जनवरी, 2016 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ को मंजूरी दी। इस योजना को ‘खरीफ’ 2016 से लागू किया गया। इसमें प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हुई फसल के खिलाफ किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली बीमा की किस्तों को बहुत नीचा रखा गया है, जिनका प्रत्येक स्तर का किसान आसानी से भुगतान कर सके। योजना न केवल खरीफ और रबी की फसलों को बल्कि वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी सुरक्षा प्रदान करती है

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का महत्त्व –

इस योजना के तहत खरीफ, रबी तथा वार्षिक वाणिज्यिक एवं बागबानी फसलों को शामिल किया गया है। योजना सभी प्रकार की फसलों को बीमा क्षेत्र में शामिल करती है, जिससे सभी किसान किसी भी फसल के उत्पादन के समय अनिश्चिताओं से मुक्त होकर जोखिम वाली फसलों का भी उत्पादन करेंगे। योजना किसानों को मनोवैज्ञानिक रुप से स्वस्थ्य बनायेगी।

इस योजना के क्रियान्वयन से किसानों में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होगा जिससे किसानों की कार्यक्षमता में सुधार होगा। सूखे और बाढ़ के कारण आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में कमी आयेगी।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की प्रीमियम की दर बहुत कम है जिससे किसान इसकी किस्तों का भुगतान आसानी से कर सकेंगे। इसमें खरीफ की फसल के लिये कुल बीमित राशि का 2% तक का बीमा प्रभार, रबी का 1.5% तक तथा वाणिज्यिक व बागवानी फसलों के लिये बीमित राशि का 5% तक का बीमा प्रभार निश्चित किया गया है।

किसानों की प्रीमियम राशि का एक बड़ा हिस्सा केन्द्र तथा संबंधित राज्य वहन करता है।

बीमित किसान यदि प्राकृतिक आपदा के कारण बोनी नहीं कर पाता है तो भी उसे दावा राशि मिल सकेगी।

अब ओला, जलभराव और लैण्ड स्लाइड जैसी आपदाओं को स्थानीय आपदा माना जाएगा। इस योजना में स्थानीय हानि की स्थिति में केवल प्रभावित किसानों का सर्वे कर उन्हें दावा राशि प्रदान की जाएगी।

योजना में पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान भी शामिल किया गया है। अब फसल कटने के 14 दिन तक यदि फसल खेत में है और उस दौरान कोई आपदा आ जाती है तो किसानों को दावा राशि मिल सकेगी।
योजना में टैक्नोलॉजी (जैसे रिमोट सेंसिंग) इस्तेमाल कर फसल कटाई/नुकसान का आंकलन शीघ्र व सही तरीके से किया जाता है ताकि किसानों को दावा राशि त्वरित रूप से मिल सके।

स्मार्टफोन के माध्यम से कोई भी किसान आसानी से अपने नुकसान का अनुमान लगा सकता है। फसल कटाई प्रयोग के आंकड़े तत्काल स्मार्टफोन से अप-लोड कराए जाते हैं।

इस योजना के सफल क्रियान्वयन और प्रसार से भविष्य में सकल घरेलू उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के कार्यान्वयन के दौरान प्रस्तुत हो रही चुनौतियाँ–

बड़े स्तर पर बीमा कवरेज के बावजूद बीमांकिक प्रीमियम (Actuarial premium) की राशि बढ़ती गई है जबकि इसे कम होना था। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बीमा कंपनियाँ अधिकतम फायदा लेने के चक्कर में प्रीमियम राशि बढ़ा रही है। संभावना है कि अगले ‘सीजन’ में प्रतिस्पर्द्धा के चलते प्रीमियम राशि में कमी आ जाए।

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और असम के क्षेत्र जहाँ के किसानों की फसलें बाढ़ के कारण खराब हुई हैं, वहाँ उनके नुकसान का अांकलन ‘रिमोट सेंसिंग’ से न करके ‘आँखों’ से किया गया।

‘ड्रोन’ और ‘स्मार्टफोन’ की सुविधा अधिकारियों को उपलब्ध नहीं कराई गई।

कई राज्य बीमा कंपनियों को अग्रिम में प्रीमियम राशि का भुगतान करने में विफल रहे हैं।

किसानों को मुआवजा मिलने में भी देरी हुई है।

इस योजना में जंगली जानवरों जैसे हाथी, नील गाय, जंगली सूअर आदि द्वारा नष्ट की जाती फसलों के जोखिम और नुकसान को शामिल नहीं किया गया है। यह कुछ राज्यों के किसानों के लिये एक बड़ी समस्या है।

वर्तमान में ज्यादातर राज्यों में, इस योजना के तहत बीमा कवर के लिये बोली लगाई जाती है। बोली एक सीजन (6 माह) या दो सीजन (1 वर्ष) के लिये होती है। जो बीमाकर्त्ता कंपनी एक सीजन के लिये बीमा कवर की बोली जीतती है उसे अगले सीजन में आने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। इससे होता यह है कि जिस साल मानसून बेहतर रहता है उस वर्ष बीमाकर्त्ता खूब लाभ कमाते हैं

लेकिन जिस वर्ष मानसून के कमजोर होने की संभावना होगी उस वर्ष वो बीमा कवर की जिम्मेदारी ही नहीं लेंगे।देश की बड़ी आबादी गाँवों में रहती है तथा कृषि पर निर्भर है। ऐसे में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सफल क्रियान्वयन किसानों के जीवन में खुशहाली ला सकता है। इसलिये इस योजना के उद्देश्य की पूर्ति हेतु सरकार को योजना के समक्ष प्रस्तुत हो रही चुनौतियों से शीघ्र निपटना चाहिये।

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