*🌿🔵सही कृषि नीतियों की दरकार**

चार वर्ष पहले जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने सत्ता संभाली थी तो तमाम दूसरी वृहद् आर्थिक चुनौतियों के साथ उसे दो अंकों में पहुंच रही मुद्रास्फीति से भी जूझना पड़ा। मुद्रास्फीति की बहुत बड़ी वजह थी खाद्य उत्पादों की ऊंची कीमत और ऐसे में स्वाभाविक तौर पर कोई भी सरकार उपभोक्ताओं की चिंता दूर करने और खाद्य मुद्रास्फीति को काबू में रखने के प्रयास को ही प्राथमिकता देगी। लेकिन सरकार ने विभिन्न कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में तेज वृद्घि की घोषणा नहीं की और कृषि उत्पादों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए व्यापार नीति में बदलाव किया ताकि खुदरा कीमतों में एकाएक बढ़ोतरी नहीं हो सके। किंतु देश भर में बढ़ता किसानों का असंतोष सरकार को उनकी व्यथा पर ध्यान देने के लिए मजबूर कर रहा है। किसानों का कहना है कि कीमतें इतनी कम हो गई हैं कि खेती करने का कोई फायदा ही नहीं रह गया है।

देश के विभिन्न हिस्सों में किसान सड़कों पर आए हैं और गुस्सा जाहिर करने के लिए अपनी उपज सड़कों पर बिखेर दी हैं क्योंकि सभी की थोक कीमतें एकदम नीचे आ गई हैं। बढ़ते गुस्से का असर चुनावों पर हो सकता है, जो उपचुनावों के कुछ नतीजों में नजर भी आया है। इसीलिए सरकार ने ऊंचे एमएसपी का वायदा किया है और कुछ राज्य सरकारों ने कृषि ऋण माफ करने का ऐलान भी किया है। लेकिन भारतीय कृषि के मौजूदा संकट को दूर करने के लिए एमएसपी बढ़ाना और कर्ज माफ करना दर्शाता है कि देश में कृषि की खस्ता हालत के कारणों की समझ ही नहीं है। केंद्र तथा राज्य सरकारें ऐसे तरीके अपना रही हैं, जिन्हें उत्पादन कम होने पर आजमाया जाना चाहिए और इस समय उत्पादन की कमी तो कहीं से भी नहीं है। ऊंचे एमएसपी का वायदा होने पर किसान उस फसल को अधिक से अधिक उपजाने में जुट जाते हैं, जिससे हालात और पेचीदा हो जाते हैं। लगातार कई वर्षों से विभिन्न कृषि उत्पादों का उत्पादन बढऩे के कई कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि पौधों के बेहतर प्रजनन और अनुवांशिकी के कारण बीजों की गुणवत्ता में इजाफा होने के कारण उत्पादकता बढ़ी है।

विशेषज्ञ गेहूं और गन्ने की नई प्रजातियों का उल्लेख करती हैं, जिनके कारण पिछले कई वर्षों की शुरुआत में भारत का फसल भंडार बढ़ता ही जा रहा है। इसके अलावा खेती की वैज्ञानिक पद्घति में लगातार सुधार होता जा रहा है, जैसे अधिक सघनता वाली खेती और ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल। इसके कारण कृषि उत्पादन में और भी बढ़ोतरी हुई है। कृषि से जुड़े बुनियादी ढांचे में निवेश होने से सड़क संपर्क बढ़ा है और बिजली भी अधिक उपलब्ध हुई है। इनके कारण भी उत्पादकता में वृद्घि हुई है। अंत में पूरी दुनिया के साथ संपर्क बेहतर होने से कीमतों में किसी भी किस्म के फेरबदल पर किसान तेज प्रतिक्रिया देते हैं। समस्या यह है कि सरकार अब भी आपूर्ति प्रबंधन के उपायों जैसे भंडारण की सीमा तय करना, आयात को सुगम बनाना आदि में ही फंसी हुई है। सरकार की नीतियां अक्सर उपभोक्ता मूल्य कम रखने के उद्देश्य से ही बनाई जाती हैं और बेहतर कीमत के फायदे उससे खत्म हो जाते हैं। उदाहरण के लिए निर्यात की इजाजत नहीं देने या सस्ते आयात की अनुमति दे देने से अक्सर बड़ा भंडार जमा हो जाता है और घरेलू उत्पादन पहले ही बढ़ चुका होता है।

इस कारण कीमतों में एकदम गिरावट आ जाती है। इसलिए इसका समाधान एमएसपी को बढ़ाकर कीमतों के बारे में बनावटी संकेत देने से नहीं होगा। उसके बजाय किसानों को बाजार पहुंचने के बेहतर रास्ते उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिए। अब समय आ गया है कि किसानों को उन कृषि कंपनियों के साथ दीर्घावधि खरीद समझौते करने में मदद की जाए, जो गोदाम और कोल्ड चेन स्थापित कर सकती हैं। भारतीय किसानों ने दिखाया है कि वे मॉनसून की अनिश्चितता से तो लड़ सकते हैं, लेकिन गलत नीतियों का कोई इलाज नहीं है।

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