वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 21 स्थान नीचे गिरकर 108वें स्थान पर पहुंचा:

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 21 पायदान नीचे आ गया है। फोरम ने 144 देशों में भारत को 108वें नंबर पर रखा है। पिछले साल 87वें नंबर पर था। स्त्री-पुरुष में आर्थिक और राजनीतिक असमानता बढ़ना इसकी मुख्य वजह है।

फोरम चार पैरामीटरों पर यह रैंकिंग करता है। इनमें से दो में प्रदर्शन खराब हुआ है। बाकी दो पैमाने पर भी सिर्फ एक-एक अंक का सुधार है। राजनीतिक अधिकार में भारत 15वें नंबर पर है। अर्थव्यवस्था में महिलाओं की कम भागीदारी और मामूली वेतन के चलते भारत रैंकिंग में चीन और बांग्लादेश से भी पिछड़ गया है।

डब्ल्यूईएफ की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2017 के मुताबिक भारत ने महिला और पुरुषों के मामले में 67 फीसदी अंतर पाटने में सफलता हासिल की है। लेकिन यह सफलता चीन और बांग्लादेश से भी फीकी है। इस इंडेक्स में बांग्लादेश 47वें और चीन 100वें स्थान पर रहा।

भारत की रैंकिंग 2006 के मुकाबले दस पायदान गिरी है। यह इंडेक्स 2006 में ही शुरूकिया गया था। इंडेक्स की शुरुआत से पहली बार पूरी दुनिया में जेंडर गैप के मामले में हालात सुधरने के बजाय बिगड़ी है। खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा, कार्यस्थल और राजनीति इन चारों क्षेत्रों में महिला व पुरुषों के बीच खाई और चौड़ी हुई है।

प्रमुख मापदंडों के अनुसार रैंकिंग:

हेल्थ: भारत 141वें स्थान पर है। भारत से नीचे सिर्फ 3 देश हैं- अजरबैजान, आर्मेनिया, चीन। आश्चर्यजनक रूप से चीन सबसे नीचे है। भारत में 5 साल से कम की 1 लाख बच्चियों में से 595 मर जाती हैं। 587 महिलाओं की मौत संक्रामक रोगों से होती है।

पॉलिटिकल: भारत 15वें स्थान पर है। भारत का स्थान संसद में रिप्रेजेंटेशन के मामले में 118वां और मंत्री बनने के मामले में 76वां स्थान है। 1966 में यहां पहली बार महिला पीएम बनीं। टॉप-20 देशों में बने रहने के लिए नई पीढ़ी को आगे आना होगा।

इकोनॉमिक: भारत 139वें स्थान पर है। भारत में महिलाएं रोज औसतन 537 मिनट काम करती हैं। पुरुष 442 मिनट। महिलाओं को 66% और पुरुषों को 12% काम के पैसे नहीं मिलते। महिलाओं की औसत सैलरी 5,400 रु. और पुरुषों की 8,100 रु. है।

एजुकेशन: भारत 112वें स्थान पर है। प्राथमिक/सेकंडरी एजुकेशन में भर्ती के मामले में भारत नंबर-1 है। 40% वयस्क महिलाओं और 62% पुरुषों के पास प्रायमरी एजुकेशन है। सेकंडरी एजुकेशन में महिलाओं का एवरेज 19.4% और हायर एजुकेशन में 6.7% है।

अन्य प्रमुख तथ्य:

इकोनॉमिक कोऑपरेशन, एजुकेशन और हेल्थ में रैंकिंग भारत 100 से नीचे ही है। वर्ल्ड लेवल पर स्त्री-पुरुष में असमानता भी बढ़ी है। जेंडर गैप रैंकिंग के 11 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ। 2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस अंतर को पाटने में 83 साल लगेंगे। लेकिन नई रिपोर्ट के मुताबिक अब इसमें 100 साल लग जाएंगे।

सैलरी का अंतर तो इतना ज्यादा है कि इसे खत्म होने में 217 साल लगेंगे। राजनीतिक असमानता दूर करने में 99 साल और शैक्षिक असमानता हटाने में 13 साल का वक्त लगेगा। फोरम में एजुकेशन और जेंडर डिपार्टमेंट की प्रमुख सादिया जाहिदी ने कहा कि बड़े देशों में असमानता कम करने की रफ्तार घटी है।

एक मात्र पॉजिटिव बात यह है कि 144 में से करीब आधे देशों का स्कोर बेहतर हुआ है। हालांकि भारत का स्कोर कम हुआ है। फोरम की पहली जेंडर गैप रिपोर्ट 2006 में आई थी।

लीडरशिप पोजीशन में महिलाएं 50% भी नहीं:

विश्व स्तर पर किसी भी इंडस्ट्री में लीडरशिप पोजीशन में 50% महिलाएं नहीं हैं। ऊर्जा, माइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग में तो यह 20% से भी कम है। सिर्फ हेल्थकेयर और एजुकेशन में 40% से ज्यादा कंपनियों का प्रतिनिधित्व महिलाएं कर रही हैं। पर उनके वेतन का औसत कम है।

नंबर-1 देश आइसलैंड में 1982 तक 5% सांसद ही महिलाएं थीं। 1983 के चुनाव में 60 में से 15 सीटों पर महिलाएं चुनी गईं। लेकिन 2016 में महिला सांसदों की संख्या 48% पहुंच गई।

शीर्ष 10 देश:

आइसलैंड लगातार नौवें साल टॉप पर है। इसके बाद नॉर्वे, फिनलैंड, रवांडा, स्वीडन, निकारागुआ, स्लोवेनिया, आयरलैंड, न्यूजीलैंड और फिलीपींस हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *