(मनीषा सिंह)

नीति आयोग के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेरोजगारी पर चिंतन करते हुए कहा कि दलाली रोजगार का क्षेत्र बन गया था। बिचौलिया किस्म के लोग नौकरी का वादा करके अन्य बेरोजगारों से पैसे ऐंठने का काम करने लगे थे। हालांकि उनकी सरकार ने बिचौलियों को बाहर कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में दलाल ही असल में बेरोजगार हो गए हैं और यही लोग आज बेरोजगारी सबसे ज्यादा हंगामा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी का बयान संकेतों में नौकरी में घटते मौकों को लेकर विपक्ष के आरोपों का जवाब भी है, पर इस जवाब से संतुष्ट होने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर करना होगा।

रोजगार के अवसरों में कमी के पहलू को अक्सर आंकड़ों में देखा जाता है और इस संबंध में दो वर्ष पूर्व आर्थिक संगठन एसोचैम ने एक अध्ययन प्रस्तुत किया था। एसोचैम के अध्ययन के अनुसार आर्थिक मोर्चे पर देश के आगे बढ़ने के बावजूद बेरोजगारी का ठोस समाधान नहीं निकल गया है। हमारे देश में हर साल 1.30 करोड़ नौजवान श्रमशक्ति में शामिल हो रहे हैं, पर उन्हें कोई नौकरी या कामकाज नहीं मिल रहा है। अध्ययन के अनुसार पिछले एक से डेढ़ दशक के बीच देश में रोजगार सृजन की दर सिर्फ 1.4 प्रतिशत रही, जबकि इसी मध्य पढ़लिख कर रोजगार की इच्छा करने वाले युवाओं की संख्या सालाना 2.23 फीसद बढ़ी है। इसलिए इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि देश अब रोजगारविहीन विकास वाले दौर में है। भारत जैसे बेशुमार आबादी वाले देश के लिए ऐसा विकास काफी बड़े संकट पैदा कर सकता है।

पर ये आंकड़े तस्वीर का एक ही पहलू पेश कर रहे हैं। इनका दूसरा पहलू भी है जो थोड़ा विचित्र है। जैसे हाल में पता चला है कि देश के बेरोजगार युवाओं में बड़ा प्रतिशत उनका है जो किसी भी तरह की नौकरियों की तलाश नहीं कर रहा है। तथ्यों के मुताबिक जनवरी 2017 में देश में 40 करोड़ 84 लाख लोग बेरोजगार थे, लेकिन नौकरी तलाश रहे लोगों की तादाद 2 करोड़ 59 लाख थी। सात महीने बाद जुलाई के आखिर तक बेरोजगार लोगों की तादाद घटकर 40 करोड़ 54 लाख हो गई, लेकिन इसी दौरान नौकरी ढूंढ़ने वाले लोगों की तादाद भी घटकर 1 करोड़ 37 लाख हो गई। ये आंकड़े सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) के हैं। मंद पड़ रही नौकरियों की खोज के दो-तीन कारण हो सकते हैं। जैसे-हो सकता है कि युवा नौकरी के बजाय अपना कोई धंधा खड़ा करना चाहते हों। इधर जिस तरह से सरकार ने उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, मुमकिन है कि युवा उनमें अपना भविष्य संवार रहे हों। एक संभावना यह है कि आज के युवा सामान्य पढ़ाई से आगे बढ़कर खास कौशल वाली उच्च शिक्षा ले रहे हों। चूंकि आज के बाजार में अत्याधुनिक कौशल और उच्च शिक्षा की नई मांग पैदा हुई है, इसलिए हो सकता है कि बेरोजगार युवा अपनी योग्यता और बढ़ाने का प्रयास कर रहे हों।

‘यह देखा गया है कि विकसित देशों में आर्थिक मंदी के दौर में लोगों ने अपनी योग्यताएं बढ़ाने का प्रयास किया था, हो सकता है कि यही इस वक्त अपने देश में हो रहा हो।1यदि बेरोजगार अपनी दक्षता बढ़ाने या खुद का कारोबार खड़े करने की कोशिश कर रहे हैं तो यह प्रधानमंत्री की अपेक्षाओं के अनुरूप हो रहा बदलाव है, लेकिन समस्या तब होगी जब इसका कोई और पहलू सामने आएगा। जैसे-माना जा रहा है कि बेरोजगारों की तादाद में कमी उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा में आई है। ये कम विकसित राज्य हैं और इन्हीं राज्यों में ज्यादा युवा आबादी भी है। जिन बेरोजगार युवाओं ने नौकरी खोजना छोड़ा है, उन्हें गैर-कानूनी गतिविधियों में आसानी से शामिल किया जा सकता है। ऐसे में बेरोजगारों का रोजगार नहीं खोजना बड़ी चिंता की बात हो सकता है।

ध्यान रखना होगा कि हमारे देश में युवाओं का रोजगार एक बड़ा मुद्दा है और इस मुद्दे पर सरकारों का बनना-बिगड़ना भी निर्भर करता है। मोदी सरकार ने भी अपने चुनावी अभियान के दौरान लाखों युवाओं को रोजगार दिलाने का आश्वासन दिया था, लेकिन सरकारी नौकरियों के मामले में उतनी बड़ी तब्दीली अभी दिखी नहीं है। इसके उलट यह ट्रेंड अवश्य दिखा है कि ज्यादातर सरकारी नौकरियों में एक-एक पद के लिए हजारों अभ्यर्थी आवेदन भरते हैं और मांगी गई योग्यता से कई गुना ज्यादा योग्यता व डिग्री वाले युवा उनके लिए आवेदन देते समय यह उम्मीद लगाते हैं कि काश यह नौकरी उन्हें ही मिल जाए। इसके अलावा गुजरात में पटेल समुदाय का आंदोलन और राजस्थान में जाटों का आंदोलन और महाराष्ट्र में मराठों का आंदोलन मुख्यत: रोजगार की कमी और सरकारी नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था के दोषों को ही उजागर करता है। माना जा रहा है कि यदि बेरोजगारी की समस्या का कोई ठोस हल नहीं सुझाया गया तो देश के अन्य समुदायों के बीच से भी ऐसे ही आंदोलन उठ खड़े होंगे और वे भी अपने लिए अलग से आरक्षण की मांग सरकारी नौकरियों में करने लगेंगे।

देश की अर्थव्यवस्था स्थिर रहने और भविष्य में उसमें बढ़ोतरी होने की संभावना के बावजूद नौकरियों की संख्या बढ़ने के स्थान पर कम होते जाने के दो-तीन कारण प्रमुख हैं। जैसे एक कारण तो यह है कि अब ज्यादातर निजी कंपनियां कम पूंजी लगाकर ज्यादा कमाई वाले बिजनेस मॉडल पर ध्यान लगा रही हैं। ई-कॉमर्स का जो बिजनेस मॉडल है उसमें लगभग यही दृश्य दिखाई देता है कि वहां गिनेचुने कर्मचारियों के बल पर हजारों करोड़ रुपये कमाए जा रहे हैं। एक अन्य प्रमुख कारण यह रहा है कि हमारे युवा ऐसी शिक्षा की तरफ मुड़ जाते हैं, जो उन्हें डिग्री तो देती है पर अपना काम शुरू करने की समझ और संबल नहीं देती। यही नहीं, चूंकि युवा ज्यादा कोशिश सरकारी नौकरी पाने की करते हैं, इसलिए स्थिति एक अनार, सौ बीमार वाली बन गई है। इसके उलट यदि नौजवान अपना कामधंधा शुरू करके अपने साथ-साथ दस और युवाओं को कामकाज देते तो आज जैसा संकट देश में नहीं होता।

इस स्थिति में सुधार की उम्मीद लगाई जा सकती है, बशर्ते युवा सरकार की उद्यमशीलता वाली स्किल इंडिया जैसी योजनाओं में भाग ले रहे हों। एक समस्या यह है कि विदेशों में भी भारतीय प्रतिभाओं के लिए अवसरों की कटौती हो रही है। बहरहाल आज जरूरत यह है कि हमारी सरकार तेज आर्थिक विकास के दावे भर न करे, बल्कि ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करे जिसमें देश के युवाओं के लिए उनकी प्रतिभा और योग्यता के मुताबिक रोजी-रोजगारों का सृजन होता है।(DJ)

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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