*आभार_डॉ. भरत झुनझुनवाला*

इन दिनों बिटक्वॉइन की खूब चर्चा है कि इसने लोगों को खूब मालामाल कर दिया है। सरकार और नियामकों द्वारा तमाम चेतावनियों के बावजूद लोगों का इससे मोहभंग नहीं हो रहा है। वर्ष 2008 की वित्तीय मंदी के बाद जब दुनियाभर के बाजार अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे थे तब एक अनजान से शख्स सतोषी नाकामोटो ने बिटक्वॉइन की शुरुआत की। अब इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है। इससे जुड़े लोग ही इसका संचालन कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर यह है क्या? बिटक्वॉइन असल में एक क्रिप्टोकरेंसी है जिसे आसान भाषा में ई-मुद्रा कहा जा सकता है। मान लीजिए किसी व्यक्ति ने 1000 मित्रों को किसी बड़े हॉल के दो अलग-अलग क्यूबिकल मे बिठाया और उन्हें एक सुडोकू पहेली हल करने को दी। अब मान लीजिए रामू ने सबसे पहले पहेली को हल किया। मेजबान ने रामू को विजय मेडल के रूप मे एक बिटक्वॉइन दे दिया। यह बिटक्वॉइन सोने अथवा तांबे का मेडल नहीं। मेजबान ने इसे सभी 1000 मेहमानों के कंप्यूटर पर साझा पेज बनाकर बिटक्वॉइन डाल दिया जैसे आपकी फेसबुक टाइमलाइन पर आपके मित्र पोस्ट डालते हैं। सभी मेहमानों ने स्वीकार किया कि रामू ने सुडोकू को सर्वप्रथम हल किया है और वह एक बिटक्वॉइन का मालिक है। इसके बाद मेजबान अंतध्र्यान हो गया।

अब उस एक बिटक्वॉइन की मान्यता इस पर टिकी हुई है कि सभी 1000 भागीदार इस पर रामू की मिलकियत स्वीकार करते हैं। आगे, सभी 1000 भागीदारों ने हल किए सुडोकू में एक लाइन जोड़ने के अलग-अलग प्रस्ताव सभी के सामूहिक पेज पर साझा किए। सबने वोट किया कि तमाम सुझावों में सबसे कठिन 10 सुझाव कौन से थे? फिर इन दस प्रस्तावित लाइनों को एक केंद्रीय कंप्यूटर में डाल दिया गया। इन सुझावों का तालमेल कर कंप्यूटर ने एक नया सुडोकू बनाया जो पहले से ज्यादा कठिन था। चूंकि इसमें एक लाइन ज्यादा थी अत: सभी 1000 भागीदार इस नए सुडोकू को हल करने में लग गए। मान लीजिए श्यामू ने इसे सबसे पहले किया। उसे सभी ने मिल कर सामूहिक रूप से एक बिटक्वॉइन दे दिया। सभी के साझा पेज पर अब दो बिटक्वॉइन दर्ज हो गए। इन बिटक्वॉइन की केवल कंप्यूटर एंट्री थी। इनका सिक्के अथवा नोट की तरह कोई वजूद नहीं था। यह प्रक्रिया हर 10 मिनट पर दोहराती गई और हर 10 मिनट पर एक बिटक्वॉइन साझा पेज पर विजयी के नाम दर्ज होता गया।

इस प्रकार आज हजारों बिटक्वॉइन अस्तिव में आ गए हैं। सभी 1000 भागीदारों ने इन्हे मान्यता दी है। कुछ ने इन बिटक्वॉइन को खरीदने के लिए नकद रुपये अथवा डॉलर देना स्वीकार किया। जैसे मान लीजिए ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता मेडल को नीलाम कर दे और कोई प्रशंसक इसे खरीद ले तो स्वर्ण पदक एक स्वर्ण मुद्रा जैसा हो जाता है। उसी प्रकार बिटक्वॉइन के कुछ उत्साही प्रशंसकों ने खरीद कर नकद देना स्वीकार किया। इससे बिटक्वॉइन में खरीद-बिक्री चालू हो गई और इसने ई-मुद्रा का रूप धारण कर लिया। कुछ निवेशकों ने भी इसे खरीदना शुरू कर दिया और इसे स्वीकृति मिलती गई। जिस प्रकार रुपये का मूल्य डॉलर से आंका जाता है उसी प्रकार बिटक्वॉइन का भी आंका जाने लगा। कुछ ई-पोर्टलों ने बिटक्वॉइन से भुगतान लेना भी शुरू कर दिया है।

बिटक्वॉइन पर विचार करने के लिए एक ऐतिहासिक प्रकरण का संज्ञान लेना होगा। 18वीं सदी में एक अमीर आदमी रॉथ्सचाइल्ड पर लोगों को बहुत विश्वास था। इसलिए लोग रॉथ्सचाइल्ड के पास सोना अथवा मुद्रा जमा कराकर ‘हुंडी’ लिखवा लेते थे और उसे लेकर दूसरे देश में स्थित रॉथ्सचाइल्ड की शाखा से मुद्रा ले लेते थे। रॉथ्सचाइल्ड द्वारा जारी की गई हुंडियां एक वैश्विक मुद्रा जैसी हो गईं। सामान्यत: वे जमा सोने के बदले हुंडी जारी करते थे। फिर उन्होंने बिना सोना जमा किए हुंडी जारी करना शुरू कर दिया जैसे रिजर्व बैंक नोट जारी करता है। वे रातों रात अथाह संपत्ति के स्वामी बन गए, क्योंकि उनके द्वारा जारी हुंडियों पर जनता को भरोसा था। बिटक्वॉइन का स्वरूप ऐसी हुंडियों जैसा ही है। बिटक्वॉइन तब तक ही अस्तित्व में है जब तक भागीदारों और प्रशंसकों को इस पर भरोसा है।

अब हम बिटक्वॉइन के स्थायित्व एवं भविष्य पर विचार कर सकते हैं। मुद्रा का एक मुख्य गुण संपत्ति का भंडारण होता है। जैसे सोने के सिक्के में लगे सोने में संपत्ति होती है। बिटक्वॉइन में रत्ती भर संपत्ति नहीं होती। खबर है कि एक बिटक्वॉइन धारक की कंप्यूटर हार्ड डिस्क खराब हो गई। वह पासवर्ड के अभाव में अपने बिटक्वॉइन को पुन: हासिल नहीं कर सका। बिटक्वॉइन में न तो सोने के सिक्कों की तरह संपत्ति निहित है और न ही नोट की तरह रिजर्व बैंक की गारंटी है। इसकी कीमत सिर्फ इस पर निर्भर है कि हजारों या लाखों भागीदार इसे मान्यता देते हैं। बिटक्वॉइन के भागीदारों के 1,000 कंप्यूटरों को एक साथ हैक किए जाने से एक मिनट में बिटक्वॉइन धड़ाम हो जाएगा।

बिटक्वॉइन में दूसरी समस्या बहुलता की है। जैसे सतोषी नाकामोटो ने कुछ लोगों को एक हॉल में बिठाकर पहला बिटक्वॉइन जारी किया। उसी प्रकार कोई दूसरा व्यक्ति दूसरे 1,000 लोगों को बिठाकर दूसरी ई-मुद्रा जारी कर सकता है। इस समय बिटक्वॉइन की तरह इथेरियम, लाइटक्वॉइन, डैश,नीओ जैसी दूसरी ई-मुद्राएं भी प्रचलन में हैं। इन मुद्राओं का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि इनके कितने भागीदार एवं प्रशंसक हैं। जैसे पहले तमाम सर्च इंजन हुआ करते थे। अब मुख्यत: गूगल है। बाकी सब लगभग लुप्तप्राय हैं। इसी प्रकार कोई भी ई-मुद्रा कभी भी फुस्स हो सकती है।

ऐसी मुद्रा पर लंबे समय तक भरोसा करना उचित नहीं दिखता है। बिटक्वॉइन की तीसरी समस्या इसके उत्पादन खर्च की है। जैसा सुडोकू के उदाहरण से बताया गया, बिटक्वॉइन उस व्यक्ति द्वारा अर्जित किया जाता है जो कंप्यूटर द्वारा बनाई गई पहेली को सबसे पहले हल करे। खबर है कि कुछ भागीदारों ने तिब्बत में बिटक्वॉइन अर्जित करने के कंप्यूटर लगाए हैं, क्योंकि वहां बिजली सस्ती है। सोने के खनन में आपके हाथ में सोना आता है जबकि बिटक्वॉइन में केवल एक कंप्यूटर एंट्री। लिहाजा बिटक्वॉइन धरती के प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी है और इसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
*(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री और आइआइएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर हैं)*
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