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*आभार-चंद्रकांत लहरिया*

को स्वास्थ्य सुविधा (यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज-यूएचसी) का लक्ष्य है ‘‘सभी लोगों को तत्काल, निवारक, उपराचात्मक, उपचारोत्तर स्वास्य देखभाल सुविधा मुहैया कराई जाए। ऐसी कि जो गुणवत्तापूर्ण और प्रभावकारी हों। और इसके साथयह भी सुनिश्चित किया जाए कि स्वास्य सेवाएं वित्तीय रूप से आम जन की पहुंच में हों।’ इस दृष्टि यूएचसी सिरे से नईअवधारणा है, जिसकी तरफ समूचे विश्व का ध्यान गया। इसी कड़ी में विश्व स्वास्थ्य सभा 2005 में सभी सदस्य देशों से आग्रह किया गया कि वे अपनी स्वास्थ्य पण्रालियों को इस तरीके से विकसित करें कि यूएचसी के लिए रास्ता बने। यह विचार उस समय और भी पुष्ट हो गया जब संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 12 दिसम्बर, 2012 को यूएचसी से संबद्ध प्रस्ताव को पारित किया। इस प्रस्ताव से यूएचसी एजेंडा का विस्तार हुआ।

विश्व स्वास्थ्य सभा में पहले जहां सदस्य देशों के स्वास्य मंत्री शिरकत करते थे, अब उसके स्थान पर संबद्ध देशों के राष्ट्राध्यक्ष और विदेश मंत्री भी यूएचसी में उपस्थित होने लगे। साथ ही, विश्व यूएचसी दिवस भी प्रति वर्ष 12 दिसम्बर को मनाया जाने लगा। समझ ऐसी बनी कि यूएचसी को टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के एजेंडा में स्थान मिल गया। कुछ महीने पहले एक प्रतिष्ठित जर्नल ‘‘लांचेट’ में स्वास्थ्य देखभाल संबंधी सूचकांक प्रकाशित किया गया। इसमें भारत को 195 देशों की सूची में 154वां स्थान पर रखा गया। दरअसल अनेक कारणों से भारत में लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच सीमित है। मसलन, भौगोलिक, वित्तीय और सांस्कृतिक अवरोधों के चलते आम जन स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने में पीछे छूट जाता है। गरीबों को उपलब्ध कराई जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता से वे अनभिज्ञ हैं। अयोग्य लोगों द्वारा स्वास्य सेवाएं मुहैया कराया जाना आम बात है। आम जन को स्वास्थ्य सेवाएं उपयोग करते समय बेहद ज्याद व्यय करना पड़ जाता है।

भारत सरकार ने नई स्वास्थ्य नीति में माना है कि प्रति वर्ष स्वास्य संबंधी व्यय के चलते करीब 6.3 करोड़ लोग गरीबी के दल दल में घिर जाते हैं। जो पहले से ही गरीबी रेखा से नीचे हैं, वे और दरिद्रता की गिरफ्त में आ जाते हैं। स्वास्थ्य संबंधी खर्चो ने गरीबी उन्मूलन की गरज से सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को कुछ हद तक पलीता लगाने का काम किया है। स्पष्ट है कि भारत स्वास्थ्य सुविधाओं के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। बेहद जरूरी हो गया है कि यूएचसी की ओर पूरी तत्परता के साथबढ़े। विशेषज्ञ और अकादमिक जन यूएचसी के महत्त्व को अच्छे से समझते हैं। लेकिन इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति करने के लिए यह भी जरूरी है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी इस तथ्य को अच्छे से समझें जिनका कार्य किसी नीति को मंजूरी देना होता है।

आइए, भारत के एक आदिवासी गांव में रहने वाली एक गरीब विधवा के उदाहरण से समझें। उसके लिए यूएचसी का अर्थ यह होगा कि उसे अपने घर से उचित दूरी पर समय से अपेक्षित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो जाएंगी। स्वास्थ्य समस्या, उसके निवास स्थान या आमदनी के स्तर जैसी बातें उसे स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग करने में आड़े नहीं आने पाएंगी। उसके पास यह अवसर भी होगा कि किस सेवा प्रदाता से स्वास्थ्य सेवा ले और यह जानने का भी मौका होगा कि उसे कब विशेष स्वास्थ्य सेवा का लाभ उठाना है। चूंकि वह लाइसेंसशुदा सेवा प्रदाता से स्वास्थ्य सेवा ले रही है, इसलिए उसे सेवा की गुणवत्ता के मामले में कोई चिंता करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। उसे इस बात की पूरी आास्ति होगी कि सरकार के स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने का पर्याप्त ढांचा मौजूद है। उसे गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिल जानी है। उसे यह भी विश्वास होगा कि जो स्वास्थ्य सेवाएं वह उपयोग में ला रही है, उनका भुगतान वह कर सकेगी। ऐसा करने में उसकी वित्तीय स्थिति चरमराएगी नहीं। भारत में यूनिवर्सल इम्युनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) के जरिए यूएचसी को बेहतरी ढंग से समझा जा सकता है। यूआईपी के तहत सरकार सभी बच्चों को चुनिंदा टीकाकरण सेवाएं (हालांकि ये टीके खुले बाजार में भी उपलब्ध हैं) मुहैया कराती है। नियत स्वास्थ्य केंद्रों पर यूआईपी टीके उपलब्ध हैं। इन टीकों की गुणवत्ता और टीकाकरण सेवाओं का बेहतर तरीके से नियमन होता है। सरकार की तरफ से एक प्रकार की आश्वस्ति उपयोगकर्ता को मिलती है। लोग जहां चाहें-सरकारी केंद्र या निजी क्षेत्र के केंद्र-वहां से अपने बच्चों को टीके लगवा सकते हैं। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को सरकारी केंद्र से टीके लगवाना चाहते हैं।

मात्र कुछेक ही होते हैं जो निजी क्षेत्रको तरजीह देते हैं। अगर वे सरकारी केंद्र पर जाते हैं, तो उन्हें कोई भुगतान नहीं करना पड़ता लेकिन उन टीकों का भुगतान करना पड़ता है, जो सरकारी कार्यक्रम में शामिल नहीं हैं। ऐसा कोई प्रमाण खोजने से भी नहीं मिलता कि कोई परिवार टीकाकरण के इस कार्यक्रम द्वारा प्रदत्त सेवाओं का उपयोग करके गरीब हुआ हो। भारत नीतिगत मोर्चे पर र्चचा का केंद्र रहा है। उसने खासी तैयारी की है। और इसी के चलते वह यूएचसी को क्रियान्वित करने की दिशा में बड़ी छलांग लगाता दिखलाई पड़ रहा है। भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 से संभवत: सर्वाधिक यह बात पता चलती है कि देश में यूएचसी की ओर कदम बढ़ाने के लिए सरकार पूरी तरह से संकल्प कर चुकी है। केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारें इस दिशा में गहनता के साथ विचार कर रही हैं कि ऐसे तौर-तरीके अपनाए जाएं जिनसे सुनिश्चित हो कि स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने के उपरांत लोगों खासकर गरीबों की स्थिति और न चरमराने पाए। उनकी इन सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने का भी मंसूबा बांधा जा चुका है। लेकिन भारत में सरकारों को यह पता नहीं है कि यूएचसी को किस प्रकार से कार्यान्वित किया जाए। नीति को मूर्ताकार करने का तरीका नहीं मालूम।

कहना न होगा कि यूएचसी को मूर्ताकार किए जाने के लिए नीति का त्वरित कार्यान्वयन होना आवश्यक है। हर साल 12 दिसम्बर इस संकल्प को और मजबूत करने का अवसर होता है कि हम आज मिलकर आने वाले समय में स्वास्थ्य सुविधाओं को कितना बेहतर से बेहतर बना सकते हैं। इसी से स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति तय होगी। देश के सुदूर क्षेत्रमें किसी गरीब वृद्ध आदिवासी विधवा के स्वास्थ्य सेवा को उपयोग करने के तरीके में बदलाव आ पाएगा। जिस दिन उसे स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में चिंता नहीं करनी पड़ेगी तो उसी दिन यह दावा किया जा सकेगा कि यूएचसी को देश में हासिल कर लिया गया है।
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