‘द हिंदू’ में प्रकाशित लेख ‘The strategy of conflict’

वर्ष 2018 के आरंभिक दो माह में भारत-पाकिस्तान सीमा के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में हिंसा और तनाव एक नई ऊँचाई पर पहुँच गए हैं। नई दिल्ली ने पाकिस्तान द्वारा संघर्ष-विराम उल्लंघन के 633 मामले दर्ज किये हैं जिनमें 12 नागरिकों और 10 सैनिकों को अपनी जान गँवानी पड़ी, जबकि सीमा के निकट स्थित कई नागरिक आवास नष्ट हो गए। मार्च के पहले सप्ताह तक पाकिस्तान द्वारा भारत की ओर से 415 संघर्ष-विराम उल्लंघन के मामले दर्ज किये गए जिनमें 20 नागरिक मारे गए (पाकिस्तानी सैनिकों की मौत के बारे में आँकड़ा उपलब्ध नहीं है)।

सीमा पर चल रही इस गोलाबारी में हथियारों की मारक क्षमता में भी इज़ाफा हो रहा है, जहाँ शॉर्ट-रेंज पर्सनल वीपन से शुरू हुई कार्रवाई 105 एमएम मोर्टार, 130 एवं 155 एमएम आर्टिलरी गन से होती हुई एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल तक पहुँच गई। हिंसक झड़पों और हताहतों की संख्या में वृद्धि के साथ जब अभी दोनों देशों में आगे चुनाव भी होना है, तो एक आदर्श समीकरण बन रहा है जहाँ स्थिति नियंत्रण से बाहर जा सकती है।

ऐसे में हमें यही सवाल खुद से भी पूछने की आवश्यकता है कि यह महज़ विवेकहीन हिंसा है या इस हिंसा के पीछे कोई रणनीति है और यदि वास्तव में कोई रणनीति है तो क्या इसे सावधानीपूर्वक आजमाया जा रहा है और क्या इसके इच्छित परिणाम प्राप्त होंगे?
2003 के संघर्ष-विराम समझौते (सीएफए) के बाद से नई दिल्ली ने जम्मू-कश्मीर सीमा पर हिंसा से निपटने के लिये तीन व्यापक रणनीतियों का पालन किया है। ‘टॉक्स ओवर बुलेट्स’, ‘टॉक्स एंड बुलेट्स’ और ‘डिसप्रपोर्शनेट बमबार्डमेंट’ के इन तीनों दृष्टिकोणों के अपने सुनिश्चित लागत और लाभ हैंl

वर्ष 2003 के संघर्ष-विराम समझौते के तुरंत बाद के वर्षों में सीमा पर पर्याप्त शांति बहाल हुई जहाँ संघर्ष-विराम उल्लंघन अपने न्यूनतम स्तर पर आ गया। हालाँकि, जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ और आतंकी हमलों की छिटपुट घटनाएँ होती रहीं, लेकिन कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ और कश्मीर शांत बना रहा। उस अवधि में जारी रही द्विपक्षीय वार्ताओं ने हिंसा में काफी कमी की। यह शांत अवधि लगभग वर्ष 2008 तक बनी रही।

टॉक्स ओवर बुलेट्स की इस रणनीति का दूसरा चरण तब दिखा जब प्रधानमंत्री मोदी ने लाहौर का दौरा किया। इस दौरे से एक शांति की स्थिति बनी और जनवरी 2016 के आरंभ में पठानकोट वायु सेना बेस पर आतंकी हमले के बावजूद दिसंबर 2015 से फरवरी 2016 की अवधि में सीमा पर संघर्ष-विराम उल्लंघन का लगभग कोई मामला सामने नहीं आया।

इस रणनीति का उपयोग मुख्यतः पिछली संप्रग सरकार और वर्तमान राजग सरकार द्वारा किया गया और इसके लाभ भी स्पष्ट हैं। पाकिस्तान के साथ वार्ता और सीमा पर शांति एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़े नज़र आते हैं। हालाँकि, यहाँ एक नकारात्मक बिंदु यह है कि नई दिल्ली अब यह महसूस करती है कि शांति और वार्ता की रणनीति को उसने अतीत में कई बार आजमाया है लेकिन पाकिस्तान से इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया पाने में विफलता ही हाथ लगी है। इससे भारत के मन में व्यापक कड़वाहट है।

दरअसल, यह रणनीति विफल इसलिये रही क्योंकि बीच-बीच में भारत पर आतंकी हमले जारी रहे, जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ और उग्रवाद की घटनाओं में वृद्धि होती रही और इन सबके पीछे भारत पाकिस्तान को ज़िम्मेवार मानता है। निश्चय ही वार्ता के अपने लाभ हुए हैं लेकिन ये नियमित नहीं रह पाए और इसकी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। दूसरे शब्दों में कहें तो नई दिल्ली की गणना के अनुसार टॉक्स ओवर बुलेट्स रणनीति की लागत इससे प्राप्त लाभ की तुलना में अधिक है।

यह दूसरी रणनीति है जहाँ पाकिस्तान के साथ वार्ता में संलग्न तो रहना है लेकिन उसकी प्रत्येक कार्रवाई का माकूल जवाब भी देते रहना है। वर्ष 2010 से 2012 की अवधि इसी रणनीति की रही। इस अवधि में दोनों पक्ष वार्ता में संलग्न रहे और संघर्ष-विराम उल्लंघन में पर्याप्त कमी आई। भारत ने 2010 में 70, 2011 में 62 और 2012 में 114 उल्लंघन के मामले दर्ज किये। 2010 में दोनों देशों के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में मुलाकात हुई और फिर इस्लामाबाद में उनकी एक बैठक हुई। 2011 में दोनों देशों के विदेश सचिव थिम्पू (भूटान) में मिले और 2012 में इस्लामाबाद में दोनों विदेश सचिवों का संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ।

इस अवधि में वार्ता भी जारी रही और जम्मू-कश्मीर सीमा पर गोलीबारी भी पूरी तरह बंद नहीं हुई। इस प्रकार वार्ता और गोलीबारी, दोनों एक मध्यम स्तर पर बने रहे। आनुपातिक प्रतिक्रिया अथवा माकूल जवाब की इस रणनीति में ‘टॉक्स फॉर टॉक्स’ एंड ‘बुलेट्स फॉर बुलेट्स’ पर अमल किया गया

अप्रैल 2016 से अब तक संघर्ष-विराम उल्लंघन और भारत-पाकिस्तान संबंधों की वर्तमान स्थिति मुख्यतः इसी रणनीति के अंतर्गत संचालित है। जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में वृद्धि और संघर्ष-विराम उल्लंघन की बढ़ती वारदातों के बीच दोनों देशों के मध्य संवाद का कोई उल्लेखनीय प्रयास नहीं हुआ है (अपवाद के रूप में बैंकॉक में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक बैठक को लिया जा सकता है हालाँकि उसका भी कोई इच्छित परिणाम नहीं निकला)। पाकिस्तान के अनुसार भारत ने अप्रैल से दिसंबर 2016 के बीच 389 बार, जबकि 2017 में 2,000 से अधिक बार संघर्ष-विराम का उल्लंघन किया और यह प्रवृत्ति अब भी जारी है। भारत के अनुसार पाकिस्तान ने 2016 में 449 बार और 2017 में 860 बार संघर्ष-विराम का उल्लंघन किया।

देखा जाए तो भारी बमबारी की इस रणनीति के कुछ प्रकट लाभ भी नज़र आते हैं। इसका घरेलू राजनीतिक लाभ सर्वाधिक है जहाँ नागरिक व सैनिक हताहतों की बढ़ती संख्या पर सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा जाता। हमने उन्हें अधिक मारा और घर में घुसकर मारा (सर्जिकल स्ट्राइक) का आख्यान एक मज़बूत राजनीतिक स्थिति का निर्माण करता है।

किंतु, इस रणनीति के कुछ अंतर्निहित खतरे भी हैं। सर्वप्रथम, भारी बमबारी की रणनीति से स्थिति नियंत्रण के बाहर जा सकती है। हताहतों (नागरिक और सैनिक) की भारी संख्या जनता के समर्थन को पलट भी सकती है। दूसरा, जानमाल के नुकसान में दिनोंदिन वृद्धि के साथ पाकिस्तान के साथ फिर किसी वार्ता की संभावना भी उतनी ही कठिन व जटिल होती जा रही है। तीसरा, सीमा पर हिंसा और इससे संबद्ध राष्ट्रवादी भावनाओं को लेकर मीडिया का वर्तमान उन्माद सरकार के लिये नुकसानदेह हो सकता है, क्योंकि जब सरकार वार्ता मेज पर जाना चाहेगी तब यही उन्माद और भावनाएँ उसके विरुद्ध हो सकते हैं।

पाकिस्तान पारंपरिक सैन्य ताकत में भारत के समक्ष अपनी दुर्बलता को समझता है, इसलिये ऐसा प्रतीत होता है कि जम्मू-कश्मीर सीमा पर उसने एक तीन-तरफा रणनीति अपनाई है। पहला, बिना जोखिम बढ़ाए सीमा पर हिंसा को सावधानीपूर्वक अंजाम देना; दूसरा, कश्मीर पर शोर और घुसपैठ के विषय को दबाए रखने के लिये कश्मीर पर सार्थक वार्ता की तलाश और तीसरा, कश्मीर पर अपने दावों और हितों को त्यागे बिना डीजीएमओ वार्ता एवं हथियारों की क्षमता में कमी जैसे रणनीतिक उपायों का प्रस्ताव देना। दूसरे शब्दों में, पाकिस्तान या तो जम्मू-कश्मीर सीमा पर संघर्ष प्रबंधन अथवा कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिये एक वृहत् वार्ता प्रक्रिया की तलाश में है।

इस प्रकार, नई दिल्ली और इस्लामाबाद की अपेक्षाओं एवं रणनीतियों के बीच एक स्पष्ट विसंगति है। जहाँ भारत सीमा पर गोलीबारी के अंत के लिये सीमा-पार घुसपैठ और कश्मीर में पाकिस्तानी हस्तक्षेप की समाप्ति की इच्छा रखता है, वहीं पाकिस्तान सीमा पर शांति और पाकिस्तान स्थित भारत-विरोधी आतंकी संगठनों पर कार्रवाई के बदले कश्मीर पर सार्थक संवाद या इसके समाधान की इच्छा रखता है। यदि दोनों देश नियंत्रण से बाहर हो रहे सीमा पर तनाव व हिंसा को कम करना चाहते हैं तो उन्हें अपनी-अपनी अपेक्षाओं और इच्छाओं से आगे बढ़कर एक बीच का रास्ता तलाशना होगा।

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