विश्व की पहली औद्योगिक क्रांति में भाप के इंजन ने कई यांत्रिक उत्पादों का अविष्कार किया। जब दूसरी औद्योगिक क्रांति हुई, तब विद्युत के कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका। 1960 के पश्चात् आई तीसरी औद्योगिक क्रांति ने कम्प्यूटर, डिजीटल तकनीक और इंटरनेट के द्वारा खोले। वर्तमान दौर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का है। इस चैथी औद्योगिक क्रांति से निर्माण के परंपरागत तरीकों एवं सेवा आधारित उद्योगों में ऐसा उलट-फेर होने वाला है, जिसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है।

यह चैथी औद्योगिक क्रांति ऐसी दस तकनीकों से परिपूर्ण होगी, जो औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन कर देगी।

स्वचालित रोबोट, ऑगमेंटेड रिएलिटी; द क्लाउड साइबर-सुरक्षा; योगात्मक विर्निर्माण या एडिटिव मेनुफैक्चरिंग, क्षैतिज एवं उध्र्वाधर एकीकरण या हॉरिजान्टल एण्ड वर्टिकल इंटिग्रेशन; सिम्यूलेशन; बिग डाटा; द इंटरनेट ऑफ थिंग्स एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ऐसी दस परिवर्तनकारी तकनीकें हैं, जो डिजाइन से लेकर उत्पादकता, गति एवं उत्पादन की गुणवत्ता को बदलकर रख देंगी।

प्रभाव-

चैथी औद्योगिक क्रांति के चलते रोजगार पर गहन दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका है। बहुत से रोजगार ही खत्म हो जाएंगे।
नई तकनीकों के चलते असमानता में वृद्धि एवं सामाजिक सामंजस्य में कमी आएगी।
दूलोन मस्क का अनुमान है कि ए आई के कारण मानवता को खतरा हो सकता है। अतः इसके कड़े नियमन की जरूरत है।
बिल गेट्स का कहना है कि रोबोट से काम लेने पर अतिरिक्त टैक्स लगाया जाना चाहिए, एवं स्वचालन की प्रक्रिया को धीमी गति से आगे बढाया जाना चाहिए।
मैकिन्सकी की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक विश्व में स्वचालन के कारण 40-80 करोड़ लोग अपने रोजगार गंवा देंगे। उन्हें कोई दूसरा काम ढूंढने की आवश्यकता होगी। स्पष्ट है कि उसके लिए नए प्रकार के कौशल एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
भारत को लाभ-

नई तकनीकों के आने से भारत अपने ईज ऑफ डुईंग बिजनेस में जिन दो कारणों से; अनुबंधों के प्रवर्तन और संपत्ति के पंजीकरण में, 190 देशों के बीच 164 वें और 154 वें स्थान पर है; उसमें सुधार होगा।
भारत के न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ मामले लंबित पड़े हुए है। जिला न्यायालयों में लंबित पड़े लगभग दो-तिहाई मामले भूमि-पंजीकरण से जुडे़ हैं। ब्लॉकचेन से जुड़े अनुबंधों से न्यायिक मामले बहुत कम हो जाएंगे, भूमि पंजीकरण में पारदर्शिता आ जाएगी एवं भूमि से जुड़ा भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
भारत में आधार से जुडे सैकड़ों लोगों के बायोमैट्रिक हैं। इन्हें ब्लॉकचेन के माध्यम से अलग-अलग क्षेत्रों में काम में लाया जा सकता है।
2030 तक विश्व की अर्थव्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का 15.7 खरब डॉलर के योगदान का अनुमान है। इस परिपेक्ष्य में भारत की तकनीकी स्थिति, अनुकूल जनसांख्यिकीय एवं एडवांस डाटा की उपलब्धता के संरचनात्मक लाभ को देखते हुए ए आई के क्षेत्र में भारत अग्रणी हो सकता है। 2035 तक भारत की अर्थव्यवस्था में ए आई का 957 अरब डॉलर का योगदान मिल सकता है। सरकारी क्षेत्र में ‘स्केल‘ और ‘गुणवत्ता‘ दोनों के लिहाज से एआई बहुत सहायक हो सकता है।
भारत को क्या करना चाहिए ?

सर्वप्रथम, हमें भारत की शिक्षा व्यवस्था को डिग्रीयों के जाल से निकालकर कौशल पर आधारित करना होगा। इस क्षेत्र में अटल अन्वेषण मिशन ने कार्य करना आरंभ कर दिया है।
हमें कौशल के लगातार उन्नयन पर ध्यान देना होगा। चैथी औद्योगिक क्रांति से निपटने के लिए आई आई टी एवं ट्रिपल आई आई टी को पुनः परिभाषित करना होगा।
हमें ऐसे टास्क फोर्स बनाने होंगे, जो बहुआयामी कौशल से युक्त हों। ये टास्क फोर्स किसी भी स्थिति से डिजीटल कार्यों को करने में सक्षम हों।
औद्योगिक क्रांति के नए दौर को आत्मसात् करने के लिए हमारे लोगों को तैयार रहने की आवश्यकता है। इसके लिए एक वातावरण तैयार करने की जरूरत होगी।
हमें संस्थाओं और विषयों से परे काम करना होगा। अगर हम मेडिकल डाटा का उदाहरण लें, तो देखते है कि तकनीक की मदद से अलग-अलग स्वास्थ्य प्रदाताओं एवं शोध-संस्थानों को जिनॉमिक डाटा भेजकर, हम जीवन रक्षा के अवसरों को बढ़ा सकते हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण जैसे सामाजिक क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में नई तकनीकों की मदद से हम जीवन की गुणवत्ता और मानव विकास सूचकांक में वृद्धि कर सकते हैं। ये क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ रोजगार के सर्वाधिक अवसर विकसित किए जा सकते हैं।
चैथी औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक चरण से अनेक देश गुजर रहे हैं। भारत को इस रूपातंरण के लिए अपने को अतिशीघ्र तैयार करना होगा।

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