरूरत पड़ने पर यात्री उनसे संपर्क कर सकेंगे।
• यात्रा शुरू होने के साथ ही यात्रियों को कैप्टन का नंबर भी मैसेज किया जाएगा।
• डीआरएम ने बताया कि फिलहाल बेंगलुरु-नई दिल्ली के बीच यह सेवा प्रयोग के तौर पर शुरू की गई है, लेकिन भविष्य में हमारी योजना यहां से विभिन्न स्थानों के लिए चलने वाली 77 एक्सप्रेस ट्रेनों में इस सेवा को शुरू करने की है।
• उन्होंने बताया कि राजधानी, दूरंतो और शताब्दी जैसी ट्रेनों में चलने वाले निरीक्षक प्रारंभ से गंतव्य स्थान तक नहीं बदलते हैं। ऐसी सभी ट्रेनों में भी वरिष्ठ निरीक्षक को कैप्टन का दर्जा दिया जाएगा।

9. ‘मेघालयन काल’ के नाम से जाने जाएंगे पृथ्वी के पिछले 4200 साल
• भू-वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के पिछले 4200 सालों को नया नाम दिया है। अब इस अवधि को मेघालयन काल के नाम से जाना जाएगा। इसका आरंभ एक भयानक सूखे के साथ हुआ था। करीब दो सदी तक चले इस सूखे के दौरान दुनियाभर की कई सभ्यताएं नष्ट हो गईं थीं। इस नामकरण की वजह भारत के मेघालय राज्य की गुफाओं में मिले स्टलैग्माइट है।
• विभिन्न अवधि में बांटे गए हैं 4.6 अरब वर्ष : उल्लेखनीय है कि पृथ्वी के अस्तित्व में आने के बाद से 4.6 अरब वर्षो को विभिन्न अवधि में बांटा गया है। प्रत्येक अवधि में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं। जैसे, महाद्वीपों का बनना, जलवायु में परिवर्तन, किसी विशेष जानवर या पौधे की उत्पत्ति आदि। ये बड़ी और अहम घाटनाएं अपने काल की पहचान का काम करती हैं। जिस अवधि में हम रह रहे हैं उसे होलोसीन काल कहा गया है।
• 11,700 वर्ष की इस अवधि की शुरुआत आखिरी हिमयुग के खत्म होने के साथ हुई थी।1होलोसीन काल को भी विभाजित करने का प्रस्ताव : भूगर्भिक समयावधि का आधिकारिक ब्योरा रखने वाले इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्ट्रैटिग्राफी (आइसीएस) ने होलोसीन काल को भी शुरुआती, मध्य और निचले चरण में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया है।
• मेघालयन काल की अवधि 4200 वर्ष पूर्व से लेकर 1950 तक बताई गई है। जिस सूखे से इसकी शुरुआत हुई उसका असर करीब दो सदी तक रहा था।
• इन सभ्यताओं पर पड़ा था असर :इस काल की सबसे अहम घटना यह सूख ही था, जिसका असर दो सदी तक रहा और इस दौरान कई सभ्यताएं नष्ट हो गईं। नष्ट होने वाली सभ्यताओं में मिस्न, ग्रीक, सीरिया, फलस्तीन, मेसोपोटामिया, सिंधु घाटी, यांगत्जे नदी के किनारे बसी कई सभ्यताएं शामिल थीं।
• अलग पहचान के लिए यह जरूरी : किसी अवधि को अलग पहचान देने के लिए उस समय में कोई ऐसी घटना का होना जरूरी है, जिसके सुबूत पूरी पृथ्वी पर मिलते हों। उसी के आधार पर उस अवधिक को अलग पहचान दी जाती है। यह साबुत त किसी विशेष पत्थर या रसायन से भी संबंधित हो सकते हैं। इरीडियम नामक तत्व के चिह्न् मिलने को आधार बनाकर डायनोसोर के खत्म होने और स्तनधारियों की उत्पत्ति के काल को विभाजित किया गया था।
• डायनोसोर को खत्म करने वाले क्षुद्रग्रह की धरती से टक्कर से यह तत्व पूरी पृथ्वी पर बिखर गया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *