👉👉By-Prabhat Ranjan Sir Delhi
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मानव जगत मे उत्साह उमंगो एवं सपनो का सर्वोक्रष्ट जीवीत पुंज बच्चो को माना गया है, बच्चे किसी भी राष्ट्र के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते है । वे देश के भावी कडधार एवं प्रतीक का आईना है, बच्चे का चमकता हुआ चेहरा इस बात का प्रतीक है कि वह देश कितना खुशहाल और संपन है । बच्चे सभ्यता एवं भविष्य के आधार पर मानवता के उज्वल भविष्य के आधार है और निरंतर पुन जीवन का स्त्रोत भी है । इन्ही के आधार पर मानवता के उज्वल भविष्य की नीव रखी जा सकती है, किन्तु चिंता का विषय यह है कि हमारे देश में बड़ी संख्या में  ऐसे बच्चो की है, जिनका जीवन बाल मजदूरी  मे पिस्ता जा रहा है ।  बच्चो के बचपन की नीव ही अगर डगमगाई हुई हो तो आगे का भविष्य उनका क्या होगा ये सब जानते और समझते है।

प्राचीन काल से ही बाल मजदूर कृषि, उद्योग, व्यापार एवं घरेलू कार्यो में कार्यरत रहे है, परन्तु उस समय जनसंख्या के कम दबाव, गरीबी और रूढि़वादिता के कारण उनकी शिक्षा एवं उनके सही विकास की ओर से आर्थिक और मानसिक ध्यान नही दिया गया। बाल श्रमिको कों  बचपन में ही मजदूरी के बेदी पर होम कर दिया जाता है । आज भी परिवार की आर्थिक विवाश्ताओ के कारण हजारो बच्चे स्कूल की चौखट भी पर नही कर पाते है और कईयो  कों बीच में ही पढाई छोडनी पड़ती है । जिससे बाल श्रमिक आजीविका, शिक्षा प्रशिक्षण और कार्यरत कौशल से वंचित रह जाते है। फलस्वरूप  ना उनका मानसिक विकास हो पाता है और ना ही बौद्धिक विकास ।

एक अनुमान के अनुसार भारत में 14 साल के बच्चों की आबादी पूरी अमेरिकी आबादी से भी ज़्यादा है। भारत में कुल श्रम शक्ति का लगभग 3.6 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम उम्र के बच्चों का है.। हमारे देश में हर दस बच्चों में से 9 काम करते हैं। ये बच्चे लगभग 85 फीसदी पारंपरिक कृषि गतिविधियों में कार्यरत हैं, जबकि 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती कार्यों में लगे हैं। सिर्फ 0.8 फीसदी कारखानों में काम करते हैं। आमतौर पर बाल मज़दूरी अविकसित देशों में व्याप्त विविध समस्याओं का नतीजा है।  दूर -दराज के इलाकों से शहरों में आकर काम करने वाले बाल मजदूरो की स्थिति और भयावह है । जब सारी दुनिया सोती है, तब सर्दियों में बिस्तर से निकलकर ये काम  पर जाने कों तैयारी में लग जाते है ।

कई सरकारें बाल मज़दूरों की सही संख्या बताने से बचती हैं। ऐसे में वे जब विशेष स्कूल खोलने की सिफारिश करती हैं तो उनकी संख्या कम होती है, ताकि उनके द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों और कार्यकलापों की पोल न खुल जाए। यह एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू है और आज ज़रूरत है कि इन सभी मशलों पर गहनता से विचार किया जाए । यदि सरकार सही तस्वीर छुपाने के लिए कम संख्या में ऐसे स्कूलों की सिफारिश करती है। तो यह नियमों को लागू करने एवं बाल श्रमिकों को समाज की मुख्य धारा में जोडऩे की दिशा में एक गंभीर समस्या और बाधा है। जब तक पर्याप्त संख्या में संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जाएंगे, ऐसी समस्याओं से निपटना मुश्किल ही होगा ।

यूनिसेफ ने अपने वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि बच्चो कि खरीद,शोषण तथा दुकानों, खदानों, फैक्टियो, उद्योग, ईट- भ_ों  तथा घरेलू कामो में जबरन मजदूरी करने एवं शारीरिक दुष्कर्मो की असंख्य डरावनी कहानिया है ।  यूनिसेफ  के अनुसार बच्चों का नियोजन इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनका आसानी से शोषण किया जा सकता है। बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम जिन कारणों से करते हैं,  उनमें आम तौर पर गरीबी पहला है। लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या विस्फोट, सस्ता श्रम, उपलब्ध कानूनों को लागू नहीं होना, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अनिच्छुक माता-पिता (वे अपने बच्चों को स्कूल की बजाय काम पर भेजने के इच्छुक होते हैं, ताकि परिवार की आय बढ़ सके) जैसे अन्य कारण भी हैं।

देश में बालश्रम की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम भी उठाये हैं। समस्या के विस्तार और गंभीरता को देखते हुए इसे एक सामाजिक आर्थिक समस्या मानी जा रही है, जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान हेतु समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मज़दूरी की समस्या और उससे निज़ात दिलाने हेतु  उपाय सुझाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया था। समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। उन्होंने देखा कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल-मजदूरी को हटाना संभव नहीं होगा। इसलिए कानूनन इस मुद्दे को प्रतिबंधित करना व्यावहारिक रूप से समाधान नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्रों में कार्य के स्तर में सुधार लाया जाए। समिति ने यह भी सिफारिश किया कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुयामी नीति बनाये जाने की जरूरत है।

1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति को मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी प्रदान कर दिया गया. बाल श्रम के बढ़ते तादाद कों रोकने के दिशा में यह एक कारगर प्रयास थी.  इस नीति के अनुसार, खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे बच्चों के कायाकल्प दिया जाता  हैं और उन नीतियों के बारे में समय समय पर योजना बनाई है। बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए एवं बच्चो के संपूर्ण अधिकारों के लिए कई सरकारी और निजी संस्थान नित्य काम करती है। कई निजी संस्थान बाल श्रमिको के संपूर्ण विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके से कार्य करते हूँ, समाज के लिए एक मिशाल बन रहे है ।

समय के साथ सरकार और न्यायलय के तरफ से भी बाल श्रम कों रोकने के लिए नीतियों और योजनायो की घोषणा होती रहती है। लेकिन जब तक समाज के हर तबके के लोगो इस बाल श्रम के विरोध में आवाज बुलंद नही करेगे, तब तक कुछ खास होने वाला नही है । तों जरा सोचिये देश के भविष्य के बारे में और रोकिये बाल श्रमिक के बढ़ाते तादाद कों !

बाल मजदूरी के विरोध में हमें आवाज़ उठानी चाहिए, जिसके लिए हमें ये महत्वपुर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है ।जब किसी बच्चे को शोषित होते हुए देखें, तो उसकी व्यक्तिगत मदद करें।बच्चों की सुरक्षा के लिए कार्यरत संगठनों के लिए स्वेच्छा से समय निकालें।व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से कहें कि यदि वे बच्चों का शोषण बन्द नहीं करते हैं तो उनसे कुछ भी नहीं खरीदेंगे।बाल-श्रम से मुक्त हुए बच्चों के पुनर्वास और शिक्षा के लिए कोष जमा करने में  मदद करें।आपके किसी रिश्तेदारों या परिजनों के यहां बाल-श्रमिक है, तो आप सहजता पूर्वक चाय-पानी ग्रहण करने से मना करें और इसका सामाजिक बहिष्कार करें।अपने कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करके बाल-श्रम की समस्या के बारे में सूचित करें और उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे अपने बच्चों को नियमित रूप से स्कूल भेजें।अपनी कम्पनी पर दबाव डालें कि बच्चों के स्थान पर व्यस्कों की नियुक्त करें।10 अक्तूबर 2006 से घरों और ढाबों में बच्चों से मजदूरी कराना दण्डनीय अपराध है।

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