_*ECONOMY*_

*1.चालू खाता घाटा कम करने के और उपायों पर विचार*
• देश के चालू खाते के खाते (सीएडी) को नियंत्रित रखने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सीएडी को कम करने और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए कुछ और उपायों पर विचार किया जा रहा है।
• यहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के लिए प्रमुख देश बना रहेगा। हालांकि उन्होंने कहा कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में अल्पावधि के लिए कुछ दिक्कतें आ सकती हैं। यह काफी हद तक विदेश की स्थितियों पर निर्भर करेगा।
• वित्त मंत्री ने वित्तीय अनुशासन को सरकार की प्राथमिकताओं में बताया। उन्होंने कहा, ‘यह शीर्ष प्राथमिकताओं में एक है। मेरा मानना है कि वित्तीय अनुशासन से हमेशा मदद मिलती है। आप खर्च में उदारता तभी दिखा सकते हैं जब राजकोषीय स्थिति मजबूत हो, अन्यथा नहीं।’ जेटली के अनुसार जीडीपी के मुकाबले राजकोषीय घाटा 4.6 फीसद से घटकर नीचे आ गया है।
• हमने इसे इस साल तीन फीसद पर लाने का लक्ष्य रखा है। राजस्व आय खासकर प्रत्यक्ष कर संग्रह देखकर विश्वास है कि यह लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। जहां तक सीएडी का सवाल है, जेटली ने कहा कि यह काफी कुछ विश्व बाजार में कच्चे तेल के मूल्य से जुड़ा है क्योंकि विदेशी मुद्रा का सबसे ज्यादा व्यय इसी मद पर होता है।
• जेटली ने कहा कि कच्चा तेल लगातार महंगा हो रहा है और इसकी कीमत चार साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इसका सीएडी पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। हम इसे कम करने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं। कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। लेकिन ये दो कारकों कच्चे तेल की कीमत और अमेरिकी की नीति से जुड़ा है।
• अमेरिका की नीतियों से डॉलर खुद ही मजबूत हो रहा है। इससे दुनिया की तमाम मुद्राओं में गिरावट आ रही है। हालांकि उन्होंने सीएडी नियंत्रित करने के लिए संभावित उपायों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

*2. आरएंडडी की कमी से निर्यात हो रहा प्रभावित*
• वैश्विक बाजार में एक तरफ भारत अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है लेकिन वहीं रेडीमेड गारमेंट और अपैरल समेत कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां वह छोटे पड़ोसी देशों से भी पिछड़ रहा है। इसकी वजह भारतीय उद्योगों में शोध व विकास (आरएंडडी) कार्यो में खर्च को लेकर उदासीनता है। आरएंडडी में निवेश के बूते ही टेक्सटाइल के कई क्षेत्रों में बांग्लादेश जैसे देश वैश्विक बाजार में भारत को पीछे छोड़ रहे हैं।
• देश के निर्यातक संगठनों के फेडरेशन फियो का मानना है कि बिना आरएंडडी पर खर्च बढ़ाए अब वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना भारतीय कंपनियों के लिए मुश्किल होगा। उद्योगों में आरएंडडी को लेकर प्रोत्साहन बढ़ाने के उद्देश्य से फियो ने सरकार से इस मद पर होने वाले खर्च या निवेश को टैक्स के दायरे से बाहर रखने की वकालत की है। इस संबंध में फेडरेशन ने वाणिज्य मंत्रलय को बाकायदा एक प्रस्ताव भेजा है।
• फियो के महानिदेशक डॉ. अजय सहाय ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि अपैरल निर्यात में भारत अब बांग्लादेश जैसे देशों से भी पिछड़ रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यही है कि बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया जैसे देश अपने यहां आरएंडडी पर बड़ा निवेश कर रहे हैं। यही वजह है कि उनके उत्पाद या ब्रांड वैश्विक बाजारों में भारत से ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो गए हैं। अगर सरकार अपने देश में भी आरएंडडी में होने वाले निवेश पर कर संबंधी प्रोत्साहन दे तो इसके बेहतर नतीजे होंगे।
• आरएंडडी पर खर्च को लेकर सरकार और उद्योगों की उदासीनता लंबे अरसे से बनी हुई है। साल 2018 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक बीते दो दशक से इस मद पर होने वाला खर्च सकल घरेलू अनुपात के 0.6-0.7 फीसद पर अटका हुआ है। इस मामले में अमेरिका, चीन, दक्षिण दक्षिण कोरिया और इजरायल जैसे देश भारत से कहीं आगे हैं।
• सर्वे में भी इस खर्च को बढ़ाकर दोगुना करने की दिशा में प्रयास तेज करने की बात कही गई है। अमेरिका अपने जीडीपी का 2.8 फीसद, चीन 2.1 फीसद, इजरायल 4.3 फीसद और दक्षिण कोरिया 4.2 फीसद आरएंडडी पर खर्च करता है।
• सर्वे में स्पष्ट कहा गया है कि चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने अपने आरएंडडी खर्च में बेहद तेज रफ्तार से बढ़ाया है।
• आरएंडडी पर होने वाले खर्च में निजी क्षेत्र की उदासीनता काफी स्पष्ट है। आर्थिक सर्वे के मुताबिक देश में इस मद पर होने वाले खर्च का प्राथमिक स्नोत सरकारी फंडिंग ही है।
• निजी क्षेत्र इस मामले में काफी पीछे है। फोर्ब्स के 2017 के सर्वे के मुताबिक आरएंडडी पर खर्च करने वाली दुनिया की 2500 कंपनियों की सूची में भारत की केवल 26 कंपनियां थीं। जबकि इस सूची में चीन की कंपनियों की संख्या 301 थी। इन 26 कंपनियों में से भी 19 केवल तीन क्षेत्रों फार्मा, ऑटो और सॉफ्टवेयर से संबंधित थी।
• फियो मानता है कि अगर सरकार आरएंडडी पर होने वाले खर्च पर उद्योगों को टैक्स छूट देती है तो इसमें निवेश बढ़ेगा। इसका लाभ उत्पादों की लागत कम करने से लेकर उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाने तक में होगा।

INTERNATIONAL/BILATERAL

*3. सऊदी ने यूएन की रिपोर्ट को बाधित करने की दी धमकी*
• दुनिया का प्रमुख तेल उत्पादक देश सऊदी अरब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक अहम रिपोर्ट को स्वीकार किए जाने में बाधा डालने की कोशिश कर रहा है। उसकी मांग है कि रिपोर्ट में उल्लेख किए गए कार्बन के उत्सर्जन को कम करने का संकल्प लेने वाले अंश को या तो हटाया जाए या उसे संशोधित किया जाए। सूत्रों ने यह जानकारी समाचार एजेंसी एएफपी को दी है।
• दक्षिण कोरिया के इंचियोन में 195 सदस्य देशों वाले ‘इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आइपीसीसी) की बैठक में इस अहम रिपोर्ट पर मंथन किया जा रहा है, जिसमें ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं। इन रास्तों में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को काफी कम करना शामिल है, जिसका सऊदी अरब बड़ा निर्यातक है।
• एक पर्यवेक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘हम इस बात को लेकर बहुत फिक्रमंद हैं कि एक देश धमकी दे रहा है कि अगर उसकी मांग के अनुरूप वैज्ञानिक पड़तालों को बदला नहीं जाता है या हटाया नहीं जाता है तो वह आइपीसीसी विशेष रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करने देगा।’
• सूत्र ने और दो अन्य व्यक्तियों ने इस देश की पहचान सऊदी अरब के तौर पर की है। इन्हें स्थिति की प्रत्यक्ष जानकारी है।1बैठक में हिस्सा ले रहे एक प्रतिभागी ने भी नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि यह बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब और विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे छोटे द्वीप राष्ट्रों के बीच की लड़ाई बन गई है।
• बैठक के अध्यक्ष ने शनिवार को कहा कि इस रिपोर्ट में संतुलन रखा गया है। सऊदी अरब के अधिकारियों ने उनकी टिप्पणी के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया। बंद कमरे हुई बैठक में उनके प्रतिनिधियों तक पहुंचा नहीं जा सका।

SCIENCE

*4. नासा का 41 साल पुराना मिशन पहुंचने वाला है तारों के बीच*
• अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का वोयेगर-2 अंतरिक्ष यान जल्द ही तारों के बीच (इंटरस्टेलर स्पेस) पहुंच सकता है। 41 साल पहले लांच हुए इस यान से टकरा रही कॉस्मिक किरणों (सौर मंडल के बाहर मौजूद उच्च ऊर्जा वाले रेडिएशन) में पांच फीसद की वृद्धि हुई है। इससे स्पष्ट है कि यह इंटरस्टेलर स्पेस के नजदीक पहुंच चुका है।
• बता दें कि वोयेगर-2 को नासा ने 20 अगस्त 1977 को सूर्य से अधिक दूरी पर स्थित ग्रहों (बृहस्पति, शनि, यूरेनस व नेपच्यून) का अध्ययन करने के लिए लांच किया था। जल्द ही यह यान हेलिओस्फियर (सौर मंडल का वह हिस्सा जिसपर सौर हवाओं का अत्यधिक प्रभाव रहता है) की आखिरी सीमा को पार कर तारों के बीच पहुंचने वाला दूसरा मानव-निर्मित यान बन जाएगा। इससे पहले वोयेगर-1 ने उस क्षेत्र में प्रवेश किया था।
• 2012 में वोयेगर-1 यान से टकरा रही कॉस्मिक किरणों में वृद्धि देखी गई थी। इसके तीन महीने बाद ही यान ने इंटरस्टेलर स्पेस में प्रवेश कर लिया था।
• वोयेगर-2 फिलहाल पृथ्वी से 1.77 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह यान बृहस्पति, शनि, यूरेनस व नेप्ट्यून के नजदीक पहुंचने वाला पहला मिशन है।
• वैज्ञानिकों का कहना है कि यान से टकरा रही कॉस्मिक किरणों में वृद्धि होने से वोयेगर-2 के आसपास के वातावरण में बदलाव हुआ है। यह तय है कि इसने हेलिओस्फियर को पार नहीं किया है लेकिन जल्द ही यह ऐसा करने में सफल हो जाएगा।
• अपोलो 8 मिशन के नाम पर रखा गया चंद्रमा के दो क्रेटरों का नाम : द इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (आइएयू) ने नासा के अपोलो 8 मिशन के नाम पर चंद्रमा के दो क्रेटरों का नाम रखा है।
• 1968 में लांच हुए इस मिशन से पहली बार तीन अंतरिक्ष यात्री विलियम एंडर्स, फ्रैंक बार्मेन व जेम्स लोवेल चंद्रमा की कक्षा में पहुंचे थे। ‘8 होमवार्ड’ और ‘एंडर्स अर्थराइज’ नामक दोनों क्रेटर एंडर्स द्वारा ली गई रंगीन तस्वीरों में वे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।

Sorce of the News (With Regards):- compile by Dr Sanjan,Dainik Jagran(Rashtriya Sanskaran),Dainik Bhaskar(Rashtriya Sanskaran), Rashtriya Sahara(Rashtriya Sanskaran) Hindustan dainik(Delhi), Nai Duniya, Hindustan Times, The Hindu, BBC Portal, The Economic Times(Hindi& English)

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