“किसी भी राष्ट्र के विकास की गति उसके नागरिको के बीच शिक्षा के प्रसार से होती है”। स्वामी विवेकानंद जी का यह कथन आज अधिक सार्थक प्रतीत होता है| २१ वीं सदी में ज्ञान के विस्फोटक सैलाब से जब सारा विश्व सराबोर है | चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की आहटें हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है | परन्तु समयचक्र की मधुरिम संगीत उन्ही घरो में गुंजायमान होगी जहा शिक्षा की भव्य वीणा विराजमान होगी |

सामान्यत:,विकास का अभिप्राय आर्थिक तरक्की से है मगर समय के साथ- साथ विकास के पैमाने बदलते रहे | उनके चर्चा का केद्रबिंदु बदलता रहा | आर्थिक विकास से हरित विकास और अब सतत विकास | एक तरफ महात्मा गाँधी है जिनके लिए विकास आर्थिक तरक्की के साथ नैतिक मूल्य और धार्मिकता का मेल होता है ।वहीं दूसरी तरफ अमर्त्यसेन है जिनके लिए सच्चा विकास मनुष्य का अपनी अन्तर्निहित क्षमताओं को विकसित करने की स्वतंत्रता है | खैर, हम किसी भी तरह के विकास की बात कर ले, शिक्षा हमेशा उसका महत्वपूर्ण अंग रहा है | मानव को अधिक परिपक्व, खुशहाल और समझदार बनाने में शिक्षा हर युग में प्रभावी रही है | यह लोगो की उत्पादकता और रचनात्मकता को बढाता है जिससे एक क्रियाशील मानव संसाधन का निर्माण होता है जो देश को सर्वंगीण विकास की ओर अग्रसर करता है | एक आकलन के मुताबिक देश के औसत स्कूली शिक्षा में एक प्रतिशत तक की वृद्धि आर्थिक वृद्धि को ६% से १५ % तक बढ़ा सकती है |

भारतवर्ष पुरातन काल से ज्ञान का केंद्र रहा है | तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला अपनी पूरी गरिमा में विश्व के मनीषियों को आकर्षित करते थे| भारतीय इतिहास तब अपने स्वर्णकालिक दौर से गुजर रहा था | उपनिषद् के ऋषि लोगों को अचंभित कर देने वाले प्रश्नों का जवाब सहजता से दे रहे थे | भारतीय गणितज्ञ शून्य के महिमा को आत्मसात कर रहे थे तथा भारतीय खगोलविद सूर्य और उसके ग्रहों के बीच सम्बन्ध स्थापित कर रहे थे, उनके बीच की दूरियां माप रहे थे | भारतीय चिकित्सक आयुर्वेद को जीवन- संजीविनी बनाने के लिए तत्पर थे , शल्यचिकित्सा जैसे अभिनव प्रयोगों को पूरी संजीदगी से अंजाम दे रहे थे | जब वैदिक ऋषि “आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः” की घोषणा कर रहे थे , चारो तरफ से शिक्षा और ज्ञान को आमंत्रित कर रहे थे | तब भारत एक उन्नत सभ्यता रूपी जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह विश्व पटल पर अपनी आभा विकीर्ण कर रहा था जिसका तेज़ सदियों तक विद्यमान रहा | भारतीय अर्थव्यवस्था अपने चरम पर थी | विश्व बाजारों में भारतीय वस्तुओं की मांग बहुतायत थी | भारत एक समृद्धिशाली देश था |

११९३ ई. में एक घटना घटती है | विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारतीय संस्कृति का लालित्य बिखेरेने वाले विद्यापीठ नालंदा को जला दिया जाता है| हजारो वर्ष की तपस्या, जिज्ञासा और पांडित्य को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है | बाहरी आक्रमण हमारी ज्ञान और संस्कृति को झकझोर देते है | सभ्यता की गति मंद पड़ जाती है, भारतीय जिजीविषा सहम जाती है और आने वाले कई सदियों तक खुद को दुनिया से अलग कर स्वयं में सिमट जाती है और जब तक वह इस चिर-निद्रा से बाहर आती, कुछ मुट्ठी भर के विदेशी व्यापारी उसे सभ्यता का पाठ पढ़ाने का जिम्मा अपने कंधो पे लिए होते है | विश्वगुरु कहा जाने वाला भारत “ वाइट मैंन’स बर्डन “ कहा जाने लगा | भारत दुनिया के सबसे गरीब देशो की सूची में शामिल हो गया | लोग भूखे मरने लगे | अपमान और अन्याय का ये सिलसिला अनवरत जारी रहा जब तक कि आधुनिक नवजागरण काल में ज्ञान- विज्ञान के नवीन केंद्र स्थापित नहीं हुए | राजा राम मोहन रॉय, ईश्वर चन्द्र विद्या सागर, दयानंद सरस्वती , स्वामी विवेकानंद जैसे लोगो ने भारतीय सुप्त चेतना को झकझोर कर रख दिया | विलियम जोंस की एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता का फोर्ट विलियम कॉलेज, मेयो कॉलेज तथा मुंबई , कलकत्ता और मद्रास विश्वविद्यालय ज्ञान विज्ञानं के नए केन्द्रों के रूप में स्थापित हुए | जहाँ एक तरफ टाटा जैसे लोगो ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की स्थापना की वही दूसरी ओर पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय की नीव रखी | भारतीय जिजीविषा फिर से करवटे लेने लगी | एक बार फिर से जगदीश चन्द्र बोस, एस. सी. बोस, सी. वी. रमण जैसे विज्ञानी, रामानुजम जैसे गणितज्ञ विश्व पटल पर चमकने लगे | एक लम्बे आन्दोलन के बाद भारत स्वतंत्र होता है | प्रौद्योगिकी और प्रबंधन के नए विश्वस्तरीय केंद्र शुरू किये जाते है | भारतीय प्रतिभायें फिर से विश्व में अपना लोहा मनवाती है | अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया की पूरी सिलिकॉन वैली भारतीयों से पट जाती है | गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के सी. इ. ओ. आज भारतीय है| आज भारत विश्व की सबसे तेज से आगे बढती हुयी अर्थव्यवस्था है | स्वतंत्रता प्राप्ति के ७० वर्षो में साक्षरता की दर पांच गुने से भी ज्यादा बढ़ी है वही भारतीयों की आय में २१ गुने का इजाफा हुआ है|

कोई भी राष्ट्र बिना मानवी पूँजी में निवेश के निरंतर विकास नहीं कर सकता | मानव पूँजी को तैयार करने का सबसे प्रभावकारी रसायन शिक्षा है | एक अनुमान के अनुसार १९४८-४९ से १९६८-६९ तक प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ाने में शिक्षा का योगदान १४ % के आस-पास था जो बाद के बर्षो में बढकर ३५ % हो गया | आज के समय में तो शिक्षा अर्थव्यवस्था को गति देने में मुख्य भूमिका में है| वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के अनुसार २००४-२०१२ यानि इन आठ सालो में भारतीय मिडिल क्लास की संख्या में दुगना बढ़ोतरी हुई| इसका प्रमुख कारण, अर्थशास्त्री सुरजीत एस भल्ला के अनुसार शिक्षा है| उनके अनुसार मिडिल क्लास के बढ़ने की बुनियादी आवश्यकता ही कॉलेज शिक्षा है |

जो व्यक्ति आज शिक्षा ग्रहण कर रहा है , कल वो कार्यस्थल में परवेश करेगा, परसों उसकी उपस्थित कॉर्पोरेट बोर्ड रूम में होगी | उसके बाद सत्ता गलियारे में | इस तरह शिक्षा समावेशी विकास को भी बढावा देती है बशर्ते शिक्षा सर्वसुलभ हो |

शिक्षा ने महिलाओं की स्थिति में भी अभूतपूर्व परिवर्तन किया है | उन्हें घर से बाहर लाकर देश के विकास के लिए एक नया कार्यबल दिया है | इसका सबसे पहला लाभ है- जनसँख्या नियन्त्रण. शिक्षित महिलायें, कम बच्चे- प्रजनन दर में कमी| विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कार्यबल में लिंग-असामनता को आधा भी कम किया जाये तो आने वाले तीन सालो में भारत की अर्थव्यवस्था में $१५० बिलियन का इजाफा किया जा सकता है|

वैश्वीकरण, संचार और सूचना क्रांति के योग ने न केवल उत्पादन की संरचना को प्रभावित किया है बल्कि उत्पादन में सम्मिलित कारको के सापेक्ष महत्व को भी प्रभावित किया है| आज विकास का प्रमुख चालक एक ऐसा कार्यबल जो केवल “ नो हाउ “ ही जनता हो नहीं है बल्कि आज के युग में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनने के लिए जरूरत विश्लेषण और निर्णय लेने की क्षमता से युक्त एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित और सूचित कार्यबल की है|

एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की जरूरत न केवल कार्यबल में उच्चतम कौशल की है बल्कि मांग के अनुरूप उसे अद्यतन बनाये रखने की भी है | प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना शत प्रतिशत समयानुरूप है कि “ २१वीं सदी ज्ञान का युग है | इस युग में भुखमरी और गरीबी को समाप्त करने का एक मात्र तरीका ज्ञान ही है| “ इस ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का समुचित उपयोग करने की क्षमता एक सशक्त, व्यापक, प्रगतिशील और समावेशी शिक्षा व्यवस्था से ही सुलभ होगी | सर्वसुलभता, इक्विटी, गुणवत्ता, प्रासंगिकता, और दक्षता भारतीय शिक्षा व्यवस्था के प्रमुख घटक होंगे जो देश को ज्ञान आधारित शिक्षा व्यवस्था के लिए तैयार करेगी| भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित अनेक कार्यक्रम जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय अविष्कार अभियान, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार करेगी जो शिक्षा को विकास परक बनाएगी | एक ऐसी शिक्षा जो रोजगार दिलाएगी, आविष्कार कराएगी, नवाचार(इनोवेशन) की सांस्कृतिक दीप प्रज्वलित कर देश के सामान्य मानविकी के अंधेरो को दूर करेगी | १३० करोड़ लोगो का देश और उसमे भी ७० % युवा, इतनी उर्जा , इतने क्षमता-युक्त युवा-शक्ति इतिहास में कभी कही और नहीं हुई | इसका श्रम , इसका ओज , इसकी जिजीविषा, इसकी शोध , इसकी उद्यमशीलता का सयोग ही २१ सदी का करिश्मा होगा जो नव भारत का , अपने न्यू इंडिया का विश्व से परिचय कराएगा |

 

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