(जयंतीलाल भंडारी)

यकीनन इस समय जब देश से निर्यात घट रहे हैं, और देश का व्यापार घाटा बढ़ रहा है। ऐसे में पश्चिम और पूर्व एशिया के लिए निर्यात और बढ़ने का नया लाभप्रद परिदृश्य उभरता दिखाई दे रहा है। हाल ही में जारी विदेश व्यापार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार देश से निर्यात में कमी आई है, और व्यापार घाटा पिछले पांच वर्ष के उच्चतम स्तर पर है। चालू वित्त वर्ष 2017-18 के पहले 10 महीनों में भारत के निर्यात 248 अरब डॉलर और आयात 379 अरब डॉलर के रहे यानी व्यापार घाटा 131 अरब डॉलर रहा जबकि पिछले वित्त वर्ष 2016-17 में इसी समयावधि में निर्यात 265 अरब डॉलर और आयात 380 अरब डॉलर के रहे थे। यानी व्यापार घाटा 115 अरब डॉलर रहा था। चूंकि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, अतएव आगामी महीनों में व्यापार घाटा और बढ़ेगा। ऐसे में देश का निर्यात और विदेशी कारोबार बढ़ाने के लिए पश्चिमी और पूर्व एशिया से अच्छी उम्मीदें दिखाई दे रही हैं।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तीन पश्चिमी एशियाई देशों अमन, संयुक्त अरब अमीरात तथा फिलस्तीन की यात्रा के दौरान कूटनीतिक रिश्तों के साथ-साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने का एक नया संतुलन दिखाई दिया है। अबू धामी की नेशनल ऑयल कंपनी के ऑयल फील्ड में भारत की तेल कंपनियों द्वारा ली गई दस फीसदी की हिस्सेदारी को विशेष रूप से विश्व के अर्थ विशेषज्ञ रेखांकित करते हुए दिखाई दे रहे हैं। मध्य-पूर्व में किसी तेल कंपनी में यह भारत की पहली हिस्सेदारी है। इससे भारत के कच्चे तेल के आयात खर्च में कमी आएगी। पूर्वी एशिया में समुद्री क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी के कारण कई पूर्वी एशियाई देशों का चीन से विवाद बढ़ गया है। ऐसे में अमेरिका ने 12 फरवरी को घोषित अपने नये बजट में बढ़ाए गए रक्षा बजट के कारणों में इस मुद्दे को भी रेखांकित किया है। ऐसे में भारत के लिए पूर्वी एशियाई देशों में कूटनीति और कारोबार बढ़ाने का नया परिदृश्य उभरा है।

गौरतलब है कि भारत और यूएई ने ऊर्जा, रेलवे, श्रमशक्ति और वित्तीय सेवा जैसे क्षेत्रों में पांच अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इन समझौतों के तहत रेलवे में संयुक्त योजनाएं और तकनीक का लेन देन प्रमुख हैं। द्विपक्षीय सहयोग को मजबूती देने के लिए बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और अबूधाबी सुरक्षा विनिमय के बीच समझौता हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय सेवाओं में दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है। भारत और यूएई अपने आर्थिक और व्यावसायिक रिश्तों खासकर नागरिक उड्डयन, जलवायु और ऊर्जा के क्षेत्रों में और मजबूत करने पर सहमत हुए हैं। निश्चित रूप से अमन, पूर्वी अफ्रीका के उभरते बाजारों तक पहुंच बनाने में भारत के लिए यह मददगार साबित होगा, जो अभी चीन के व्यापार व निर्यात के लिए कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी का सबब बने हुए हैं। भारत व अमन के बीच रक्षा, स्वास्य और पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग सहित आठ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।

आर्थिक सहयोग के करार संयुक्त अरब अमीरात और फिलस्तीन के साथ भी हुए हैं। फिलस्तीन के साथ छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। निश्चित रूप से इन सबसे पश्चिम एशिया में भारत को कारोबार बढ़ाने और निर्यात के नये अवसर बढ़ेंगे। इतना ही नहीं, पश्चिम एशिया में भारत और इस्रइल बेहद करीब आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस्रइल यात्रा इस मामले में मील का पत्थर ही कही जा सकती है। जहां हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के बाद भारत ने पश्चिमी एशिया के साथ कारोबार व निर्यात बढ़ाने के नये अध्याय की शुरुआत की है, वहीं पिछली जनवरी में पूर्वी एशिया के साथ कारोबार एवं निर्यात बढ़ाने का जोरदार प्रयास हुआ है। 25 व 26 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी के साथ दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंसन (आसियान) के 10 देशों इंडोनेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर, मलयेशिया, ब्रुनेई, थाइलैंड, म्यांमार, लाओस, वियतनाम और कंबोडिया के राष्ट्र प्रमुखों की विभिन्न बैठकों के बाद कारोबार, परिवहन, समुद्री सुरक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग के मुद्दों पर व्यापक सहमति बनी है।

गौरतलब है कि आसियान देशों के साथ वार्ता में यह बात उभर कर सामने आई कि आसियान के कुछ देशों का पूर्वी व दक्षिण चीन समुद्र क्षेत्र को लेकर चीन से विवाद है, वहीं भारत का भी अपने उत्तर स्थित पड़ोसी देश के साथ जमीन को लेकर विवाद है। ऐसे में भारत और आसियान के 10 देश समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए नई रणनीति बनाने पर सहमत हुए हैं। इस कूटनीतिक आधार पर भी भारत के साथ पूर्वी एशियाई देशों के कारोबारी संबंधों और मजबूत बनाने की संभावनाएं बढ़ी हैं। निस्संदेह विश्व व्यापार में आसियान समूह के सबसे ज्यादा गतिशील होने के कारण इस समय भारत दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ लगातार व्यापारिक एवं सामाजिक संबंध बढ़ाने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। आसियान देशों में भारतीय प्रफेशनल्स के लिए कामकाज के विस्तार की काफी गुंजाइश बढ़ी है। अंग्रेजी बोलने वाले भारतीय आईटी प्रफेशनलों को दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बाजार में संभावनाओं का बड़ा बाजार हासिल हुआ है। न केवल सॉफ्टवेयर या सेवा क्षेत्र बल्कि कई अन्य आर्थिक क्षेत्रों में भारत ने विश्व की उभरती हुई आर्थिक शक्ति के तौर पर पहचान बनाई है।

भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है। आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मास्युटिकल्स, केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं। इनके लिए आसियान देशों में कारोबार की अच्छी संभावनाएं हैं। चूंकि चीन पश्चिमी और पूर्वी एशियाई बाजारों में कारोबार के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ चुका है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की हाल ही की पश्चिम एशियाई देशों की यात्रा और आसियान देशों के साथ नये मैत्रीपूर्ण संबंधों से पश्चिम और पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत को कारोबार व निर्यात बढ़ाने का एक लाभप्रद मौका मिला है। ऐसे में हम आशा करें कि अब भारत पश्चिमी एवं पूर्वी एशियाई देशों में अपनी चमकीली व्यापार एवं निर्यात संभावनाओं को साकार करने की डगर पर तेजी आगे बढ़ेगा।(RS)

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