*By_Avdesh kumar*

जीएसटी में एक महीने के अंदर कर स्लैब में दो बार व्यापक परिवर्तन सामान्य नहीं है। जाहिर है सरकार को यह अहसास हुआ है कि एक जुलाई को जीएसटी लागू करते समय चार श्रेणियों के करों में जिन-जिन वस्तुओं को रखा गया था उसमें काफी विसंगति थी जिसमें सुधार की आवश्यकता है। कुछ लोग इसे गुजरात चुनाव की मजबूरी भी मान रहे हैं। हो सकता है सरकार पर गुजरात चुनाव का भी दबाव हो, क्योंकि गुजरात व्यापारियों का प्रदेश है और वहां जीएसटी को लेकर असंतोष साफ देखा जा सकता है। किंतु दूरगामी और स्थाई परिवर्तन किसी एक चुनाव को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता। इसके पीछे वर्तमान एवं भविष्य के प्रति गहरी सोच तथा इसके पड़ने वाले प्रभावों का आकलन होता है। आखिर सारे परोक्ष कर समाप्त कर जीएसटी के रूप में चार श्रेणियों वाला एक कर लाया गया है। अगर आपने एकदम से ज्यादा कर लिया तो लोगों को परेशानी होगी और दबाव में आवश्यकता से कम कर लगा दिया तो इससे देश और राज्यों को होने वाले राजस्व में कमी आएगी। ऐसे में देश को चलाना कठिन हो जाएगा।

हमें मानकर चलना चाहिए कि सरकार ने जीएसटी परिषद के साथ मिलकर तात्कालिकता के बजाय दूरगामी सोच से ऐसा निर्णय लिया होगा। असम के गुवाहाटी में जीएसटी परिषद की बैठक के बाद जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि 28 प्रतिशत कर के दायरे में आने वाले 178 सामानों पर कर कम करके उन्हें 18 प्रतिशत के दायरे में लाया गया है तो उसका आमतौर पर स्वागत हुआ। अब केवल 50 वस्तुएं ही 28 प्रतिशत के स्लैब में रह गई हैं। यह बात अलग है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि 28 प्रतिशत का स्लैब ही हटाना होगा।

कांग्रेस इसके लिए क्या करती है यह देखना होगा। किंतु यह साफ है कि वर्तमान बदलाव से कारोबारियों एवं उपभोक्ताओं दोनों को भारी राहत मिली है। जीएसटी परिषद ने कुल मिलाकर 213 वस्तुओं पर कर घटाने का फैसला किया। यह अब तक का सबसे बड़ा परिवर्तन है। यह घोषणा इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि मंत्रिसमूह ने 165 वस्तुओं को ही 28 से 18 फीसद में लाने की सिफारिश की थी, लेकिन परिषद ने 12 अन्य वस्तुओं पर टैक्स घटाने पर मुहर लगाई। अगर 28 प्रतिशत कर श्रेणी में से 178 सामनों को 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब में लाया गया तो 13 को 18 प्रतिशत से 12 प्रतिशत के दायरे में, 6 को 18 प्रतिशत से 5 प्रतिशत में, 8 को 12 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तथा 6 को तो 5 प्रतिशत से 0 की श्रेणी में ले आया गया।

वास्तव में जिस तरह व्यापारियों के प्रतिनिधियों ने अपनी मांगें सरकार के समक्ष रखी थीं उसे ध्यान में रखकर एकबारगी ही व्यापक फैसला किया गया है। जरा यह भी देखें कि ऐसे कौन-कौन से सामान व सेवाएं हैं जिन्हें 28 प्रतिशत से 18 प्रतिशत या अन्य छोटे कर स्लैबों में लाया गया है। इससे साफ हो जाएगा कि आखिर जीएसटी परिषद का लक्ष्य क्या था। 28 से 18 प्रतिशत के दायरे में आने वाली सामग्रियां हैं-फर्नीचर, बिजली के सामान, बक्से, बैग, टॉयलेट क्लीनर, लैंप, पंखा, पंप, कुकर, स्टोव, सूटकेस, डिटर्जेट, सौंदर्य उत्पाद, शेविंग-ऑफ्टर शेविंग उत्पाद, शू पॉलिश, न्यूटिशन पाउडर, डियोड्रेंट, चॉकलेट, च्यूइंगगम आदि।

इनमें ज्यादातर ऐसी सामग्रियां हैं जिनका इस्तेमाल हमको, आपको और सबको करना पड़ता है। अधिकतम कर स्लैब में अब पान मसाला, सॉफ्ट डिंक, तंबाकू, सिगरेट समेत सिर्फ 50 वस्तुएं ही रहेंगी। इसके बाद सामान्यत: जीएसटी की दर से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस अगर 28 प्रतिशत दर को खत्म करना चाहती है तो उसे इसके लिए अन्य दलों का समर्थन जुटाना होगा। जो लोग रेस्टोरेंटों में खाना खाते हैं उनको अब कम दर देना होगा। जीएसटी परिषद ने रेस्तरां में कर की दरों को 18 से घटाकर 5 फीसद करने का फैसला किया गया है। हालांकि पंचतारा होटलों को इस पर छूट नहीं दी गई है।

इन सारे बदलावों को देखते हुए कहा जा सकता है कि सरकार ने समय-समय पर जीएसटी की समीक्षा करने का जो वायदा किया था उसका पालन किया जा रहा है। हो सकता है इसके पीछे राजनीतिक मजबूरी हो। इसका एक पक्ष यह भी है कि एक जुलाई को जब जीएसटी लागू किया गया, उसके पूर्व जितनी गहराई से एक-एक वस्तु एवं सेवा पर कितना कर उचित होगा इसका आकलन नहीं किया गया था। यदि ऐसा किया गया होता तो इतनी जल्दी इतने व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती। इसीलिए कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि जीएसटी भी बिना संपूर्ण और व्यापक विचार-विमर्श के लाया गया था। सरकार भले इससे सहमत नहीं है। वह कहती है कि लगातार लोगों से मिल रहे फीडबैक के आधार पर फैसला किया जा रहा है। यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। किंतु इतने व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता इसकी पूर्ण तैयारी या विचार विमर्श का प्रमाण तो नहीं ही है।

हालांकि यह सच है कि जीएसटी की दरों की लगातार समीक्षा हो रही है। इनकी समीक्षा के लिए ही जीएसटी परिषद बनाई गई है। इसमें केंद्र और राज्य, दोनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। वर्तमान फैसला परिषद की गुवाहाटी की 23वीं बैठक में हुआ। इसमें केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और 24 राज्यों के वित्त मंत्री और जीएसटी के प्रभारी मंत्रियों ने हिस्सा लिया। इसमें व्यापक चर्चा के बाद ये सारे निर्णय लिए गए। कोई पार्टी जो भी आरोप लगाए, लेकिन यह सच देश को जानना आवश्यक है कि जीएसटी परिषद में सारे फैसले सर्वसम्मति से होते हैं। कोई एक राज्य का वित्त मंत्री भी विरोध कर दे तो वह फैसला लागू नहीं होगा। इसलिए जो कुछ पहले हुआ उसमें भी सरकार के साथ उन सारे दलों की भूमिका थी, जो बाहर आलोचना कर रहे हैं। और इस बार भी जो हुआ है उसमें भी सबकी सहमति थी। इसलिए यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि केवल केंद्र सरकार ही ऐसा कर रही है। जो भी हो जीएसटी देश के लिए दूरगामी दृष्टि से अच्छा कदम है। इससे करों की जटिलताएं कम हो रही हैं। इसका सफल होना आवश्यक है। किंतु ऐसा न हो कि दबाव में कर इतना कम कर दिया जाए कि देश को चलाने के लिए राजस्व की ही कमी हो जाए।(DJ)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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