भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय

भूमिका
अचल संपत्ति से संबंधित कानून (RERA – Real Estate Regulation & Development Act)) को अधिसूचित करने के लिये राज्‍यों को दी गई तीन महीने की मोहलत जुलाई में खत्‍म होने के साथ ही देश में रीयल एस्‍टेट और आवास क्षेत्र में बदलाव का रास्‍ता साफ हो गया है। यह मोहलत ऐसी परियोजनाओं की वजह से दी गई थी जिनका कार्य निर्माणाधीन अवस्था में था। मोहलत की अवधि बीत जाने पर अचल संपत्ति और आवास क्षेत्र के एक परिपक्‍व, पेशेवर, संगठित और पारदर्शी क्षेत्र के रूप में उभरने की संभावना जताई जा रही है, जिससे इस क्षेत्र से संबंधित सभी पक्षों को फायदा होगा।

रेरा क्या है?

रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के अंतर्गत घरेलू खरीदारों के हितों की रक्षा करने तथा अचल संपत्ति उद्योग में निवेश को बढ़ावा देने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
इस विधेयक को 10 मार्च, 2016 को राज्यसभा द्वारा और 15 मार्च 2016 को लोकसभा द्वारा पारित किया गया।
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय एवं राज्य सरकारें छह महीने की सांविधिक अवधि के भीतर इस अधिनियम के तहत वर्णित सभी नियमों को सूचित करने के लिये पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं।
अधिनियम के अनुपालन संबंधी समय-सीमा
केंद्रीय आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा राज्‍यों को नियामक के कामकाज से संबंधित नियम बनाने और उन्‍हें अधिसूचित करने के लिये 1 मई, 2017 तक का समय दिया गया था।

उद्देश्य

रेरा का उद्देश्‍य, अचल संपत्ति क्षेत्र को विनियमित करने तथा बढ़ावा देने के लिये एक विनियामक प्राधिकरण की स्‍थापना करना है ताकि इस क्षेत्र में होने वाले लेन-देनों में दक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
साथ ही विवादों के शीघ्रता से समाधान की ऐसी कानूनी प्रणाली स्थापित हो जिसके तहत उपभोक्‍ताओं के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।

अधिनियम की विशेषता

इस अधिनियम के अंतर्गत अचल संपत्तियों के न्‍यायोचित लेन-देन, बिल्‍डरों द्वारा समयबद्ध तरीके से आवास उपलब्‍ध कराने तथा निर्माण में गुणवत्‍ता जैसे महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर विशेष रूप से ध्‍यान दिया गया है।
यह कानून बिल्‍डरों द्वारा मकान उपलब्‍ध कराने में होने वाली देरी के विरुद्ध कार्रवाई करने तथा ज़रूरतमंद लोगों को समय पर मकान उपलब्ध कराने में सहायता करेगा।
इसके अतिरिक्त यह भी सुनिश्चित किया गया है कि केवल उन्ही डेवलपर्स को भवन निर्माण परियोजना की शुरुआत करने का अधिकार दिया जाए जो अधिनियम के तहत पंजीकृत हो।
इसके अलावा यह भी सुनिश्चित किया गया है कि डेवलपर्स संबंधित क्षेत्र के अधिकारियों से तमाम प्रकार की वांछित स्‍वीकृतियाँ प्राप्‍त किये बिना न तो किसी भवन निर्माण परियोजना की शुरुआत या उसका विज्ञापन जारी कर सकते और न ही मकानों की बुकिंग कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त मकान की बुकिंग की राशि के संबंध में मनमाने तरीके से निर्णय करने अथवा वसूली करने की भी मनाही है क्‍योंकि नये नियमों के अनुसार, बुकिंग की राशि संपत्ति की कीमत का 10 प्रतिशत तय की गई है।
इस कानून के तहत डेवलपरों के लिये परियोजना शुरू करने से संबंधित सभी प्रकार की महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ करना अनिवार्य कर दिया गया है। इनमें विभिन्‍न प्राधिकारियों से प्राप्‍त स्‍वीकृतियाँ, परियोजना शुरू होने की तारीख, तैयार हो चुके मकानों के आवंटन की तारीख, परियोजना का विवरण और उपलब्‍ध कराई जाने वाली अन्य सुविधाओं इत्यादि का ब्‍यौरा प्रस्तुत करना अनिवार्य किया गया है।
इतना ही नहीं इस तरह की तमाम जानकारियों को बिल्‍डर द्वारा परियोजना की वेबसाइट पर डालना भी ज़रुरी है।

निवेश संबंधी पक्इस विषय में जहाँ तक निवेश की सुरक्षा का सवाल है यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि रेरा कानून में डेवलपरों के लिये कठोर प्रावधान किये गये हैं और उनसे ज़मीन की कीमत समेत खरीदारों से एकत्रित की गई 70% राशि को ‘एस्‍क्रो अकाउंट’ (escrow account) में रखने जाने का भी प्रावधान किया गया है।

यह सब व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिये की गई है कि कहीं उक्त धनराशि को किसी दूसरे काम में तो नहीं लगाया जा रहा है।
इसका एक कारण यह भी है कि कभी-कभी ऐसी धनराशि का उपयोग भूमि-बैंक (land bank) कायम करने हेतु भी किया जाता है।

रेरा के अनुपालन से क्या लाभ होगा?

रेरा कानून के अंतर्गत सुपर बिल्‍ट एरिया (super built area) के आधार पर संपत्ति की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। दरअसल इसके तहत खरीदार को यह जानकारी नहीं हो पाती थी कि उसके मकान में कितनी जगह होगी, जिसके कारण संदेह की स्थिति बनी रहती थी।
परंतु, अब डेवलपरों के लिये यह ज़रूरी कर दिया है कि वे सिर्फ कार्पेट एरिया (खरीदार द्वारा वास्‍तव में उपयोग में लाए जाने वाले क्षेत्रफल) के आधार पर ही संपत्ति की बिक्री करेंगे।
यह अधिनियम डेवलपरों द्वारा की जाने वाली धांधलियों के खिलाफ भी एक बड़ा कवच साबित होगा क्‍योंकि इस अधिनियम के अंतर्गत धोखाधड़ी करने वाले डेवलपर्स पर भारी ज़ुर्माने के साथ-साथ कारावास का भी प्रावधान किया गया है।
अधिनियम के अनुसार, अगर किसी परियोजना का प्रमोटर खरीदारों को तयशुदा तारीख तक मकान उपलब्‍ध नहीं करा पाता है तो उसे खरीदार द्वारा निवेश किया गया सारा पैसा अनुबंध में पहले से तय ब्‍याज के साथ वापस लौटाना होगा।
लेकिन, अगर खरीदार मकान ही लेना चाहता है तो बिल्‍डर को देरी से मकान मिलने के समय तक मासिक आधार पर ब्‍याज का भुगतान करना होगा। ऐसे मामलों में अब तक बिल्‍डर खरीदारों को बहुत मामूली ब्‍याज देते थे जबकि खरीदार की ओर से भुगतान में चूक होने पर मोटा ब्‍याज वसूल करते थे।
इसी प्रकार मकान की गुणवत्‍ता अच्छी न होने की स्थिति में भी डेवलपर पर ज़ुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है।
रेरा के तहत पीडि़त खरीदार को फास्‍ट ट्रैक कोर्ट में छह महीने के भीतर न्याय मिलने की भी व्यवस्था की गई है।
चिंताएँ
हालाँकि, तमाम सार्थक प्रयासों के बावजूद इसके संबंध में कुछ चिंताएँ भी व्‍यक्‍त की गई हैं।
कुछ आलोचकों द्वारा इसके समुचित तरीके से समय पर लागू होने को लेकर संदेह व्‍यक्‍त किया गया है।
साथ ही कुछ राज्‍यों द्वारा रेरा के विषय में अभी तक कोई अधिसूचना भी जारी नहीं की गई है। इसके अतिरिक्त इस संबंध में सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य पहले से ठप्‍प पड़ी आवास परियोजनाओं को फिर से शुरू करने का है।

रीयल एस्‍टेट से जुड़े तमाम पक्षों पर विचार करने के पश्चात् यह कहना गलत नहीं होगा कि इस क्षेत्र में विद्यमान तमाम प्रकार की समस्याओं एवं चुनौतियों से निपटने हेतु रेरा एक सटीक एवं दूरगामी कदम साबित होगा। इस कानून के आने के बाद रीयल एस्‍टेट क्षेत्र के मानकीकृत प्रक्रियाओं एवं कार्यविधि के दौर में प्रवेश करने की संभावनाएँ बढ़ गई है, वस्तुतः इसकी बहुत वृहद् स्तर पर ज़रूरत महसूस भी की जा रही थी। इस अधिनियम के आने से निवेशकों के लिये भी पहले की अपेक्षा अधिक अनुकूल वातावरण तैयार होगा तथा देश में विदेशी निवेश के द्वार भी खुलेंगे। इस संबंध में कुछ अन्य प्रकार की पहलों जैसे- किफायती आवास-निर्माण गतिविधियों को उद्योग का दर्ज़ा दिया जाना, ब्‍याज के दायरे में आने वाले सभी विदेशी ऋणों के लिये रियायती दर से ब्‍याज की व्‍यवस्‍था एवं निवेश की न्‍यूनतम सीमा निर्धारित करना और रोज़गार के अवसरों के आधार पर स्‍थायी निवासी का दर्ज़ा देना आदि पक्षों को भी शामिल किया गया हैं। इससे न केवल इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही का माहौल बनेगा बल्कि रीयल एस्‍टेट क्षेत्र के विषय में आम आदमी की धारणा में भी बदलाव होगा।

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